प Joh यज्ञ की वेदी के आस-पास घूमता हुआ साधक या याचक भी पत्नी मांगता है, पुत्र मांगता है, धन मांगता है, यश यश्र सम्nerci.. असल में जिसके चित्त में संसार है उसकी प्रारoration में में संसार ही होगा। जिसके चित्त में वासनाओं का जाल है उसके प्रारoration केा के स्वर भी उन्हीं वासनाओं के धुयें को पकड़ कर कुरूप हो जाते हैं। धुयें को पकड़. Non कुरूप हो ज. यहां एक बात और समझ लेनी जरूरी है कि जब कहते हैं, सांसारिक मांग नहीं नहीं, तो अनेक बार मन में खयाल उठता है गैर-सांसारिक मांग तो हो सकती है न! जब कहते हैं, संसार की वस्तुओं की कोई चाह नहीं, तो खयाल उठ सकता है कि मोक्ष की वस्तुओं की चाह तो हो सकती है न! नहीं मांगते संसार को, नहीं मांगते धन को, नहीं मांगते वस्तुओं को। मांगते है शांति को, आनंद को। छोडे़, इन्हें भी नहीं मांगते है प्रभु के दर्शन को, मुक्ति को, ज्ञान को। Plus d'informations अनेक-अनेक संबंध मनुष्य ने ईश्वर के साथ स्थापित किये हैं।। कहीं ईश्वर को पिता, कहीं माता, कहीं प्रेमी, कहीं मित्र, कहीं कुछ और ऐसे बहुत-बहुत संबंध आदमी ने परम सत्य के साथ स्थापित करने की. इसे थोड़ा समझ लेना आवश्यक है। यह बड़ी अंतर्दृष्टि है। परमात Joh परमात्मा से हम काई भी संबंध स्थापित करें वह नासमझी का है। क्यो ? क्योंकि संबंध में एक अनिवार्य बात है कि दो की मौजूदगी होनी चाहिये, संबंध बनता ही दो से है। Tous les autres मैं हूँ या मेरी मiner
कबीर ने कहा है- 'खोजने निकला था, बहुत खोज की और तुझे नहीं पाया। खोजते-खोजते खुद खो गया तब तू मिला।' वह खोजने निकले थे वह जब तक था, तब तक उनसे कोई मिलन न हुआ और जब खोजते-खोजते तू तो न मिल. इसका तो मतलब यह हुआ कि मनुष्य का परमात्मा से मिलना कभी भी नहीं होता है। क्योंकि जब तक मनुष्य रहता है, परमात्मा नहीं होता और जब परमात्मा होता है तो मनुष्य नहीं होता। दोनों का मिलना कभी नहीं होता। इसलिये इस जगत में जितने सम्बन्ध है, उनमें से कोई भी सम्बन्ध हम परमात्मा पर लागू करके भूल करते हैं।।. पिता से मिला जा सकता है बिना मिटे, माता से मिला जा सकता है बिना मिटे, मिटना कोई शर्त नहीं है।। Plus d'informations सम्बन्ध होता है दो के बीच और परमात्मा से संबंध होता है तब, जब दो नहीं होते होते इसलिये संबंध बिल्कुल उल्टा है। उस अस्तित्व की और गहनता में और गहराई में प्रवेश करना हो तो कुछ और निषेध भी समझ लेनेरूरी हैं।।.
कल हमने समझा, शरीर नहीं हूँ मैं मैं, इद्रियाँ नहीं हूँ, मन नहीं हूँ, बुद्धि नहीं हूँ चैतन्य हूँ। लेकिन उससे भी सूक्ष्म आवरण है और वे सूक्ष्म आवरण सिफऱ् समीप होने के कारण निर्मित हो जाते हैं। के क. Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations दीया जलाया हमने, जलते ही दीये के जो भी उस दीये के घेरे में पड़ जाता है सब प्रकाशित हो जाता है।
ऐसी ही चेतना जो हमारे भीतर है, उसके जो भी निकट है वह सभी प्रकाशित हो जाता है। Plus d'informations अगर दीये को भी होश आ जाये— दीया नहीं था, अंधेरा था, तब कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था फिर दीया जलiner क्योंकि जब मैं नहीं होता तब यह कुछ भी तो नहीं होता न दीवारें दिखiner स्वभावतः, सीधा तर्क है कि मेरे होने में ही इनका होना भी समाया हुआ है। चैतन्य का भी अनुभव यही है है, चैतन्य अगर नहीं होता तो न शरीरीर होता, न होत होता, न बुद्धि होती, न इंद्रियाँ होती है कुछ भी नहीं होत्धि होती चैतन्य इंद्रviँ होती कुछ भी भी नहीं होत. चैतन्य अगर बेहोश हो जाये, गहन निद्रा में खो जाये, तो भी शरीर का पता नहीं चलता फिर बुद्धि का कोई पता नहीं चलता। चैतन्य जिस चीज को भी पtenir यही हमारी सारी भूल है और फिर जिससे हम अपने को एक समझ लेते हैं उसी तरह का हम व्यवहार करने लगते हैं।
