Plus d'informations अक्सर फ़ासला इतना हो जाता है कि हम सोचते हैं, बीज तो हमने बोये थे अमृत के, न मालूम कैसा दुर्भाग्य है कि फल के के उपलब्ध हुये.!
लेकिन इस जगत में जो हम बोते हैं उसके अतिरिक्त हमें कुछ भी नहीं मिलता है, न मिलने का कोई उपाय है। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations यद्यपि हो सकता है यात्रा करते समय हमने अपने मन में कल्पना की मंजिल कोई और बनायी हो।रास्ते को कोई इससे्रयोजन नहीं है. मैं नदी की तरफ़ नहीं जा रहा हूं। मन में सोचता हूं कि नदी की तरफ़ जा रहा हूं, लेकिन बाजार की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर चलूंगा मैं कितनाने ही सोचूं कि मैं नदी कीर चलूंगा ह हा ही सोचूं कि मैं नदी की तरफ़ जा रहा हूं, मैं मैं पहुँचुंग पहुँचुंग .cre ही। जा रह. सोचने से नहीं पहुंचता है आदमी। Plus d'informations Plus d'informations
आप कोई भी सपना देखते रहें, अगर बीज आपने नीम के बो दिये हैं और सपने में शायद यह सोच रहे हो कि उससे आपको कोई स्वादिष्ट्ट. Plus que jamais ! फल आपके बोये बीजों से निकलते हैं। इसीलिए आखिर में जब नीम के कड़वे फल हाथ में आते हैं तो शायद आप दुःखी होते हैं हैं, पछताते हैं और सोचते हैं कि मैंने तो बीज बोये थे अमृत के फल फल. Plus d'informations Plus d'informations आपने कल्पना क्या की थी, उससे बीजों को कोई प्रयोजन नहीं है। हम सभी आनंद लेना चाहते हैं जीवन में लेकिन आता कहां है आनंद! हम सभी शांति चाहते हैं जीवन में, लेकिन मिलती कहां है शांति! हम सभी चाहते हैं कि सुख, महासुख ही बरसे, पर बरसता कभी नहीं। तो इस संबंध में एक बात इस सूत्र में समझ लेनी जरूरी है कि हम हमारी चाह से नहीं आते फल, हम जो बोते हैं उससे आते हैं।। नहीं नहीं फल फल हम जो बोते हैं आते हैं हैं। हम चाहते कुछ हैं, बोते कुछ हैं। हम बोते जहर है और चाहते अमृत हैं। इसलिये जब फल आते है तो जहर के ही आते हैं, दुःख और पीड़ा के ही आते हैं, नरक ही फलित होता है। Plus d'informations जीवन भर चलकर हम सिवाय दुःख के रास्ते पर और कहीं भी नहीं पहुँचते हैं हैं। रोज दुःख घना होता चला जाता है। Plus d'informations रोज मन पर संताप के कांटे फैलते चले जाते हैं और फूल आनंद के कहीं खिलते हुये मालूम नहीं पड़ते। पैरों में पत्थर बंध जाते हैं दुःख के, पैर नृत्य नहीं कर पाते हैं। उस खुशी में जिस खुशी की हम तलाश में है। क्योंकि कहीं न कहीं हम, हम ही- क्योंकि और कोई नहीं है- कुछ गलत बो लेते हैं।। Plus d'informations
जो हम बोयेंगे वही हमको मिलेगा। जीवन में चारों ओर हमारी ही फैंकी हुई ध्वनियां प्रतिध्वनित होकर हमें मिल जाती हैं। थोड़ा समय अवश्य लगता है। Plus d'informations जब तक लौटती है तब तक हमें ख्याल भी नहीं रह जाता कि हमने जो गाली फैंकी वही वही वापस लौट रही है।।
Plus d'informations उसके साथ दस-पंद्रह सन्यासी थे। उसके पैर में जोर से पत्थर लग गया, रास्ते पर खून बहने लगा, शिष्य आकाश की तरफ़ हाथ जोड़ कर किसी्द-भाव में लीन हो गयाथ जोड़ .ve उसके साथी भिक्षु हैरानी में खडे़ रह गयें शिष्य जब अपने ध्यान से वापस लौटा। तब उससे पूछते हैं कि आप क्या कर रहे थे? पैर में चोट लगी, पत्थर लगा, खून बहा और आप कुछ इस प्रकार हाथ जोड़े हुये थे जैसे किसी को धन्यवाद दे हे हों। हुये थे जैसे किसी धन्यवाद दे हे हों।।। थे जैसे किसी धन्यवाद दे हे हों।।। Plus d'informations, plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations आज नमस्कार करके धन्यवाद दे दिया हूं प्रभु को, कि अब मेरे बोये हुये विष बीज से कुछ भी नहीं बच.
