जो भी जीवित है, वह आशा से जीवित है और जो भी मृत है, वह निराशा से मृत है। यदि हम छोटे बच्चों को देखे, जिन्हें अभी समाज, शिक्षा और सभ्यता ने विकृत नहीं किया है, तो बहुत से जीवन जीवन सूत्र हमें दिखाई पड़ेंगे।। सबसे पहली बात दिखाई पड़ेगी-आशा, दूसरी बात-जिज्ञासा, और तीसरी बात-श्रद्धा। निश्चय ही ये गुण स्वाभाविक हैं। उन्हें अर्जित नहीं करना होता है। Plus d'informations फिर भी हम उन्हें बिल्कुल ही नहीं खो सकते है है क्योंकि जो स्वभाव है वह नष्ट नहीं होता और जो स्वभाव नहीं वह नष्ट नहीं होता और जो स्वभ.
इसलिए मैं कहता हूँ कि वस्त्रों को अलग करों और उसे देखो जो तुम स्वयं हो। Plus d'informations क्या अच्छा न हो कि तुम भी निर्वस्त्र हो जाओ? मैं उन वस्त्रों की बात नहीं कर रहा हूँ जो कपास के धागों से बनते है।। उन्हें छोड़ कर तो बहुत से व्यक्ति निर्वस्त्र हो जiner कपास कमजोर धागे नहीं, निषेधात्मक भावनाओं की लौह श्रृंखलाओं रूपी वस्त्र के बंधन है। उन्हें जो छोड़ता है वही उस निर्दोष नग्नता को उपलब्ध होता है।
मैं यह क्या देख रहा हूँ? यह कैसी निराशा तुम्हारी आंखों में है? और क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है कि जब आंखे निराश होती हैं हैं, तब हृदय की वह्नि बुझ जाती है और व सारी अभीप्साएं सो जाती है और व सारी अभीप्साएं सो ज. निराशा पाप है, क्योंकि जीवन उसकी धारा में निश्चय ही ऊर्ध्वगमन खो देता है। निराशा पाप ही नहीं, आत्मघात भी है, क्योंकि जो श्रेष्ठतर जीवन को पाने में संलग्न नहीं है है, उसके चरण अनायास ही्यु की ओर बढ़ जरण अनाय. यह शाश्वत नियम है कि जो ऊपर नहीं उठता, वह नीचे गिर जाता है और जो आगे नहीं बढ़ता उसको पीछे धकेल दिया जाता है।। नहीं बढ़त. मैं जब किसी को पतन में जाते देखता हूँ तो जानता हूँ कि उसने पर्वत-शिखरों की ओर उठना बंदर दियर दिया। पतन की प्रक्रिया विधेयात्मक नहीं हैं घाटियों में जाना, पर्वतों पर न जाने का ही दूसरा पहलू है।।। ज. वह उसकी ही निषेध छाया है और जब तुम्हारी आंखों में..