जीवन में जो भी पाने योग्य है, वह जीवन में ही पाया जा सकता है। Plus d'informations बहुत लोग सोचते है कि देह में, जीवन में, संसार में रहकर कैसे पाया जा सकता है सत्य को, ब्रह्म को, मुक्ति को! लेकिन जो जीवन में नहीं पाया जा सकता वह कभी भी नहीं पाया जा सकता है।
जीवन तो एक अवसर है पाने का, चाहे पत्थर जुटाने में समाप्त कर दें और चाहे परमात्मा को पाने में।. जीवन तो बिल्कुल तटस्थ अवसर है। जीवन आपसे कहता नहीं, क्या पायें। कंकड़-पत्थर बीनें, व्यर्थ की चीजें संग्रहीत करें, अहंकार को बढ़iner लगा दें दें, तो भी जीवन बाधा नहीं डालेगा कि मत करें ऐसा जीवन सिर्फ अवसर है तटस्थ, जो भी उपयोग करना चाहें कर लें।। जीवन को केवल वहीं उपलब्ध होते हैं जो स्वयं के और सर्व के भीतर परमात्मा को अनुभव कर लेते हैं।।।. इस अभाव में हम केवल शरीर मात्र हैं और शरीर जड़ है जीवन नहीं।। स्वयं को जो शरीर मात्र ही जानता है, वह जीवित होकर भी जीवन को नहीं जानता है।
जीवन की अनादि, अनंत धारा से अभी उसका परिचय नहीं हुआ और उस परिचय के अभाव में जीवन आनंद नहीं हो पाता है। आत्म-अज्ञान ही दुःख है आत्म ज्ञान हो तो मनुष्य का हृदय आलोक बन जाता है, और वह न हो तो उसक.
एक आकाश, एक स्पेस बाहर है, जिसमें हम चलते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, जहाँ भवन निर्मित होते हैंर जहाँ पक्षी उड़ते हैं। यह आकाश हमारे बाहर है। Plus d'informations एक और भी आकाश है, वह हमारे भीतर है। जो आकाश हमारे बाहर है वह असीम है। Plus d'informations लेकिन जो आकाश हमारे भीतर फैला है, बाहर का आकाश उसके सामने कुछ भी नहीं है। Plus d'informations अनंत आयामी उसकी असीमता है। बाहर के आकाश में चलना-उठना होता है, भीतर के आकाश में जीवन है। बाहर के आकाश में क्रियायें होती हैं, भीतर के आकाश में चेतन्य है।
जो बाहर के ही आकाश में खोजता रहेगा वह कभी भी जीवन से मुलाकात न कर पायेगा। उसकी चेतना से कभी भेंट न होगी। Plus d'informations ज्यादा से ज्यादा पदार्थ मिल सकता है बाहर, परमात्मा का स्थान तोर कर का आकाश है, अंतर-आकाश है।. जीवन के सत्य को पाना हो तो अंतर-आकाश में उसकी खोज करनी पड़ती है। Plus d'informations हमने कभी भीतर के आकाश में कोई उड़ान नहीं भरी है हमने भीतर के आकाश में एक चरण भी नहीं रखा है, हम भीतर की तरपफ़ गये ही नहीं।। हमारा सब जाना बाहर की तरफ है। हम जब भी जाते हैं बाहर ही जाते हैं। Plus d'informations यह प्रश्न सदा ही साधक के मन में उठता है कि जब मेरा स्वभाव शुद्ध है तो यह्धि कहां से आ जाती है? और जब मैं स्वभाव से अमृत तो यह मृत्यु कैसे घटि। हि। हिु कैसे घटि। हि। और जब भीतर कोई विकार ही नहीं है, निर्विकार, निराकार का आवास है सदा से, सदैव से, तो ये विकार के बादल कैसे घिर जाते हैं? कहा से इनका जन्म होता है? कहां इनका उद्गम है? Plus d'informations पहली बात तो यह समझनी पड़ेगी कि जहां भी चेतना है वहां चेतना की स्वतंत्रताओं में एक स्वतंत्रता यह भी है कि वह अचेतन सकेगी सकेगी सकेगी।. ध्यान रखे अचेतन का अर्थ होता है, चेतन, जो कि सो गय गया चेतन, जो कि छिप गया! Plus d'informations जड़ की यह क्षमता नहीं है। Plus d'informations Plus d'informations
