Le meilleur du monde s'épanouit dans cette belle et spacieuse ville d'Ilapura
वन्दे महोदारतरं स्वंभावं घृष्णेश्वरारव्यं शरणं प्रपघे ।।
°
भगवान शिव का बारहवां ज्योतिर्लिगं घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिगं है, इन्हें घृष्णेश्वर और घुसृणेश्वर के नाम भी ज्णेश्वर और घुसृणेश्वर के नाम से भी जाना जर घुसृणेशर के के. यह ज्योतिर्लिगं अजन्ता एवं एलोर की गुफाओं के देवगिरी के समीप तड़ाप में अवस्थित है। Plus d'informations ज्योतिर्लिगं घुश्मेरा के समीप ही एक सरोवर भी है, जिसे शिवालय नाम के जाना जाता है। T
घुश्मेशtenir ° बाद में महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इस ज्योतिर्लिगं के सम्बन्ध में शिवपुराण में यह कथा प्राप्त होती है।
पtenir Plus d'informations विवाह के बहुत वर्ष बीत जाने पर भी उनके कोई संतान नहीं हुई, जिससे पति पति्नी सदैव दुःखी हते थे थे।
सुदेह की एक छोटी बहन घुश्मा थी जो सदैव शिवभक्ति में तल्लीन रहती थी, और प्रतिदिन 108 शिवलिंगों की पूजा किया करती थी। सुदेहा ने ज्योतिषियों आदि से गणना करा कर अपने पति का विवाह घुश्मा से करवा दिया। विवाह के पश्चात् भी घुश्मा की शिव पूजा यथावत् चलती रही और प्रतिदिन 108 पार्थिव लिंगों का पूजन करके वह उन सब को समीप समीप सरोव__° मेंर्जित कर देती थी समीप समीप के opér शीघ्र ही घुश्मा को पुत्र लाभ हुआ। जैसे-जैसे पुत्र बड़ा होता गया, वैसे ही वैसे सुदेहा के मन में बहन के प्रति द्वेष बढता गया।
एक दिन रात Joh
पुत्र वध की जानकारी होने पर भी निर्विकार भाव से घुश्मा अगले दिन प्रातः पूजन कर समाप्त करके शिवलिंगों को विसर्जित करने सरोवर पर गयी। विसर्जन करके वह लौटने लगी तो उसक उसका पुत्र भी सरोवर से जीवित निकल निकल आया। तभी भगवान शंकर भी प्रकट हुये और घुश्मा से वर माँगने को कहा। घुश्मा ने अपनी बहन सुदेह के द्वेष नाश और सद्भावना की प्रार्थना की और कहा कि संसार की ° क्षा और कल्याण. तब से भगवान शिव ज्योतिर्लिगं रूप में वहाँ प्रतिष्ठित हुये और घुश्मेश्वर महादेव नाम से विख्यात हुये।.
इस पtenir जगद्गुरू आदि शंकराचार्य भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की महिम.
Ceci est dit dans l'ordre des douze âmes Shiva porteuses de lumière.
स्तोत्रं पठित्वा मनुजाऽतिभक्तया फलं तदालोक्या निजं भजेच्च ।।
अर्थात-यदि मनुष्य वर्णित बारह ज्योतिर्लिगों के सtenir Plus d'informations
अर्थात-स्वतः ही प्रगट हुये हैं। अनेक सदियों से इनकी पूजा-अर्चना होती चली आ रही है, और सांसारिक मनुष्यो को भगवान शिव केर्शीवाद व चमत्कारों अवगत अवगत करती हींर्शीवाद व चमत्कारों अवगत अवगत करती हीं है।। व. समय क्रम में अथवा अन्य कई कारणों से मनtenir वैसे तो धरती पर असंख्य शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन इन बारह शिवलिंग को्योतिर्लिंग का विशेष दर्जा प्राप्त है व्हें भगवा भगवर्जा प्राप्त्त्थस्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्थलों्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त.
श्रावण पूर्णिमा शिव गौरी पूर्णता पर्व पर शिवलिगं पर अभिषेक करते हुये परिवार के सभी सदस्यों को सद्गुरूदेव द्वारा उपहार स्वरूप फोटो द्वारा दीक्षा प्रदान कर सुहाग रक्षा ललिताम्बा संतान लक्ष्मी वृद्धि लॉकेट धारण करने से द्वादश ज्योतिर्लिगं मय चेतना से युक्त हो सकेगें। इस लॉकेट के पtenir लॉकेट हेतु कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में श्रावण पूर्णिमा से पूर्व सम्पर्क करने पर आपके नœuvre
Nidhi Shrimali
Il est obligatoire d’obtenir Gourou Diksha du révéré Gurudev avant d'effectuer une Sadhana ou de prendre une autre Diksha. S'il vous plaît contactez Kailash Siddhashrashram, Jodhpur à travers Email , whatsApp, Téléphone or Envoyer la demande obtenir du matériel de Sadhana consacré sous tension et sanctifié par un mantra et des conseils supplémentaires,