लेकिन अगर आप को रास्ते पर चलते वक्त पत्थर पैर में लग जाये तो इसकी कम कम संभावना है कि आप ऐसा सोचे किसी बोए हुये बीज क. ऐसा नहीं सोच पायेंगे, संभावना यही है कि रास्ते पर पड़े हुये पत्थर को भी एक एक गाली जरूर देंगे।। पत्थर को भी गाली और कभी ख्याल भी न करेंगे कि पत्थर को दी गई गाली, फिर बीज बो हे रहे हैं आप! Plus d'informations सवाल यह नहीं है कि किसको गाली दी। Plus d'informations
गांव में एक साधारण ग्रामीण किसान बैलों को गाली देने में बहुत ही कुशल था, वह अपनी बैलगाड़ी में बैठ कर गांव कीरफ़ आ °mine उसी रास्ते से एक ऋषि निकल रहे थे । Plus d'informations Plus d'informations ऋषि उसे रोकते हैं, पागल, तू यह क्या कर रहा है? वह आदमी कहता है कि र् बैल मुझे गाली वापस तो नहीं लौटा देंगे, मेरा क्या बिगड़ेगा। वह आदमी ठीक कहता है। हमारा गणित बिल्कुल ऐसा ही है। जो आदमी गाली वापस नहीं लौटा सकता उसे गाली देने में हर्ज क्या है? Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations
ऋषि ने कहा, बैलों को गाली तू दे रहा है, अगर वे गाली लौटा सकते तो कम खतरा था, क्योंकि समझौता अभी ज जाता। Plus d'informations तू महंगे सौदे में पडे़गा। यह गाली देना छोड़ ! ऋषि की तरफ़ उस आदमी ने देखा, ऋषि की आंखों को देखा, उनके आनंद को, उनकी शांति को देखा। उसने उनके पैर छुये और कहा कि मैं कसम लेता हूं, इन बैलों को गाली नहीं दूंगा।
ऋषि दूसरे गांव चले गये। दो-चार दिन आदमी ने बड़ी मेहनत से अपने को रोका, लेकिन कसमों से दुनिया में कोई रुकावटें नहीं होती। रुकावट होती है समझ से! दो-चार दिन में प्रभाव क्षीण हुआ। वह आदमी अपनी जगह वापस लौट आया। Plus d'informations, plus d'informations बैलगाड़ी से आना मुश्किल हो गया। Plus d'informations बैलों को जोते की अपने को जोते। Plus d'informations
गाली उसने वापस देनी शुरू कर दी। Plus d'informations Plus de détails कोई तीन- चार महीने बाद ऋषि उस गांव में वापस निथत Plus d'informations Plus d'informations ऋषि ने खड़े होकर कहा, यह क्या है मेरे भाई? Plus d'informations उसने कहा बैलों से, देखो बैल, ये मैने तुम्हे गालियां दी, ऐसी मैं तुम्हे पहले दिया करता था। Plus que jamais !
ऋषि ने कहा, तू बैलों को ही धोखा नही दे रहा है, तू मुझे भी धोखा दे रहा है और तू मुझे धोखा दे इससे बहुत हर्ज नहीं है है तू अपने को धोखा दे इससे हर्ज नहीं है है तू अपने को धोख. Plus tard, plus tard, plus tard मैं मान ही ले रहा हूं कि तू बैलों को गालियां नहीं दे रहा था, सिर्फ पुरानी गालियां बैलों को याद दिला रहा थानी। लेकिन किसलिये याद दिला रहा था? तू मुझे धोखा दे कि तू बैलों को धोखा दे, इसका बहुत अर्थ नहीं है, लेकिन तू अपने ही ही धोखा दे रहा है।।। को ही ही धोख.
