इसलिये गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू की पूजा अर्चना कर साधक गुरू के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट करता है, व शिष्य का हित इसी में है कि वह अपने गुरू से निरन्तर सम्पर्क साधना-दीक्षा के माध्यम से बनाये रखें जिससे वह गुरुमय बन सकें अर्थात जिस तरह से गुरू पूर्ण है ठीक उसी तरह साधक भी हर स्वरूप में पूर्णमय बन सकें सकें।
Plus d'informations Plus d'informations ुरू का अर्थ ही है- ज्ञान, तृप्ति, आनन्द, मस्ती, सि Plus d'informations रही है और रहेगी।
शास्त्रों में गुरू को जीवन्त-जाग्रत देव स्वरूप के सम्पूर्ण व्यक्तित्वमय स्वीकार किया है जो देवता और मनुष्य के बीच जुड़ाव की कड़ी है, अतः गुरू सानिध्य में गुरू साधना करने से ही जीवन में असुरमय विषाद्, रोग, कष्ट, बाधायें और भटकाव समाप्त होते हैं ।
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus tard, plus loin Plus d'informations होती हैं। इसी से सांसारिक गृहस्थ जीवन में सत, रज, ओज युक्त सभी सुलक्ष्मियोंमय क्रियाशील स्थितियां निर्मित होती हैं, इसी हेतु विशेष आषाढ़ी चन्द्र ग्रहण गुरू पूर्णिमा महापर्व के शुभ अवसर पर फोटो द्वारा दीक्षा ग्रहण करने से परिवार में नारायण भगवती शिवमय स्थितियां निर्मित होंगी। °
साधना सामग Joh
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