अभिषेक का तात्पर्य है 'सिंचन करना' यiner प्रकृति संसार में वर्षा के माध्यम से पtenir जब इनका संयोजन उचित गति से चलता रहता है तभी प्रत्येक प्राणी, जीव या पौधा विकसित होता है। केवल एक तत्व के माध्यम से अभिषेक संभव नहीं है, प्रकृति तो अपना कार्य अनवरत रूप से करती ही रहती है, लेकिन मनुष्य परमात्मा की इस क्रिया में विघ्न डालकर संतुलन बिगाड़ देता है और जब एक बार संतुलन बिगड़ने लगता है तो पूरी प्रजाति को पीड़ा भोगनी पड़ती है।
अभिषेक का तात्पर्य है उस जड़ का सिंचन करना, जो उसे अर्थात पूरे वृक्ष कोtine. जीवन में अभिषेक का तात्पर्य है देह के भीतर स्थित भुवः स्वः इत्यादि को जाग्रत कर सकें।। इत्य. यह क्रिया देह से ऊपर उठने की कtenir
इस दीक्षा के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन में उच्चता, श्रेषtenir जिससे व्यक्ति सद्गुरूदेव के आत्म, मन, ज्ञान, चेतना और आर्शीवाद से युक्त होकर ही शीतलता और शांति प्राप्त कर सकते है जो. सद्गुरू की शिषtenir
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