जीवन में जब भी हम कुछ बुरा कर रहे हैं तो हम किसी दूसरे के साथ कर रहे हैं यह भ्रांति है आपकी।। Plus d'informations क्योंकि अंतिम फल हमें भोगने हैं। Plus d'informations, plus d'informations इंच-इंच का हिसाब है। इसजगह में कुछ भी बेहिसाब नहीं जाता है। हम अपने शत्रु हो जोते हैं। हम कुछ ऐसा करते हैं जिससे हम अपने को ही दुःख में डालते हैं, स्वयं ही दुःख में उतरने की सीढि़यां निर्मित करते हैं।। उत.
तो ठीक से देख लेना, जो आदमी अपना शत्रु है वही आदमी अधर्मी है और जो अपना शत्रु है वह किसी का मित्र तो कैसे हो सकेगारु? जो अपना भी मित्र नहीं, जो अपने लिये ही दुःख के आधार बना रहा है, वह सबके लिये दुःख के आधार बना देगा। Plus d'informations
फिर अपने निकटतम लोगों के साथ शत्रुता बनती है, फिर दूरतम लोगों के साथ। Plus d'informations Plus que jamais ! चोट पड़ते ही पत्थर तो नीचे बैठ जाता है क्षण भर में, लेकिन झील की सतह पर उठी हुई लहरें दूर-दूर तक यात्रा पर निकल जाती हैं. लहरें चलती जाती हैं अनंत तक। ऐसे ही हम जो करते हैं, हम तो करके चूक भी जाते हैं, आपने गाली दे दी, बात खत्म हो गई, फिर आप गीता पढ़ने लगे या कुछ भी करने लगे, लेकिन उस ग. वे न मालूम कितने दूर के छोरों को छुऐगी और जितना अहित उस गाली से होगा उतने सारे अहित के लिये आप जिम्मेवार हो गये! आप कहेंगे, कितना अहित हो सकता है एक गाली से? मैं कहता हूं, अकल्पनीय अहित हो सकता है और जितना अहित हो जायेगा उतने के लिये जिम्मेवार हो जाएंगे। आपने उठाईं वे लहरें। आपने ही बोया वह बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दूर-दूर तक फैल जायेगा। Plus d'informations अगर आपने अकेले में गाली दी हो और किसी ने न सुनी हो, तब तो शायद आप सोचेंगे कि कुछ भी नहीं होगा इसका परिणाम।। कुछ भी नहीं होगा इसका परिणाम। Plus d'informations उसके परिणाम होंगे ही। आप बहुत सूक्ष्म तरंगें पैदा करते हैं अपने चारों ओर वे तरंगें फैलती हैं। उन तरंगों के प्रभाव में जो भी लोग आएंगे वे गलत रास्ते पर धक्का खायेंगे।
अभी बहुत कम चलता है सूक्ष्मतम तरंगों पर और ख्याल में आता है कि अगर गलत लोग एक जगह एकत्रित हों-- सिर्फ चुपचर गलत लोग लोग एक कुछ भी नहीं opér हिस्सा है वह ऊपर आ जाता है और जो ठीक हिस्सा है वह नीचे दब जाता है। दोनों हिस्से आपके भीतर हैं। अगर कुछ अच्छे लोग बैठे हों एक जगह प्रभु का स्मरण करते हों, प्रभु का गीत ग गœuvre आपका गलत हिस्सा नीचे दब जाता है, आपका श्रेष्ठ हिस्सा ऊपर आ जाता है। आपकी संभावनाओं में इतने सूक्ष्मतम अंतर होते हैं कि हिसाब लगाना मुश्किल हो और हम चौबीस घंटे कुछ न कुछ .ve
एक छोटा सा गलत बोला गया शब्द कितनी दूर तक कांटों को बो जायेगा, हमें पत पता नहीं है। बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे की तू चौबीस घंटे, राह पर कोई देखे, उसकी मंगल की कामना करना। वृक्ष भी मिल जाये तो उसकी मंगल कि कामना करके उसके पास से गुजरना। पहाड़ भी दिख जाये तो मंगल की कामना करके उसके निकट से गुजरना। एक भिक्षु ने पूछा, इससे क्या फ़ायदा? बुद्ध ने कहा, इसके दो फ़ायदे हैं। Plus d'informations Plus d'informations तुम्हरी शकxtef. Plus d'informations