आशा सूर्यमूखी के फूलों की भांति सूर्य की ओर देखती है और निराशा? वह अंधकार से एक हो जाती है। जो निराश हो जाता है, वह अपनी अंतर्निहित विराट शक्ति के प्रति सो जाता है और उसे विस्मृत कर देता है जो वह है, और जो वह. बीज जैसे भूल जाए कि उसे क्या होना है और मिट्टी के साथ ही एक होकर पड़ा रह जाए, ऐसा ही वह्य जोराशा में डुब जाता है।।. वह उच्चता की और बढ़ना ही भूल गया और परमात्मा, गुरू को दोषी ठहराने लगा है।
Plus d'informations क्योंकि आशा हो तो परमात्मा को पा लेना कठिन नहीं और यदि आशा न हो तोरमात्मा के होने से कोई भेद नहीं होता। आशा का आकर्षण ही मनुष्य को अज्ञात की यात्रा पर ले जाता है। आशा ही प्रेरणा है जो उसकी सोई हुई शक्तियों को जगाती है और उसकी निष्क्रिय चेतना को सक्रिय करती हैं्या मैं कहूं कि आशœuvre यह भी कि आशा ही समस्त जीवन-आरोहण का मूल प्राण है? पर आशा कहाँ है? मैं तुम्हारे प्राणों में खोजता हूँ तो वहाँ निराशा की राख के सिवाय और कुछ भी नहीं मिलता। आशा के अंगारे न हो तो तुम जीओगे कैसे ? निश्चय ही तुम्हारा यह जीवन इतना बुझा हुआ है कि मैं इसे जीवन भी कहने में असमर्थ हूँ मुझे आज्ञा दो कि मैं कहू कि तुम. .M. असल में तुम कभी जीए ही नहीं। तुम्हारा जन्म तो जरूर हुआ था, लेकिन वह जीवन तक नहीं पहुँच पहुँच सका! जन्म ही जीवन नहीं है। जन्म मिलता है, जीवन को पाने के लिये।
इसलिए जन्म को मृत्यु छीन सकती है, लेकिन जीवन को कोई भी मृत्यु छीन नहीं सकती सकती। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations किन्तु जो निराशा से घिरे है, वे उसे कैसे जानेंगे? Plus d'informations जीवन एक संभावना है और उसे सत्य में परिणित करने के लिए गुरू साधना चाहिए। निराशा में साधना का जन्म नहीं होता, क्योंकि निराशा तो बोझ है और उसमें कभी भी किसी का जन्म नहीं होता। इसीलिए मैंने कहा कि निराशा आत्मघाती है, क्योंकि उससे किसी भी भ भांति में सृजनात्मक शक्ति का विकास नहीं होता है।।.
मैं कहता हूँ, उठो और निराशा को फेंक दो। उुम अपने ही हाथों से ओढ़े बैठे हो। उसे फेंकने के लिए और कुछ भी नहीं करना है सिवाय तुम उसे फेंकने को राजी हो जाओ। Plus d'informations Plus d'informations उसके ही भाव उसका सृजन करते है। वही अपना भाग्य-विधाता है। स्मरण रहे कि तुम जो भी हो वह तुमने ही अनंत बार चाहा है, विचार और उसकी भ्वना की है है, देखो, स्मृति में खोजोर उसकीœuvre Plus d'informations अपने ही द्वारा ओढें भावों और विचारों को उतार कर अलग कर देना कठिन नहीं होता है। वस्त्रों को पहनने में भी जितनी कठिनता होती है उतनी भी उन्हें उतारने में नहीं होती है क्योकि वे तो है भी नहीं।। होती है क्योकि वे तो भी भी नहीं।।। है है. सिवाय तुम्हारे ख्याल के उनका कहीं भी कोई रास्ता नहीं है। हम अपने ही भावों में अपने ही हाथों से कैद हो जाते है, अन्यथा वह जो हमारे भीतर है, सदैव ही स्वतंत्र है।
क्या निराशा से बड़ी और कोई कैद है ? नहीं ! क्योंकि पत्थरों की दीवारें जो नहीं कर सकती, वह निराशा करती है। दीवारों को तोड़ना संभव है, लेकिन निराशा तो मुक्त होने की आकांक्षा को ही खो देती है। निराशा से मजबूत जंजीरे भी नहीं है, क्योंकि लोहे की जंजीरे तो मात्र शरीर को ही बांधती हैं, निराशा तो्मा को भी बांध लेती है।.
