संसार में मनुष्य जीवन ही सर्वश्रेष्ठ कहा जाता हैं, और जो मनुष्य अपना जीवन पूर्णता के साथ जीता हैं, अर्थात् जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता हैं, आनन्द प्राप्त करता है उसका जीवन ही श्रेष्ठ कहा जा सकता हैं। सृष्टि का नियम हैं कि संसार में जो भी वस्तु उत्पन्न होती हैं उसका क्षय अर्थात् अंत अवश्य होता हैं कुछ्षय अ्थायी्तlan अर्थात् निरन्तर उत्पत्ति, निर्माण और विखण्डन की क्रियाये गतिशील हती हती हैं। विखण्डन की. Plus d'informations
Plus d'informations उनके पिता ऋषि जमदग्नि के पास कामधेनु गiner तप स्थली से वापस आकर जब उन्होंने कामधेनु को आश्रम में नहीं देखा तो अत्यधिक क्रोधाग्नि से उदिग्न होकर सहस्त्रबाहु की सेना से युद्ध में अपने फरसे से उसका सर काटकर अपने पिताश्री के चरणों में रख दिया और कामधेनु गौ वापस आश्रम में ले आये। लेकिन इसके बाद भी सहस्त्रबाहु के पुत्रे ने ऋषि के आश्रम पर पुनः आक्रमण कर जमदग्नि का मस्तक काटकर ले गयें, भगवान परशुराम को जब यह विदित हुआ तो उन्होंने संकल्प लिया कि मैं पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दुंगा, तब ही फरसे को नीचे रखूंगा। पुनः युद्ध कर अपने पिता का मस्तक लेकर आये और संजीवनी विद्या द्वारा पुर्नजीवित कर दिया।
अक्षय तृतीया जो कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन आती है है, वीर सिद्धि दिवस हैं हैं हैं इस दिनर भाव प्राप्ति हेतु बाधाओं और शत्रुओं क्राप्ति कœuvre इसके अलावा अक्षय तृतीया में और भी विशेष गुण होते हैं हैं, जिसके कारण इस दिवस का महान महत्व हैं।
सर्वसौभाग्य प्राप्ति दिवस अक्षय तृतीयiner क्षय हो जाती है, दीपावली, अमावस्या, चर्तुदशी को सम्पन्न करनी पडती है लेकिन लेकिन्षय तृतीया की तिथि कभी क्षय नहीं होती होती अक्षय तृतीया की तिथि भी क्षय नहीं होती होती।।।.
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अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है है इस कारण लक्ष्मी से सम्बन्धित साधनायें विशेष ूप्ष्मी से..
मनुष्य प्रत्येक शुभ कार्य मुहूर्त इतtenir
इस दिन किसी भी पtenir
श्रेष्ठ वर अथवा वधू की प्राप्ति के लिये और विवाह बाधा दोष निवारण के लिये भी यह्रेष्ठ पर्व है। के लिये भी श्रेष्ठ पर्व है।।
प्रत्येक व्यकtenir लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं हैं, यह तो लक्ष्मी का एक अत्यन्त छोटा सा रूप हैं, महाकाव्यों में आदि ग्रन्थों में लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों का, विभिन्न नामों का जो वर्णन आया है, उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करना हैं।
लक्ष्मी का तात्पर्य हैं- सौभाग्य, समृद्धि, धन-दौलत, भाग्योदय, सफलता, सम्पन्नता, प्रियता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं और इन्हीं गुणों के कारण भगवान विष्णु ने भी लक्ष्मी को अपनी पत्नी बनाया, जब इन सब गुणों का समावेश होता है और जो इनको प्राप्त कर लेता है, वही वास्तविक रूप से लक्ष्मीपति हैं।। व.
