ऐसी ही तो है मृगाक्षी रूप गर्विता। ° समर्थ, गर्व जो कि उसमें समाया हो अपनी आन्तरिकताओं को लेकर और ऐसा ही मादक गर्व जो घंटियों की तरह खनकते हुये आकœuvre T भूल जाती है कि वह कहां है, और कैसे है? तो घनी से घनी रात में भी खिल जाते है, सौ-सौ दीपक ज्यों दीपावली अभी गई न हो हो हो, जाते जाते फिर लौट आई हो उसे भी पत पतœuvre भीतर से झांकती, स्वच्छ श्वेत छोटी और सुघड़ दंत पंक्ति की झिलमिलाहटों से भर जाती है मन में में जीवन में्हटों. दाडि़म के दानों की तरह एक पर एक चढ़ गये दांत और स्वस्थ कपोलों की आभ cérémé बाणों की संज्ञा क्योंकि मृगाक्षी की मादक खिलखिलाहट की उसमें गणना ही नहीं की गई है है ज जिससे जन अपन. पाते, विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा नारी स्वर भी हो सकता है। मंद पीत आभा के रेशमी वस्त्रें से सुसज्जित, सुडौल अंगो से युक्त, मादक छवि वाली, मध्यम कद की यह ूप ूप गर्वितœuvre वक्षस्थल को मर्यादा में बांधने का असफल प्रयास करते स्वर्ण तारों से रचित आभूषण मण्डल——- जिसके शरीर से आती मादकता की ध्वनि इन नूपुरों के संगीत को भी अपनी परिभाषा भूल गया हो और निहार रहा हो मृगाक्षी के चेहरे को खुद अपने-आप को वहां खिला देखकर आश्चर्यचकित हो कर।
तभी तो धन्वनtenir सम्पूर्ण शास्त्र लिखने के बाद भी उन्हें वह उपiner शिथिल पड़ गया शरीर और इन्द्रियों को पुनः यौवनवान बना दें क्योंकि यौवन के अभाव में तोर व्यर्थ है सारी चिकित्सा पद्धति ।__èref. शरीर निरोग हो लेकिन उसमें यौवन की छलछलाहट न आये आये उसमें कुछ प्राप्त कर लेने की की किसी को अपना बना लेने की अदम्य लालसायें न उफन ही अपन हों फिœuvre Plus d'informations कितने प्रकार की जड़ी-बूटियों, कितने प्रकार की भस्म, कितने प्रकार के लेप और सभी प्रकार के रस का प्रयोग करके देख चुके थे, लेकिन कोई नहीं सिद्ध हुआ उनकी आशाओं पर पूर्ण रूप से खरा उतरता हुआ और तभी उन्हें प्राप्त हुआ यह साधना सूत्र । साधना जगत में वे तो कल्पना भी नहीं कESV खिलेगी इस शरीर और मन में यौवन की तरंगे और सच भी तो है, बिना सौन्दर्य साक्षात् किये, बिना ऐसे सौन्दर्य को बांहों में भरे, फिर कहां से फट सकी है, इस जर्जर शरीर में यौवन की गुनगुनाहट और उल्लसित हो गये आचार्य धन्वन्तरी चिकित्सा शास्त्र Plus d'informations
वे तो सिद्धतम आचार्य हुये है, इस चिकित्सा जगत के ही नहीं नहीं, साधना जगत के भी। और उन्होंने ढूंढ निकाली मृगाक्षी रूप गर्विता को अपने वश में करने की एक नवीन पद्धति। सच तो है कि मृगाक्षी खुद आतुर हो गयी, ऐसे कामदेव युक्त युग पुरूष का सानिध्य प्राप्त करने को, और इसी तœuvre इसने फिर आगे मार्ग प्रशस्त कर दिया प्रत्येक साधक के लिये जो आतुर हो अपने जीवन को नवयौवन से भरने के लिये।. ऐसे सौन्दर्य का सानिध्य पाकर अपने जीवन में कुछ नया रचित कर देने के लिये।। एक साधारण सी अप्सरा साधना नहीं या सामान्य मृगाक्षी रूप अप्सरा साधना नहीं यह तो अप्सराओं में भी सर्वश्रेष्ठ, रूप का आधार, रूप गर्विता की उपाधि से विभूषित, एक नारी देह में घुला सौन्दर्य अपने रग-रग में बसा लेने की बात है। जब एक बार मृगाक्षी का स्पर्श सiner
Plus d'informations Plus de détails Plus d'informations Tous les autres Plus d'informations कर लें दिशा बंधन नहीं है।
T इसका पूजन पुष्प पंखुडि़यों, अक्षत, एवं सुगंधित इत्र से करें तथा निम्न मंत्र मृगाक्षी अप्सरœuvreœuvre घी का दीपक प्रज्जवलित रहे। यह 108 दिन की साधना है। प्रतिदिन साधना के उपरान्त यंत्र एवं माला को वहीं स्थापित रहने दे तथा उसे किसीnce
प्रतिदिन एक माला अर्थात् 108 बार उच्चारण करने के साथ-साथ अंतिम दिन इस मंत्र की 11 माला मंत्र जपरना है। अतः उस दिन साधना में एकाग्र होकर सावधiner °
साधना पूर्ण होते-होते कमरे में सुगन्ध बढ़ती दिख सकती है या प्रकाश बढ़तiner
इस प्रकार यह जीवन की परिवर्तनकारी साधना सम्पन्न होती है और आधार बन जाती है आगामी साधनाओं की सफलता का क्योंकि जहां ऐसी श्रेष्ठ पुष्पदेहा का साहचर्य हो वहीं प्रेम की कोमलता है, फिर वहीं यौवन की चमकमी बिजली जैसी तीव्रता है और जो आधार है किसी भी साधना या विद्या को प्राप्त कर लेने का। जहां प्रेम का जागरण होता है, वहीं अनन्त संभावनाओं के द्वार खुलते है। यदि प्रेम का ही अभाव हो तो जीवन में उत्साह, उमंग, नवचेतना, स्फूर्ति नहीं आ सकती।।
जिनके मन में प्रेम पैदा होता है। वे स्वतः ही इन गुणों के स्वामी हो जiner ऐसा नव यौवन जो मधुरता, प्रेम से भरा हो उसी मचलते यौवन पर तो सैकडों युवक-युवतियां अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार हते है।।. ऐसा ही तो होता है है मृगाक्षी अप्सरा का सानिध्य और वह मृगाक्षी रूप अप्सरा दीक्षा व साधना सामग्री पाकरère दीक्षा व्वयं.
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