Plus d'informations देवताओं और राक्षसों में भी जन्म लेने की क्रिया नहीं है है, इसलिये मनुष्य जन्म को ब्रह्माण्ड.
परन्तु जिसके जीवन में यह चिन्तन नहीं है कि मुझे प्रभु ने क्यों जन्म दिया है, मेरे जीवन की क्या गति है? जिसमें यह धारणा नहीं है, तो उसमें और पशु में कोई अन्तर नहीं है।।
Plus d'informations मनुष्य जीवन का क्या उद्देश्य है इसे देवता भी नहीं बता सकते, क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया ही नहीं वे इस मर्म को नहीं. परन्तु गुरू ने जन्म लिया है और जन्म लेकर पूर्णता तक पहुँचा है, इसलिये वह शिष्य को उस जगह तक पहुँचा सकता है। वह शिष्य को जगह जगह तक पहुँचा सकता है।।। शिष.
Plus d'informations जिस क्षण गुरू तुम्हें दीक्षा देता है, जिस क्षण वह तुम्हें अपने मुँह से शिष्य कह देता है, ठीक उसी क्षण तुम्हारा नया जन्म होता है, उसी क्षण वह ब्रह्मा बनकर तुम्हारी उत्पत्ति करता है, वही क्षण तुम्हारे जीवन का स्वर्णिम प्रभात होता है, वहीं से तुम्हारा नवजीवन शुरू होता है।
गुरू तुम्हें मात्र दीक्षा नहीं देता है, वह तुम्हारे रक्त को शुद्ध करता है, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी का छल कपट कपटœuvre गुरू तुम्हें एक चिन्गारी देता है, एक क्रान्ति देता है, एक विस्फोट देता है और मृत्यु से अमृतtenir
मैंने तुम्हें उसी पगडण्डी पर अग्रसर किया है, जहां अमृत्यु है, जहां चेतना है, जहां प्राण है, जहां पूर्णता है।।. मैं तुम्हें ऐसा ही आशीर्वाद दे रहा हूँ कि तुम्हें जीवन में पूर्णता और श्रेष्ठता प्राप्त हो।
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