एक माह हो गया था मंत्र जप करते-करते, नित्य इसी शमशान की भूमि में Dieu । मंत्र जप करने के उपरान्त अपनी उसी साधना भूमि पर जाकर आगे का क्रम अपनाते— झुंझला उठा जयपाल— या तो अब मैं नहीं यœuvref. Plus d'informations नई देह से फिर साधना करूंगा, लेकिन यूं गिड़गिडा कर ओर रो-झींक कर साधना करने का कोई अर्थ नहीं और वह भी वीर वैताल जैसी साधना जो अपने आप में पूर्ण पौरूष साधना है— पूर्ण पौरूष प्राप्त कर लेने की—नहीं प्राप्त करना मुझे छोटे -मोटे बिम्ब और नहीं प्राप्त करनी मुझे मामूली सी अनुभूतियां न लेनी है कोई टुच्ची सिद्धियां। साधना करनी है तो पूर्णता से करनी है। चाहे वीर वैताल की हो या भैरव की। यदि मैंने कहा और बावन भैरव नृत्य करने लगे तो मेरे साधक होने का अर्थ ही क्या? धिक्कार है मेरे जीवन पर और अपमान है मेरे गुरू निखिलेश्वरानंद जी का— यही सोचते हुये दिन पूर्व जाकर मिला था। पूज्य गुरूदेव से— पूज्य गुरूदेव का वह तेजस्वी और संन्यस्त स्वरूप, जब ऐसी साधनायें उनके आस आस पास ही चरणों में बैठी साधनायें उनके आस तो इस__स. जो वीर-वैताल जैसे प्रचंड़ शक्ति पुंज को अपने वशीभूत कर सके, साधक उसको अपनी देह में उतार सकेर इसी से गोपनीय हो गई यह साधना।
'व्यर्थ नहीं जाती है कोई भी साधना— एक-एक क्षण की साधना का हिसाब है मेरे पास। विश्वास न हो तो पूछ कर देख लें मुझमें मुझमें, मैं ही तैयार कर रहा था तुझे इस साधना का अद्वितीय और सिद्ध साधक बना देने के लिए और कोई भी मंत्र व्य__ère médecins नहीं लिए औ. एक-एक अणु को चैतन्य करने की, उसे शक्तिमान बनाने की जब वीर वैताल की साक्षात् सिद्धि प्राप्तf.
आद्या शंकराचार्य के बाद कोई भी सिद्ध साधक नहीं हो सका है भारत में इसका—। पूज्य गुरूदेव की वाणी से जयपाल के दुःखी मन में कुछ तो र पहुँची लेकिन अभी तीन दिन दूर थेर्णता प्राप्त होने में।. तीन दिन अर्थात 72 घंटे और साधना में निमग्न साधक को को्धि को झपट के के लिएर साधक को तो एक पल पल भ के लिए आतुर साधक को तो एक-पल भ.. उसकी कि पिंजरा खुले और वह झपट ले अपने लक्ष्य को वीर वैतiner
यौवन का उन्माद और विजय की आकांक्षा से एक सुरूर तैर गया जयपiner शक्ति का साकार पुंज वीर वैताल मेरी मुट्ठी में बंद होगiner T क्रिया पूर्ण होने की घड़ी और कोई याचना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, वीर वैताल का प्रकट होना दासत्व स्वीकार करना ही था— मंद चलती हवा एक क्षण के लिए रूकी, ज्यों प्रकृति की ही श्वांस थम गई हो, अचानक एक ओर से आंधी का प्रचण्ड झोंका आया, एक बुगला बनकर उड़ता हुआ, अपने साथ आकाश में उड़ा ले जाने के लिए— अन्तिम पांच आहुतियां शेष घबरा गया जयपाल!