मनुष्य क्या है- आदि पुरूष भगवान विष्णु का अंश, उनकी सृष्टि का एक लघु स्वरूप, फिर क्या कारण है, कि उसके पास लक्ष्मी का एक छोटा सा भी स्वरूप नहीं है, यह सत्य है कि लक्ष्मी के ये स्वरूप यदि किसी व्यक्ति के पास हो Plus d'informations लक्ष्मी जीतने की वस्तु नहीं है, जिसे जुये में प्राप्त किया जा सके, लक्ष्मी तो मन्थन अर्थात् प्रयत्न अथक प्रयत्न, गहनतम साधनाओं का वह सुन्दर परिणाम हैं, जो साधक को उसकी साधनाओं के कार्यों के श्रीफल के रूप में उसे प्राप्त होती हैं, उस लक्ष्मी T केवल धन की प्राप्ति ही सब कुछ नहीं है है, धन तो लक्ष्मी का एक अंश हैं, क्या धन से ूप, सौन्दर्य प्राप Joh कर सकते है है्य्दर्य प्राप्त कर °nôle हैं.? क्या धन से सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं?
जो व्यक्ति लक्ष्मी का अर्थ केवल धन धन मुद्रœuvrevi और पैसे ही लेते है तो बहुत गलती करते हैं, पूर्ण लक्ष्मी्मी होने क गलती क__èref. अपितु सौभाग्य में भी वृद्धि हो, राजकीय सुख एवं शक्ति प्राप्त हो, वह जो कार्य करे, उसी के अनुरूप उसे यश प्राप्त हो और यह यश श्रेष्ठ दिशा में होना चाहिये, लक्ष्मी के सम्बन्ध में जितने ग्रंथ लिखे गये हैं, उतने ग्रंथ शायद ही किसी अन्य विषय पर लिखे गये हों, जब व्यक्ति लक्ष्मी को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लेता है, तो वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, भौतिक सुख पूर्ण रूप से प्राप्त होने पर ही वह ज्ञान और वैराग्य के मार्ग पर बढ़ सकता है।
मेरा तो यह कहना है कि यदि कंगाल, निर्धन व्यक्ति घर छोड़ कर साधना की ओर, हिमालय की ओर, संन्यास कीœuvre सकता है? सूर्य तो अपनी जगह स्थिर है, व्यक्ति अपनी आंखों के सामने पर्दा कर देता है। उसी प्रकार जो लक्ष्मी को तुच्छ कहते हैं, उसके संबंध में निन्दात्मक वाक्य लिखते हैं, वे व्यक्ति वास्तव में डरपोक, निर्बल और कायर हैं, जो जीवन में कुछ प्राप्त करने में असमर्थ होने पर इस जीवन के महत्व को ही नकारना चाहते हैं, लेकिन सत्य Plus d'informations
अक्षय तृतीय का महत्व भी उतना ही है, जितना विजयादशमी या दीपावली का सिद्ध मुहूर्त हैं, इसर्ष अक्षय तृतीया पर्व 03 मई सोमव. बृहद रस सिद्धांत महाग्रंथ में अक्षय तृतीय के सम्बन्ध में लिखा है, कि दिवस दिवस जीवन स की की्षय खान हैं उसमें यह दिवस प प्राप्त कर सको. Plus d'informations Plus d'informations गृहस्थ पत्नी को गृह लक्ष्मी कहता है, उसके लिये अक्षय तृतीया अनंग साधना का दिवस है है अक.
शाक्त प्रमोद में लिखा हैं कि जो साधक अक्षय तृतीया के महत्व को जानते हुये भी पूजा, साधना नहींरता वहर्भाग्याशाली है। करता वह दुर्भ्य्याशाली है। करत.
अक्षय तृतीया के पूजन में मंगल घट, रक्त चंदन, श्वेत पुष्प, शुद्ध घी का दीपक, अक्षय लक्ष्मी यंत्र, मोती शंखा अक्षय लक्ष्मी्मी म्र, मोती शंख.
