शिष्य जब तक अपने इष्ट से, गुरू से साक्षात नहीं opér उसका इलाज तो इष्ट के पास ही होता है, प्रिय के पास ही होता है कि जब वे आयेंगे तब मैं उसमें अपने आप सम. जब प्रियतमा का यह भाव साधाक में आ जाता है, जब उसमें कोमलता आ जाती है।
तुम साधनाओं के अजस्त्र भण्डार से जुडे हुये हो, तुम प्राण चेतना के प्रवाह से अनुप्राणित हो हो तुम्हें सम्रवाह सेर्तित करन__vi
बिना गुरू स्पंदन के तुम्हरा शरीर एक खोखला, प्राण रहित रक्त मज्जा का पिंड मात्र हैं। Plus d'informations तुम्हारे इस दुनिया के पास आनन्द का स्त्रोत नहीं है जहाँ जाकर तुम्द में डूब सकों।। जह.
आप साधाना करें, नहीं करें, आप सिद्धियाँ प्राप्त करें अथवा नहीं करें। इस बात की कोई मुझे इच्छा है ही नहीं। मुझमें ज्ञान, तेजस्विता का अंश होगा, तो आप जैसे भी हों, जिस स्थिति में भी आपको आपको कंधोर बिठाकर भी लेकर चला जाऊँगा, इस बर कीर गœuvre
परमात्मा ने कृपा कर अवश्य ही हर व्यक्ति को कोई न कोई विशेषत. ।
वस्तुओं के त्याग में भक्ति नहीं है। Plus d'informations धर्म कभी भी मुनष्य को दैनिक कार्यों का त्याग करने को नहीं कहता, अर्थात् धर्म उसे केवल मानसिक असंतुलन, नैतिकराईयों् तथर्म अजlan
आप जिस प्रकार के है उसका कारण ये है कि आप एक जैसे ही होना चाहते हैं। यदि आप वास्तव में अलग बनना चाहते हैं तो आप आज से ही परिवर्तन की क्रिया प्रारम्भ कर दिजिए। क.
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