Plus que jamais ! उन्हें तोड़ा जा सकता है, इसीलिए ही मैं तोड़ने को कह रहा हूँ। उन्ता स्वप्न सत्ता मात्र है। Plus d'informations जैसे दीये के जलते ही अंधकार टूट जiner
निराशा स्वयं आरोपित दशा है। आशा स्वभाव है, स्वरूप है। Plus d'informations मैं कह रहा हूँ कि आशा स्वभाव है। क्यों ? क्योंकि यदि ऐसा न हो तो जीवन-विकास की ओर सतत् गति और आरोहण की कोई संभावना न रह जाए। बीज अंकुर बनने को तड़पता है, क्योंकि कही उसके प्राणों के किसी अंतरस्थ केंद्र पर आशा का आवास हैं सभी प्रœuvrevicité
अपूर्ण को पूर्ण के लिए अभीप्सा आशा के अभाव में कैसे हो हो सकती है? और पदार्थ की परमात्मा की ओर यात्रा क्या आशा के बिना संभव है? सत्य को पाने को, स्वयं को जानने को स्वरूप में प्रतिष्ठित होने को सब सब्त्रों को छोड़ नग्न हो जœuvre परमात्मा की उपलब्धि के पूर्व यदि तुमtenir Plus d'informations
संसार में विश्राम के स्थलों को ही प्रमादवश गंतव्य समझने की भूल हो ज जाती है। परमात्मा के पूर्व और परमात Joh इसे अपनी समग्र आत्मा को कहने दो। कहने दो कि परमात्मा के अतिरिक्त और कोई चरम विश्राम नहीं, क्योंकि परमात्मा में ही पूर्णता है। प.
परमात Joh संकल्प और साध्य जितना ऊंचा हो, उतनी ही गहराई तक स्वयं की सोयी शक्तियां जागती हैं साध्य की ऊंचाई ही्हारी शक्ति काध्य. Plus que jamais ! Plus d'informations तुम भी यदि आकाश छूने की आशा और आकांक्षा से आंदोलित हो जाओगे तो निश्चय ही जान जाओंगे कि तुम्हारे गहरे से गहरे प्राणों में सोई हुई शकtenir
जितनी तुम्हारी अभीप्सा की ऊंचाई होती है, उतनी ही तुम्हारी शक्ति की गहराई भी होती है। Plus d'informations Plus d'informations वह जो अंततः तुम होना चाहोगे, प्रारंभ से ही उसकी ही तुम्हारी मांग होनी चाहिएं। Plus d'informations मैं जानता हूँ कि तुम ऐसी परिस्थितियों में निरंतर ही घिरे हो जो प्रतिकूल हैं और परमात्मा की ओर उठने से ोकती है है।।।. लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओर उठे, वे भी कभी ऐसी परिस्थितियों सेरे थे। कभी ऐसी ही.. परिस्थितियों का बहाना मत लेना, परिस्थितियां नही, वह बहाना ही असली अवरोध बन जाता है। परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल हैं और परमात्मा की ओर उठने से रोकती है। लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओर उठे, वे भी कभी ऐसी परिस्थितियों सेरे थे। कभी ऐसी ही..
परिस्थितियों का बहाना मत लेना। Plus d'informations, plus d'informations परिस्थितियां कितनी ही प्रतिकूल हो, वे इतनी प्रतिकूल कभी भी नहीं हो सकती हैं कि परमात्माकेा के मार्ग में बाधा बन जात्म! वैसा होना असंभव है। वह तो वैसा ही होगा जैसे की कोई कहे कि अंधेरा इतना घना है कि प्रकाश के जलाने में बाधा बन गया है।
अंधेरा कभी इतना घना नहीं होता और न ही परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल होती है कि वे्रकाश के आगमन में बाधा बन सकें। प्रकाश के आगमन में बाधा बन सकें।।।।।।।।. Plus d'informations वस्तुतः तुम्हारे अतिरिक्त उसे बहुत मूल्य कभी मत दो आज है और कल नहीं होग. जिसमें पल-पल परिवर्तन है उसका मूल्य ही क्या? Plus d'informations उसे देखो, उस पर ध्यान दो, जो नदी की धार में भी अडिग चट्टान की भांति स्थिर है। वह कौन है? वह तुम्हारी चेतना है, वह तुम्हारी आत्मा है, वह तुम अपने व वास्तविक स्वरूप में स्वयं हो! सब बदल जाता है, बस वही अपरिवर्तित है। Plus d'informations
लेकिन तुम तो आंधियों के साथ कांप रहे हो और लहरों के साथ थरथरा रहे हों। क्या वह शांत और अडिग चट्टान तुम्हें नहीं दिखाई पड़ती है जिस पर तुम खडे़ हो और तुम हो? उसकी स्मृति को लाओ। उसकी ओर आंखे उठते ही निराशा आशा में परिणत हो जाती है और अंधकार आलोक बन जाता है। स्मरण रखना कि जो समग्र हृदय से से आशा और आश्वासन से शक्ति और संकल्प से प्रेम और प्र्थना से्प से्वयं की्रेम और प्रर्pen से. पाप के मार्ग पर सफलता असंभव पाप के मार्ग पर सफलता हो तो समझना कि भ्रम है और प्रभु के मार्ग पर असफलता हो और प्रभु केlan.