इसलिये भारतवर्ष में राह पर चलते हुये अनजान आदमी को भी रामter कहने कहने प्रक्रिया बनाई थी।। प. Plus d'informations तो ठीक से नमसtenir Plus d'informations उस आदमी की मौजूदगी पtenir उसके भीतर भी कुछ ऊपर आयेगा।
Plus d'informations मंगल की कामना या प्रभु का स्मरण आपके भीतर जो श्रेष्ठ है उसकोर लाता है। जब आप किसी के सामने दोनों हाथ जोड़ कर सिर झुका देते हैं तो आप उसको भी झुकने का एक अवसर देते हैं। और झुकने से बड़ा अवसर इस जगत में दूसरा नहीं है क्योंकि झुका हुआ सिर कुछ बुरा नहीं सोच पातiner करके सिर झुकायें और कल्पना भी करे कि परमात्मा दूसरी तरफ़ है, तो आप अपने में भी फर्क पiner वह आदमी आपके पास से गुजरा तो आपने उसके लिये पारस का काम किया, उसके भीतर कुछ आपने सोना बना दिया और जब आप किसी के लिये पारस का काम औरते आप तो दूसरœuvre हम सम्बन्धों में जीते हैं, हम अपने चारों तरफ़ अगर पारस का काम करते हैं तो यह असंभव है कि बाकी लोग हमारे लिये पारस न हो कि बाकी लोग हमारे लिये पारस न हो ज जायें। लोग हम. वे भी हो जाते हैं।
T भरा हो वह अपने लिये अमंगल से कैसे भर सकता है? जो दूसरों के लिये सुख की कामना से भरा हो वह अपने लिये दुःख की कामना से नहीं .ve वह अपना मित्र हो जाता है और अपना मित्र हो जाना बहुत बड़ी घटना है। Plus d'informations अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता जिससे स्वयं को दुःख मिले मिले। तो अपना हिसाब रख लेना चाहिये कि मैं ऐसे कौन-कौन से काम करता हूं जिससे मैं ही दुःख पाता हूं। Plus d'informations हजार बार पा चुके हैं। लेकिन कभी हम ठीक से तर्क नहीं समझ पाते हैं जीवन में हम इन क. वही बात जो आपको हजार बार मुश्किल में डiner Plus d'informations!
हम एक क्षण भर अगर रूक के सोचे तो हमें ज्ञात ही नहीं कि हमें कह कहां पहुंचना है? हमने तो चाँद के चंद टुकड़ो को इकट्ठा करने की क्रिया को ही जीवन मान लिया। दो-चार मकान बना लेने की जीवन पद्धति को ही जीवन मान लिया है। यह तो जीवन का एक प्रकार है, कि भौतिक दृष्टि में, चाहे निर्धनता में जियें, चाहे अमीरी में जियें, वैभव में जियें। जब तक जीवन के इस मूल चिन्तन को नहीं समझेंगे तब तक हम सही अर्थों में जीवित भी नहीं हो प. कौन बतायेगा कि हमारे जीवन का मकसद क्या है? कौन बतायेगा कि यह जीवन व्यर्थ है? क्या हर समय व्यस्त रहने और तनाव में गुजरने की क्रिया को ही जीवन कहते कहते है? Plus d'informations शास्त्रों में तो इस क्रिया को मृत्यु कहा जाता है और हम सही अर्थो में मुर्देœuvre इस चिन्तन को सोचा-समझा ही नहीं और नहीं सोचा-समझा, तो जीवन का आनन्द भी लिय लिया जा सकता। Plus d'informations जो कभी मानसरोवर के किनारे गया ही नहीं, वह मानसरोवर के आनन्द को समझ ही नहीं सकता। जो छोटी-छोटी तलैयांओं के किनारे बैठा रहा हो, वह क्या जाने कि मानसरोवर में क्या आनन्द है है कितनी्तृत झील.