इस लक्ष्मी प्रदायक दिवस का साधना विधान अत्यन्त सरल है और यही बात है कि प्रत्येक गृहस्थ को इसे सम्पन्न करना चाहिये, लक्ष्मी का विशेष स्वरूप गृहस्थ से ही जुड़ा रहता है और गृहस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन में इच्छाओं, कामनाओं के साथ बाधाओं, भय, यश -अपयश, सौभाग्य-दुर्भाग्य से जुड़ा होता है, इस कारण गृहस्थ तथा गृहस्थ जीवन में्रवेश करने वाले व्यक्ति के लिये यह्रवेश करने वाले व्यक्ति के लिये यह्यक है।
सर्व प्रथम तो यह आवश्यक हैं, कि आपका घर साफ सुथरा एवं स्वच्छ होना चाहिये, जहां गंदगी होती है वहां लक्ष्मी काहिये, जहां गंदगी होती है वहां लक्ष्मी.
अपने पूजा स्थान में, साधना स्थल में, अथवा जिस कमरे में पूजा करे, उस जगह में आपको शांति अनुभव हो, अपना ध्यान केन्द्रित कर सके। हो। ध.
पति-पत्नी दोनों साथ-साथ पूजा कर सकते हैं हैं, इस विशेष दिन यदि किसी क कार्य वश पति घर में नहीं हैं, तो पत्नी पति के्म कर संकल्प भर कर स्नी...
साधना पूजा स्थान में सुगन्धित महकता हुआ वातावरण रखें इसके लिये सुगन्धित अगरबत्ती पूजा से पहले ही जला लें, उस्थान पर इत्र इत्यादि.
साधक, सामग्री की पूर्व व्यवस्था कर साधना स्थल पर, पूर्ण प्रेम से, प्रसन Joh
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations Plus d'informations घी का दीपक जला दें, एक ओर सुगन्धित धूप जला दें, अब इस मंगल घट के सामने चावल की ढेरी बनाकर मोती शंख्थापित करें इसके nég आगे्ट. थापित करें, प्रत्येक के ऊपर चन्दन तथा केसर का टीका Plus d'informations Plus d'informations त करें।
साधक मूल पूजा आरम्भ करता है, लेकिन उसके पहले विशेष बात तो आवश्यक हैं कि इस सब व्यवस्था के पश्चात् साधक अपने आसन पर जिस प्रकार भी आराम से बैठ सकता है, पहले कम से कम दस मिनट तक गुरू का ध्यान करें, मस्तिष्क में विचारों का प्रवाह चलता रहेगा- उसे चलने दें, अपनी आँखे बन्द रखें और अपने संकल्प को दोहरायें, न कि्ष्य्य को, धीरे-धीरायें, अपूर्व श्ष्य.
अब आप दायें हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि- हे अक्षय लक्ष्मी! अपनी ग्यारह शक्तियों सहित यहां स्थित होकर मेरा पूजन सफल करें और अभिष्ट सिद्धि प्राप्त करने हेतु आपकी__ère मध्य में रखे हुये कलश में से नारियल हटाकर उसमें 11 सुपारी और एक पुष्प डालें, तथा नारियल पुनः स्थापित कर दें। अक्षय लक्ष्मी के ग्यारह स्वरूपों का पूजन प्रारम्भ होता है, मोती शंख के आगे बीज मंत्र का सम्पुट देते हुये उस पर पुष्प, चावल, कुंकुम, चंदन तथा सुपारी अर्पित करें, प्रत्येक बार अर्पण के समय नीचे दिये गये मंत्र का क्रमानुसार जप करें, इस प्रकार अक्षय लक्ष्मी सिद्ध यंत्र के आगे निम्न मंत्र की 5 आवृति सेnce करें
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अब एक थाली में 'स्वास्तिक' कुंकुम से बना कर उस पर दीपक अथवा आरती रख कर पूर्व मनोयोग से लक्ष्मी की आरती सम्पन्न करें तथा आरती के पश्चात् मानसिक रूप से गुरू ध्यान कर गुरू आशीर्वाद प्राप्त कर अपना स्थान छोड़ दें। यह पूजा, साधना अत्यन्त ही प्रभावकारी एवं हर साधक के लिये उपयोगी ही है है।
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