Plus d'informations हम अपनी ही निराशा में अपनी ही आंख बंद कर लेते है, यह बात दूसरी है। निराशा को हटाओं और देखो, वह कौन सामने खड़ा है ! क्या यही वह सूर्य नहीं है जिसकी खोज थी ? क्या यही वह प्रिय नहीं है जिसकी प्यास थी ? क्राइस्ट नेकहा है, मांगो और मिलेगा। खटखटाओ और द्वार खुल जाएंगे। वही मैं पुनः कहता हूँ वही क्राइस्ट के पहले कहा गया था, वही मेरे बाद भी कहा जाएगा। Plus que jamais ! और आश्यर्च है उन लोगों पर जो प्रभु के द्वार पर ही खड़े है और आंख बंद किये है opér.
साधक की यात्रा जिन दो पैरों से होती है, उन दो पैरों की सूचना शांति के आखिरी हिस्से में है।। साधक का एक पैर तो है संकल्प और साधक का दूसरा पैर है समर्पण। साधक का संकल्प प्राथमिक है। वह कहाँ जाना चाहता है, क्या होना चाहता है, उसके लिये संकल्प शक्ति का होना जरूरी है।।।।।।।।।। Plus d'informations गुरू के बिना, गुरू के संकल्प के बिना एक इंच यात्रा नहीं होगी, लेकिन गुरू के संकल्प मात्र से ही यात्रा नहीं हो सकती।।. Plus d'informations व्यक्ति की शक्ति उतनी कम है, न के बराबर कि अगर गुरू का सहारा न मिले तो यात्रा नहीं हो सकती।
एक ज्ञान है जो भर तो देता है मन को बहुत जानकारी से, लेकिन हृदय को्य नहीं करता। एक ज्ञान है जो मन को भरता नहीं, खाली करता है हृदय को शून्य का मंदिर बनाता है। एक ज्ञान है, जो सीखने से मिलता है और एक ज्ञान है जो अनसीखपन से मिलत मिलता। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा-करकट है। Plus d'informations Plus d'informations अनसीखने से उनका जन्म होता है, जो तुम्हारे भीतर सदा से छिपा ही है। जीवन मिट्टी का एक दीया है, लेकिन ज्योति उसमें मृणमय की नहीं चिन्मय की है। दीया पृथ्वी का, ज्योति आकाश की, दीया पदार्थ का, ज्योति परमात्मा की। दीया एक अपूर्व संगम है। इसे ठीक से समझ लेना, क्योंकि तुम भी मिट्टी के ही दीये हो, तुम जीवन की स सार्थकता और सत्य से वंचित ह ह जाओगे।।. दीया जरूरी है, लेकिन ज्योति के होने के लिये जरूरी है, ज्योति के बिना दीये का क्या अर्थ? ज्योति खो जाये, दीये का क्या मूल्य? ज्योति न हो तो दीये का क्या करोगे ?