T दिया जाये तो उतने अथाह जल देखकर वह आश्चर्य में पड़ जायेगा, अरे! मैंने तो कुछ नहीं देखा था, दुनिया तो कुछ और है, संसार तो कुछ और है, और यदि वह भले से भी उस तालाब का पूरœuvre जीवन देख लिया है, अब इससे बड़ा तालाब, इससे बड़ी जल राशि, इससे बड़ा जलाशय क्या हो सकता है। यह तो बहुत लमtenir सा हिस्सा था, वह जीवन था ही नहीं।
तुम्हारी भी स्थिति उस कुंए के मेंढक की तरह है, तुमने भी एक सीमित दायरे में घूमने की्रिया को ही जीवन मान लिया है।। क्रिया को ही जीवन मान लिया है। पत्नी है, एक-दो पुत्र है, थोडा-सा धन है है, मकान है, समाज में सम्मान है, सम्पदा है और इसी को जीवन जीवनान लिया है्पदा हैर और इसी को जीवन मान लिया है, क्योंकि इससे बœuvre कभी देखा ही नहीं कि इससे बड़ा भी एक समाज है, स्थान है और जब तुम वहां जाओगे तो तुम जो जीवन जी हे erci एक विवशता है, एक मजबूरी है। Plus d'informations परिवार का पालन-पोषण करना तुम्हारी मजबूरी है। समाज सदैव तुम्हारे साथ, या परिवार तुम्हारे साथ नहीं चल सकता, परिवार का सहयोग तुम्हें जीवन में नहीcre
जब डाकू थे 'वाल्मीकि' ऋषि तो बहुत बiner एक बार नारद उनके हiner ली।
नारद् ने कहा- अरे ! Plus d'informations उसने कहा- कोई दूसरा मिला ही नहीं और जब तक मैं लूट- खसोट नहीं कर लूं, तब मैं भोजन भोजन करता ही नहीं नहीं, न कोई कार्य करता हूं हूं. ही जायेगा और तुम्हारे कपड़े भी खोल लूं, ये कपड़े भी बाजार में बेच दूंगा। उचित तो नहीं मगर यह करूंगा जरूर, क्योंकि मुझें अपने परिवार का पालन-पोषण करना है। नारद ने कहा- क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारा साथ देगा, क्योंकि तुम तो पाप कर रहे हो।।।।। तुम तो. वाल्मीकि ने कहा- जरूर यह पाप कर्म है, किसी की हत्या कर देना, किसी को छल से लूट लेना पiner अपने परिवार के लिये कर रहा हूं। परिवार मेरा साथ देगा ही।
Plus d'informations वाल्मीकि ने एक रस्सी से नारद को पेड़ में बांध दिया और घर चले गये। बूढ़ी मां से पूछा तू मुझे बता, कि मैं जो छीना-झपटी, लूट-खसोट, हत्यायें कर रहा हूं। Plus d'informations यह पाप तो है ही। मां ने कहा-बेटा जरूर पाप है। वाल्मीकि ने कहा मैं इससे तुम लोगो को रोटी खिला रहा हूं, अन्न दे रहा हूं, आवास दे रहा हूं तो तुम भी पाप में भागीदार हो। मां ने कहा-मैं तो पाप में भागीदार नहीं होती, यह तुम्हारा कर्त्तव्य है कि मां को ोटी ोटी खिलाओ, तू कैसे्य लातात. Plus d'informations, plus d'informations
