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शिष्य के लिये गुरू ही माता, पिता, बंधु और सखा होते हैं हैं, अतएव उसे अपनी समस्त चेतना गुरू चरणों में ही लगाये रखनी चाहिये।
Plus d'informations जागते करता रहता है।
शिष्य को गुरू के सोने के बाद ही सोना चाहिये और गुरू के उठने से पहले ही शया का त्याग कर देना चाहिये। चाहे कितना ही कठिन एवं असम्भव काम क्यों न सौंपा जाये शिष्य का मात्र कर्त Joh
गुरू शिष्य की बाधाओं को अपने ऊपर ले लेते हैं हैं अतैव यह शिष्य का भी धर्म है कि वह गुरू की चिंताओं एवंर्म है हट अपने गुरू की्राओं एवंरेशानियों को हट के के प्राणपण सेरेशानियों को हट.
शिष्य का मात्र एक ही लक्ष्य होता है और वह है अपने हृदय में स्थायी ूप सेरू को स्थापित क्थायी ूप सेरू को स्थापित करना।
जब होठों से गुरू शब्द उच्चारण होते ही गला अवरूद्ध हो जाये और आँखें छलछला उठे तो समझें कि्यता का पहला कदम उठा उठे तो समझें शिष्यत.
जब 24 घंटे गुरू का एहसiner
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