ज्योति की स्मृति बनी रहे, ज्योति निरंतर आकाश की तरफ़ उठती रहे तो दीया सीढ़ी है और तब तुम दीये को धन्यवाद दे सकोगे। है. जिन्होंने भी आत्मा को जाना, वे शरीर को धन्यवाद देने में समर्थ हो सके।। जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना वे या तो शरीर की मान कर चलते रहे, ज्योति दीये का अनुसरण करती रही और निरंतर गहन से गहन अचेतना और मूर्च्छा में गिरते गये या जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना, उन्होंने व्यर्थ ही शरीर से, दीये से संघर्ष मोल ले लिया। Plus d'informations
जिन्हें तुम सांसारिक कहते हो, वे पहले तरह के लोग हैं, जिनके भीतर का परमात्मा, जिनके बाहर की खोल का अनुसरण कर रहा है, जिन्होंने ग. जिन्होंने क्षुद्र को आगे कर लिया है और विराट को पीछे, उनके जीवन में अगर दुःख ही दुःख हो तो्चर्य नहीं।. कीचड़ से कमल पैदा होता है। तुम्हारे शरीर के कीचड़ से तुम्हारी आत्मा का कमल पैदा होगा।
Plus d'informations कीचड़ और कमल में कितना ही विरोध दिखाई पडे, भीतर गहरा सहयोग है।। कीचड़ कितना ही कीचड़ लगे, कहां, संबंध भी तो नहीं मालूम पड़ता! कमल सुंदर, अपूर्व सुंदर, अद्वितीय रेशम-सा कोमल! Plus que jamais ! कहाँ कमल की सुवास, दोनों में कोई तो नाता दिखाई नहीं पड़ता और अगर तुम जानते न होर कोई कीचड़ का ढे़र लगा दे और कमल के फूलोंर क कीचड़ का ढे़र लगा दे और कमल के फूलों कœuvre तो तुम भी कहोगे कि इन दोनों में कैसा संबंध? कहा कीचड़, कहां कमल ! Plus d'informations मृण्मय में चिन्मय का जागरण होता है।
कीचड़ से कमल पैदा होता है, इसका अर्थ ही यह हुआ कि कीचड़ के गहरे में कमल छिपा है, अन्यथा पैदा कैसे होगा? इसका अर्थ यही हुआ कि कीचड़ ऊपर-ऊपर से गंदी दिखाई पड़ती है, भीतर तो कमल जैसी ही होगी होगी। इसका अर्थ हुआ कि दुर्गन्ध ऊपर का परिचय है, सुगंधर भीतर का परिचय है।
Il y a une ancienne légende. Un père voulait partager sa propriété entre ses trois fils, mais ne pouvait pas décider qui était digne et qui méritait. Tous les trois sont nés jumeaux, l'âge n'a donc pas pu être déterminé. Tous les trois étaient également intelligents. Il a donc consulté son professeur. Le professeur lui a dit un truc.
उसने बेटों से कहा कि मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूँ और बेटों को उसने कुछ बीज दिये फूलों के बीज और कहा कि संभाल कर °laire पहले बेटे ने सोचा कि इन बीजों को कोई बच्चे उठा लिये, कोई जानवर खा गया, ऐसा सोचकर उसने उन बीजों को तिजोड़ी में बंद कर दिया।।. Plus d'informations Plus que jamais ! Plus que jamais ! वह निश्चित रहा। बाप आयेंगे तो, लौटा देंगे।
दूसरे ने सोचा कि तिजोड़ी में रखूं तो बीज सड़ सकते हैं और बाप ने ताजा जीवित बीज दिये और मैं सड़े लौटाऊं-तो तो लौटाना नहीं हुआ।।। सड़े लौट. क्या करूं? बीज जीवित कैसे रहें? Plus d'informations Plus d'informations
Plus d'informations बीज का अर्थ ही होता है जो होने को तत्पर है, जिसके भीतर कुछ होने को मचल रहा है। तो उसने बीज दिये हैं, मतलब साफ़ है कि इन्हें उगाना है, जिसने रखा, वह नासमझ है। ये तो बढ़नें को राजी थे, ये तो फूल बनने को राजी थे और एक बीज से करोड़ो बीज पैदा होते है। पता नहीं, पिताजी कब लौटे, तीर्थ लंबा है, यात्रा में वर्षों लगेंगे- उसने बीज बो बो दिये।
तीन वर्षों बाद पिता वापस लौटा । पहले बेटे को उसने कहा। Plus d'informations खोली गई तिजोड़ी, सभी बीज सड़ चुके थे, न हवा लगी, न सूरज की रोशनी लगी और किसी ने उन पर ध्यान ही न दिया तीन वर्ष तक तिजोड़ी में पड़े पड़े सड़ न बीज। व. तकर्ष तक तिजोड़ी में पड़े पड़े सड़ बीज।।।. बीज कोई लोहे की तिजोड़ीयों में बंद करने को थोड़ै! उन्हें तो खुला आकाश चाहिये, हवा चाहिये, रोशनी चाहिये, पानी चाहिये तो वे वे जिंदा रह सकते हैं।। वे सब सड़ गये थे और जिन बीजों से फूलों की अपूर्व सुवास पैदा हो सकती थी, उनकी उस उस तिजोड़ी सेर्फ दुर्गंध निकली हुये बीजों की दुर्गंध!