वाल्मीकि पत्नी के पiner लूटना,मारना पाप है। पत्नी ने कहा-निःसन्देह पाप है। वाल्मीकि ने पूछा-यह तुम्हारे लिए कर रहा हूं क्योंकि ऐसा करने पर ही तो मैं तुम्हे अन्न दे सकता हूं पर ही तो मैं तुम्हे अन्न दे सकत. में भागीदार हो। पत्नी ने कहा- मैं तो पाप में भागीदार नहीं हूं, एक पति का कर्त्तव्य है, धर्म है, कि वह Dieu ।
वाल्मीकि वापस आ गए, नारद को पेड़ से खोला और छोड़ दिया, उसी्षण उन्होंने पाप पूर्ण डाकू का कार्य छोड़ करके, छीनर्ण डाकू का कार्य छोड़ करके, छीना-झपटी काकू्र्pen छोड़र सœuvre क्या तुम भी वाल्मीकि डाकू से कुछ कम हो? क्या तुम छीना-झपटी नहीं कर रहे ? छल नहीं कर रहे ? झूठ, कपट, और असत्य नहीं कर रहे ? और यह सब तुम परिवार वालों के लिए कर रहे हो, और तुम्हें यह गलतफहमी है, कि ऐसा करने पर परिवार वाले तुम्हारा साथ देंगे, परिवार वाले____ère होंगे। स. पाप में भागीदार तो वे नहीं होंगे, असत्य और अधर्म के वे भागीदार नहीं बनेंगे। तुम्हें अकेले ही यह पाप भोगना पड़ेगा, तुम खुद ही इसके जिम्मेदार हो।
फिर तुम कब इस चेतना को, इस जीवन को समझ सकोगे? कब तुम्हें नारद् मिलेंगे? कब तुम्हें ऋषि मिलेंगे ? कब तुम्हें समझा सकेंगे ? कि यह जीवन नहीं है, जो तुम कर रहे हो। जब तक तुम ऐसा करोगे तब तक जीवन में तुम्हें कुछ मिलेगा ही नहीं, तब तक जीवन का तुम अर्थ समझोगे हीं नहीं, जरूरत तो्हें यह है. युक्त पाप पूर्ण कार्य बेकार है।
जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो उस रास्ते से तो शमशiner नहीं कर रहे हो जो कुछ तुम प्राप्त कर रहे हो यह मकान, यह धन, ये च्नी के टुकड़े ये येcre नहीं, तुम्हारे साथ उनकी यात्रा नहीं है और तुम्हारे साथ नहीं है। वे तुम्हारे सहयोगी नहीं है। साथ तो तुम्हारे जीवन के कर्म चलेंगे, तुम्हारी प्राणश्चेतना चलेगी, तुम्हारी भावनायें चलेंगी।
Imp , जो तुम्हे समझा सके, कि तुम जो कुछ कर रहे हो वह तुम खुद कर रहे हो, उसके लिए कोई सहयोगी नहीं है।। तुम्हारे पाप कार्य में कोई भागीदार नहीं है, तुम जो झूठ और छल कर रहे हो उसका फल तुम्हे ही भोगना पड़ेगा औरहे. रोगों से जर्जर, अभावों से पीडि़त, असत्य, परेशान, दुःखी, अतृत्प। जब बेटे उनको पूछते ही नहीं जब बहुएं उनका साथ देती ही नहीं और समाज उन्हें धिक्कारता है कि इसने जीवन.
