दाम्पत्य जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य और फल यही है कि स्वस्थ, दीर्घायु और गुणवान संतान पैदा हो।।।. Plus d'informations Plus d'informations श्रेष्ठ संतान पाने के लिए जब पति-पत्नी विधि-विधान पूर्वक संयुक्त होते है तब तब संस्कार संपन्न होत्त होते है तब यह संस्कार संपन्न होता है।।। तब संस्कार संपन्न होत. इस संस्कार से पति-पत्नी के सभी शारीरिक दोषों का नाश हो जाता है और तब सुयोग्य संतान उत्पन्न होती है।. इस संसtenir
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जब एक शिष्य गुरू आश्रम में पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर लेता है, यानि कि बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक गुरू सेवा देता है और जब यह पूर्ण हो जाती है तब गुरू उसे गृहस्थ धर्म के बारे में बता उसे उसके आगे के जीवन की जिम्मेदारियों से अवगत कराते हैं, उसे परिवार के उत्तराधिकारी होने के कारण परिवारजनों के प्रति उसके कर्तव्यों के बारे में बताते हैं।।।.
माता-पिता बनने की आकांक्षा रखने वाले दम्पत्तियों को सर्वप्रथम अपने मन व शरीर को शुद्ध व पवित्र साथ ही मस्तिष्क को शांत करने का अभ्यास करना चाहिए तभी एक सुसंस्कारवान व बुद्धिवान संतान उत्पन्न होती है और यही क्रिया इस सर्वप्रथम संस्कार,गर्भधान संस्कार में सम्पन्न की जाती है। Plus d'informations गर्भधान संस्कार सम्पन्न करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है-
Garbhadhehi sinivali. Garbha dhehi prithustuke.
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अर्थात् हे देवी ! आप इस स्त्री को सुयोग्य संतान को गर्भ में धारण करने के लिए समर्थ बनायें। कमल के फूलों की माला से सुसज्जित भगवान अश्विनिकुमार इनकी गोद भर आर्शीवाद दें। सभी देव-मित्र, वरूण, गुरू बृहस्पति, इन्द्र, अग्नि व भगवान ब्रह्मा अपने आर्शीवespère
इसके पश्चात् नौ महीने पूर्ण हो जाने पर भगवान ब्रहtenir
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अर्थात्हे ब्रह्मदेव! ° हे देव, इसे दीर्घायु संतान का आर्शीवाद दे जो सौ वर्ष जीये व स सारे शरद ऋतु देख सके सके।। बहुत स.
गृहस्थ आश्रम अर्थात् विवाह के उपरांत संतानोत्त्पति क__ère लेकिन वर्तमान समय में आधुनिकीरण की अंधी दौड़ व पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में 'गर्भधान' संस्कार उपेक्षाव की 'गर्भधान' संस्कार की्षा की जा रही है। संस. आज के समय में 'गर्भधान संस्कार' का पालन करना लुप्त हो रहा है और इसकेर दुष्परिणाम भी सामने आ हेर है गंभीर दुष्परिणाम भी सामने आ हे erci बिना उचित रीति व श्रेष्ठ मुहूर्त के 'गर्भाधान' करना निकृष्ट व ोगी संतान के्म करना निकृष्ट व ोगी संतान के्म का कारण बनता है। एक स्वस्थ आज्ञाकारी, चरित्रवान संतiner
श्रेष्ठ संतान के जन्म के लिए आवश्यक है कि 'गर्भाधानiss 'गर्भाधान' कभी भी क्रूर ग्रहों के नक्षत्र में नहीं किया जाना चाहिए। गर्भाधान व्रत, श्राद्ध पक्ष, ग्रहणकाल, पूर्णिमा या अमावस्या को नहीं किया जाना चाहिए। जब दंपति के गोचर में चन्द्र, पंचमेश व शुक्र अशुभ भाव में हो तो गर्भाधान करना उचित नहीं होतœuvre
Décrivant la conception dans Smriti Sangraha, il a été écrit que-
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अर्थात् विधि विधान से गर्भाधान करने से अच्छी सुयोग्य संतान जन्म लेती है। अच्छी सुयोग्य संतान जन्म लेती है। इससे समस्त पाप तथा दोष नष्ट हो जाते है व गर्भ सुरक्षित रहता है, यहीर्भाधान संस्कार का फल है। ग.
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