Plus d'informations Plus d'informations तुम नासमझ हो। Plus d'informations ये बीज तो समाप Joh बीज थे जीवंत, उनमें संभावना थी बहुत होने की, उनकी सारी संभावना खो गई है, सिर्फ राख है, इनसे कुछ भी नहीं हो सकता। ये मृत्यु हैं।
दूसरे बेटे से कहा। दूसरा बेटा भागा रूपये लेकर, बीज खरीद कर ले आया-ठीक उतने ही बीज जितने बाप ने उसे दिया था। बाप ने कहा तुम थोड़े कुशल हो, लेकिन तुम भी काफी नहीं, क्योंकि जितना दिया था उतना भी लौटाना भी कोई लौटाना है! Plus d'informations इसमें तुमने कुछ बुद्धिमता न दिखाई और बीज का तुम राज न समझे।। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations
तीसरे बेटे से पूछा कि बीज कहाँ हैं? तीसरा बेटा बाप को भवन के पीछे ले गया जहाँ सारा बगीचा फ़ूलों और बीजों से भरा था। उसके बेटे ने कहा, ये रहे बीज। आप दे गये थे, मैने सोचा इन्हे बचा कर रखने में मौत हो सकती है है। इन्हें बाजार में बेचना उचित नहीं है क्योंकि आप सुरक्षित रखने को कहे थे और फिर आपने चाहा था कि यही बीज वापस लौटाये जायें।।. बाजार से तो दूसरे बीज वापस लौटेंगे, वे वहीं न होंगे, फिर वे उतने ही होंगे जितने आप दे गये थे थे तो मैंने बीज बो दिये थे अब ये. । Plus d'informations
Plus d'informations परमात्मा ने तुम्हें जितना दिया है कम से कम उतना तो लौटाना। अगर बढ़ा न सको— बढ़ा सको तब तो बहुत अच्छा हैं।
एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हारा जीवन, जहाँ सूरज की किरण तो आना असंभव है मिट्टी के दीये की छोटी सी लौ भी नहीं है है।।. T इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूँ, तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिए, प्यास जगती है, टटोलता है, गिरता है, उठता है, मार्ग खोजता है, गुरू खोजता है, लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश Plus d'informations मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद ही हो गय.
Plus tard, plus tard क्यों ? क्योंकि अब तक जो जीवन ऊर्जा वासना बन रही थी वह कहां जायेगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। कभी धन के पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे दौड़ती थी, महत्वाकांक्षाएं थी अनेक-अनेक तरह के भोगों की कामना थी, सारी ऊर्जा वहाँ संलग्न थी थी थी थी थी स. प्रकाश का जलते, ज्ञान का उदय होते होते, वह सारा अंधकार, वह भोग, महत्वाकांक्षा ऐसे ही विलीन हो जाते हैं जैसे जैसे दीये को जलाने से ही विलीन हो जाते हैं जैसे दीये दीये को जलाने से अंधक विलीन हो ज.
ऊर्जा क्या होगी ? जो ऊर्जा काम वासना बनी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊर्जा ईर्ष्या बनती थी थी, उस ऊर्जा का, उस शुद्ध शक्ति का क्या होगा? वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है। धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations लेकिन जब सभी कामनाएं शून्य हो जाती हैं, सारी ऊर्जा मुक्त होती है। Plus d'informations एक प्रगाढ़ शक्ति !