ऐसा तुम्हारा जीवन किस काम आयेगा, क्या प्रयोजन है इस जीवन जीवन का? क्योंकि इस जीवन को लाश की तरह उठा कर के तुम इस जीवन में कुछ प्राप्त कर ही नहीं सकतेर इसीलिये नहीं कर सकते कि सब. जो जीवन है है, वह तो पत्थरों के ढे़र है, कपट के पत्थर है, असत्य और व्यभिचार के, उनसे्राप्त होता है दुःख दुःख्यभिचार के, प्राप्त होता है दुःख दुःखरेशानियानिय, अड़चन बाधाएं औtien मृत. दो-चार कदम चलने पर ही इनका सामना करना पड़ेगा, फिर कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा, घर वiner क्योंकि तुमने अपने जीवन में ऐसा मार्ग दर्शक ढूंढा ही नहीं जो तुम्हें ज्ञान दे सके सकेर झकझोœuvre
Plus, plus, plus, plus, plus, plus चलने-फिरने वाला व्यक्ति को शिष्य नहीं कहते कहते शिष्य तो उसे कहते है है जिसमें्रद्धा और समर्पण है है जो दोनों श्रद्धा और सम__viपण है. , et plus encore
मात्र दीक्षा लेने वाले को शिष्य नहीं कहते, सिर मुंडाने को भी शिष्य नहीं कहते, हरिद्वार में स्नान करने वाले को भी्वार में स्नान करने वाले को भी्य. कि तुम गलत रास्ते पर हो, तुम्हे कह सके कि यह रास्ता श्मशान की ओर जाता है, पूर्णता रूपी अमृत कीर जœuvre ऐसे तो तुमtenir तुम भी उसी तरीके से मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे और तुम्हे कोई पूछने वाला नहीं होगा कोई तुम्हारे लिए विचार करने वाला भी नही होगाitation इस यात्रा में तुम्हारे अन्दर कई प्रकार की भ्रांतियां आयेगी, क्योंकि तुमने इन भ्रांतियों को ही पाल रखा है, तुमने अपने अन्दर शक,संदेह,कपट,और व्याभिचार को पाल रखा है और वे सब तुम्हारे सामने तन कर खड़े हो जायंगे, तुम्हारे मार्ग को भ्रष्ट करेंगे, तुम्हें कुमार्ग पर गतिशील करेंगे, वे कहेंगे-गुरू की खोज्यर्थ है तुम्हे यह कहेंगे कहेंगे यह समय बर्बाद करना है। यह कहेंगे कहेंगे समय बर्बाद करना है। Plus d'informations तुमने अपने जीवन में कपट का साथ दिया है, तो वे इस समय तुम्हारे सामने खड़े रहेंगे। Plus d'informations
कायर और बुजदिल हताश हो जiner करनी है, मुझे ऐसा घिसा-पिटा जीवन नहीं जीना है, मुझे अपने जीवन में वह सब कुछ प्राप्त करना है, जो जीवन का आनन्द है है Dieu वाला है, ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है, जो सही अर्थो में पूंजी देने वाला है और उसकी खोज में जो पहला कदम आगे बढ़.
जो निश्चय करके यह प्रयत्न करता है, कि मुझे गुरू को प्राप्त करना ही है, वह्यासी है वह योगी. दूसरा, जो इन रास्ते पर गतिशील होने की क्रिया करता है, वह सही अर्थो में तपस्वी है। जंगलों में खाक छानने वाले को तपस्वी नहीं कहते कहते, जो जंगली जीवन के मर्म को समझने कोशिश कोशिश करते है, वे 'योगी' और 'सन्यासी' है है। जो गुरू की खोज में आगे बढ़ते हैं वे सiner Plus d'informations
इस जीवन मार्ग पर केवल शिष्य चल सकता है, साधक तो बहुत छोटी सी चीज है, शिष्य के सामने साधक की कोई औकात नहीं होती।। स. योगी, तपस्वी उसके सामने कहीं ठहर नहीं पाते उसके सामने कोई औकात नहीं होती। उसके सामने यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और देवता अपने आप में कोई मूल्य नहीं रखते, क्योंकि शिष्य एक चेतनापुंज होता है है एक दीपक होता है वह अपने आप मेंचेतनprises हैदlaire Plus d'informations जो केवल इस बात का चिन्तन करता है कि गुरू की कैसे सेव सेवा की जाए? हम गुरू के किस प्रकार से हाथ पैर बनें, नाक बनें, आंख बनें, सिर बनें, विचार बनें, भावना बनें, धारणा बनें, किस प्रकार से बनें? किस युक्ति से बने ? जो केवल इतना ही चिन्तन करता है, वही सही अर्थो में शिष्य कहलाता है और सच्चा शिष्य सही अर्थो में बना हुआ सच्चा शिष्य ही अपने आप उस रास्ते पर खड़ा हो जाता है, जो पूर्णता का रास्ता होता है, जो पवित्रता का रास्ता होता है, Plus d'informations इसीलिए शिष्य की समानता तो देवता, यक्ष, गन्धर्व कर ही नहीं सकते, तपस्वी और साधु तो बहुत छोटी सी बात है। औ.
Sa Sainteté le Sadhgurudev
M. Kailash Shrimali
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