लेकिन आत्म संयम नहीं खोया और उस विशिष्ट रक्षामंत्र का उच्चारण कर उछाल दिये सरसों के दाने उसी दिशा में— थम गई एक प्रचण्डता, लेकिन जाते-जाते भी उस विशाल और बूढे़ वट वृक्ष को जमीन में मटियामेट करते हुए कोलाहल सा मच गया चारों ओर सैकडों पक्षियों के साथ-साथ, वही तो आश्रय स्थली पता नहीं किन किन भटकती आत्माओं की।
आक्रोश प्रकट हो रहा था, भले ही सूक्ष्म रूप में कि कशमशा उठा है वीर वैताल भी एक अनहोनी को घटित होते हुये.. को उद्धत हो गया हो वह अदना भी कहां? दूर बहती नदी में छपछपाहट कुछ और तेज हो गई थी पता नहीं हवा के प्रभाव से या अघटित रही एक घटना को देखने के लिए लिए—
अन्तिम आहुति— सारा वातावरण एक दम से कोलाहल पूर्ण हो उठा सैकड़ों प्रकार की चीखें हलचलर और भगदड़, ज्यों कोई बहुत दुर्घटना हो गई हो. अब इन सबसें क्या होना हैं— जो कुछ सम्पन्न करना था मुझे वह तो मैनें कर ही दिया, अब तो बाजी मेरे हाथ में हैं।।।. लाख भयभीत कर ले कोई भी मुझे लेकिन इन सबके स्वामी वीर वैताल को तो आज मैंने अपने वश में. भला असफल कैसे हो सकती थी मेESU कृशकाय ताम्र वर्णी लेकिन चेहरे पर बिखरी हुई ऐसी वीभत्सता जो कि देखते ही न न बने। अत्यन्त घृणित और भयास्पद चेहरा आँखे मानों गड्ढों में धंसी जा रही हो और उस क्रूरता से भरी आँखों में अग्नि की ज्वाला प्रकट हो रही थी, लेकिन दोनों हाथ अभ्यर्थना में जुड़े हुए— एक प्रकार से अपनी पराजय स्वीकार करते हुये, एक ओर रखी मदिरा की बोतल उछाल दी जयपाल ने उसकी ओर साधना की पूर्णता और उसकी अभ्यर्थना को स्वीकार करने के लिये— तंत्र की एक ऐसी क्रिया जिसका रहस्य तो केवल परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के पास ही सुरक्षित बचा था और जिसे उन्होंने प्राप्त किया था अपने साधक-जीवन में आद्य शंकराचार्य की आत्मा को अपने योग बल से प्रत्यक्ष कर— रोम-रोम हर्षित हो रहा था, आज मैनें एक अप्रतिम साधना प्रत्यक्ष कर स्वयं तो एक सिद्धि प्राप्त की ही है, एक दुर्लभ शक्ति को हस्तगत किया ही है, साथ ही आज मैंनें अपने गुरू Plus d'informations
वैताल साधना मूलतः तांत्रेक्त साधना होने के उपरांत भी यदि इस ढंग से की जाये तो्य साधना है। से ज. किसी भी शनिवार को यह साधना सम्पन्न कर व्यक्ति अदृश्य रूप में एक रक्षक प्राप्त कर लेता है फिरक्षक प्राप्तferci T भी ज्ञान प्राप्त कर लेना या धन या भोजन की निरन्तर प्राप्ति बायें हाथ का खेल होता है।। ब. वास्तव में प्रत्येक गुरू अपने शिष्य को आंशिक रूप में ही सही सही, वैताल सिद्धि अवश्य प्रदान करते है सिद्धि अवश्य प्रदान करते है
वैताल साधना के लिए आवश्यक है कि साधक हर हाल में वैतiner वैताल सौम्य स्वरूप में ही उपस्थित होता है लेकिन उसका स्वरूप विकराल और भयानक है। इसे कमजोर दिल वाले साधकों और अशक्त व्यक्तियों को वैताल साधना करने से पूर्व पूज्य गु__ère इस प्रयोग में न तो कोई पूजा और न कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, तांत्रिक ग्रथों के अनुसरूर प्रयोग के लिए तीन उपक्रथों के opération इस. 1 सिद्धि प्faceère
इसके अलावा साधक को अन्य किसी प्रकार की सामग्री की जरूरत नहीं होती।। यह साधना रात्रि को सम्पन्न की जiner साधक रात Joh या एकांत स्थान में बैठ जाये।
फिर सामने एक लोहे के पात्र या स्टील की थाली में वैताल यंत्र को सtenir इसके पीछे भगवान शिव अथवा महाकाली जीवट को स्थापित कर दें, फिर साधक हiner
ध्यान के उपरांत साधक वैताल माला से मंत्र की 21 माला मंत्र जप सम्पन्न करे। यह मंत्र छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और मुण्ड़ माल तंत्र में इस्र की्यन्ड़्त प्रशंसा की है इस मंत्र की अत्यन्त प्रशंसा की है है है। इस मंत्र को पूर्ण चैतन्य वीर वैताल शक्तिपात दीक्षा प्राप्त कर धारण करने से मंतtenir
जब मंत्र जप पूर्ण होता है अथवा मंत्र जप सम्पन्न होते-होते्यन्त्त सौम्य स्वरूप में वैताल स्वयं हाथ सौम्य स्वरूप में्रगट स्वयं ह. T में अदृशtenir
दूसरे दिन साधक प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत होकर वैताल यंत्र, वैताल माला और वह भोग किसी्दिर में रख दें अथवा नदी. महाकाली या भगवान शिव जीवट को पूजा स्थान में स्थापित कर दें।
Il est obligatoire d’obtenir Gourou Diksha du révéré Gurudev avant d'effectuer une Sadhana ou de prendre une autre Diksha. S'il vous plaît contactez Kailash Siddhashrashram, Jodhpur à travers Email , whatsApp, Téléphone or Envoyer la demande obtenir du matériel de Sadhana consacré sous tension et sanctifié par un mantra et des conseils supplémentaires,