Plus d'informations े दूर हैं और न दुर्लभ ही हैं।
मनुष्य देखने में कोई रूपवान, कोई कुरूप, कोई साधु, कोई असाधु दिखाई पड़ते हैं, परंतु उन सबके négation
दुष्ट मनुष्य में भी ईश्वर का निवास है, परंतु शिष्य को उसका संग करना उचित नहीं है।।। को.
शिष्य को उन लोगों से दूर रहना चाहिये जो उपासना का मजाक उड़ाते हैं, धर्म तथा धार्मिक ग्रन्थों की्दा करते हैं।।.
शिष्य को माया से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि माया को पहचान लेने पर वहरंत भाग जायेगी।।.
जैसे दूध से मक्खन निकालने के लिये मथना पड़ता है, उसी तरह शिष्य को ईश्वर को जानने के लिये साधना सम्पन्न.
मन सफ़ेद कपड़े की तरह है, इसे जिस रंग (चिंतन) में डुबोओगे वही रंग चढ़ जायेगा, इसी हेतु शिष्य को हमेशा सकारात्मक चिंतन हीरना है।।.
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जब मन नाना प्रकार के संकल्प, विकल्प करने लगता है, तब शिष्य को विचार रूपी अंकुश से द्वन्द्व्वlan.
Plus d'informations से प्रेमाश्रु निकल पड़े।
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