जब भी आनंद का जन्म होता है, समाधि का जन्म होता है, सत्य का आकाश मिलता है, तब तुम तत्क्षण पाते हो कि वे जो पीछे पीछे तुम तत्क्षण पाते हो कि वे जो पीछे ह गये उन्हे. तब तुम्हारा सारा जीवन जो बंधे हैं उन्हें मुक्त करने में लग जाता है। Plus d'informations जिनके पैर जाम हो गए हैं, उनके पैरों को फिर जीवन देने में लग जाता है।
जीवन बीतता है बूंद-बूंद रिक्त होता है रोज हाथ से जैसे रेत सरकती वैसे पैर के नीचे की भूमिरकती जाती है।।. दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिये बड़ी सजगता चाहिये और इतने धीमे-धीमे बीतता है जीवन, कि पता नहीं चलता कि हर घड़ी मौत निकट आ ही है है।। चलत. Plus d'informations मैं तो कभी मरता नहीं, कोई और मरता है। Plus d'informations Plus d'informations
आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता बेहोशी में, अपने ही हाथ से आदमी अपने को समाप्त कर लेता है और जो भी तुम कर हे हो .asse कितना ही धन कमाओ, कितना ही पद-प्रतिष्ठा मिले, मौत सब कुछ सापफ़ कर देती है। मौत सब मिटा देती है। तुम्हारे बनाये सब घर, ताश के पत्तों के घर सिद्ध होते हैंर तुम्हारे द्वारा बनाई गई नावें कागज की. सब डूब जाता है।
जिसे यह होश आना शुरू हो गया कि मौत है, उसी के जीवन में धर्म की किरण उतरती है। Plus d'informations Plus d'informations मृत्यु है और जब तक तुम मृत्यु को झूठलाओगे तब तक तुम्हारे जीवन में धर्म की किरण नरेगी। मृत्यु को ठीक से समझो क्योंकि उसके आधार पर ही जीवन में क्रांति होगी। तुम्हे अगर पता चल जाये कि आज सांझ ही मर जाना है, तो क्या तुम सोचते हो, तुम्हारे दिन का व्यवहार वही हेगcreहेग. क्या तुम उसी भांति दुकान जाओगे ?
उसी प्रकार ग्राहकों का शोषण करोगे ? क्या उसी भांति व्यवहार करोगे, जैसा कल किया था? क्या पैसे पर तुम्हारी पकड़ वैसे ही होगी, जैसे एक क्षण पहले तक थी थी? क्या मन में वासना उठेगी, काम जागेगा? राह से गुजरती कार मोहित करेगी ? किसी का भवन देख कर ईर्ष्या होगी ? नहीं सब बदल जाएगा।
अगर मौत का पता चले कि आज ही सांझ हो जाने वiner मौत का जरा सा भी स्मरण तुम्हें वही न रहने देगा जो तुम हो और जो तुम हो बिल्कुल गलत हो।। हो. क्योंकि सिवाय दुःख के और तुम्हारे होने से कुछ भी फल नहीं नहीं आता। Plus d'informations फल लगते हैं निश्चित तुम्हारी आशाओं के अनुकूल नही, न तुम्हारे स्वप्नों के अनुसार। फल लगते हैं तुम्हारी आशाओं के विपरीत, तुम्हारे सपनों से बिल्कुल उलटे।
शरीर को ही तुमने अगर देखा तो तुम कीचड़ पर रूक गये और कमल से अपरिचित रह गये। अगर तुमने शरीर से शत्रुता की और शरीर को दबाने और गलाने में लग गये, तो भी तुम वंचित ह जाओंगे, क्योंकि उस संघर्ष से कमल वंचित पैदcre Plus d'informations इस सहयोग का नाम ही योग की कला है। Plus d'informations जहाँ दो दिखाई पडें- अत्यंत विपरीत, वहाँ भी एक के ही सूत्र को देख लेना, एक के ही जोड़ को देख लेना, वही की परम दृष्टि है को देख लेन. इसलिये में निरंतर कहता हूँ, तुम्हारे भीतर छिपा हुआ काम ही तुम्हारे भीतर का राम बन जायेगा। Plus d'informations
Sa Sainteté le Sadhgurudev
M. Kailash Chandra Shrimali
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