ध्यान रखें, जो सो नहीं सकता वह जागेगा कैसे? चेतनाकी ही क्षमता है अचेतन हो जाना। Plus d'informations चेतन, जो कि छिप गया ! यह चेतना की ही क्षमता है अचेतन हो जाना। Plus d'informations अचेतन का अर्थ है, चेतना का प्रसुप्त हो जाना, छिप जाना, अप्रकट हो जाना। चेतना का मतलब है कि चाहे तो प्रकट हो, चाहे तो अप्रकट हो जाये। यही चेतना का स्वामित्व है या कहें, यही चेतना की स्वतंत्रता है। अगर चेतना अचेतन होने को स्वतंत्र न हो तो चेतना परतंत्र हो जायेगी। Plus d'informations
इसे ऐसे समझें कि अगर आपको बुरे होने की स्वतंत्रता ही न हो तो आपके भले होने का अर्थ क्या होगा? अगर आपको बेईमान होने की स्वतंत्रता ही न हो तो आपके ईमानदार होने का कोई अर्थ नहीं होता है। जब भी हम किसी व्यक्ति को कहते हैं कि वह ईमानदार है तो इसमें निहित है है, कि च चाहता तो बेईमान हो सकता था, पर नहीं हुआ।। अगर हो ही न सकता हो बेईमान तो ईमानदारी का कोई मतलब नहीं होता। ईमानदारी का मूल्य बेईमान होने की क्षमता और संभावना में छिपा है।
एक अंधेरी रात की भांति है तुम्हारा जीवन, जहाँ सूरज की किरण तो आना असंभव है मिट्टी के दिये की छोटी सी लौ भी नहीं है है।।. T इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूँ, तो आदमी खोजता है, तड़पता है प्रकाश के लिये, प्यास जगती है, टटोलता है, गिरता है, उठता है, मार्ग खोजता है, गुरू खोजता है, लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश Plus d'informations मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद ही हो गय.
एक पुरानी कथा है। एक समtenir सम्राट ने जितने बच्चे उस वर्ष पैदा हुये, सभी को कारागृह में डाल दिया, मारा नहीं। क्योंकि सम्राट को लगा कि कोई एक इनमें से हत्या करेगा और सभी की हत्या मैं क्यों करू यह महापाप हो जायेगा। छोटे-छोटे बच्चे बड़ी मजबूत जंजीरों में जीवन भर के लिये कोठरियों में डाल दिये गये। जंजीरों में बंधे- बंधे हुये ही वे बडे़ हुये। उन्हें याद भी न रही कि कभी ऐसा भी कोई क्षण था जब जंजीरें उनके हाथ में न हीं हों हों। Plus d'informations Plus d'informations गुलामी ही जीवन थी और इसीलिये उन्हें कभी गुलामी अखरी नहीं क्योंकि तुलना हो तो तकलीपफ़ होती है है तुलना का कोई उपाय नहीं था। Plus d'informations गुलामी ही उनका सार-सर्वस्व था तुलना नहीं था स्वतंत्रता की और दीवारो से बंधे थे थे।
उनकी आंखें अंधकार की इतनी अधीन हो गई थीं कि वे पीछे लौटकर भी नहीं देख सकते थे थे, जहाँ प्रकाश का जगत था। प्रकाश कष्ट देने लगा था। अंधेरे से इतने राजी हो गये थे थे, कि अब प्रकाश से राजी नहीं हो पाती थी आँखें। सिर्फ अंधेरे में ही आँख खुलती थीं थीं, प्रकाश में तो बंद हो जाती थीं। तुमने भी देखा होगा, कभी घर में शांत स्थान से भरी दुपहरी में बाहर आ जाओं, आँख तिलमिला जाती है। जो जीवन भर रहे हैं अंधकार में, वे पीछे लौट कर भी नहीं देख सकते थे वे दीवार की तरफ ही देखते थे। राह पर चलते लोगों, खिड़की द्वार के पास से गुजरते लोगों की छायायें बनती थीं सामने दीवार पर वे समझते थे, वे छायायें सत्य हैं।. Plus d'informations Plus d'informations पीछे लौट कर देखने का मतलब यह था, आँख में आंसू आ जायें वह पीड़ा का जगत था। तुमने भी सत्य को देखना बंद कर दिया है और जब भी कोई तुम्हें सत्य दिखा देता है तो पीड़ा होती है।। सत. Plus d'informations
लेकिन एक आदमी ने हिम्मत की क्योंकि उसे शक होने लगा ये छायायें, छायायें नहीं हैं। क्योंकि इनसे बोलो तो ये उत्तर नहीं देतीं इन्हें छूओं तो कुछ भी हाथ में नहीं आता। Plus d'informations Plus d'informations वर्षों लग गये, बड़ा कष्ट हुआ जब भी पीछे देखता, आँखें तिलमिला जातीं थी, आंसू गिरते लेकिन उसने अभ्यास जारी रखा फिर धीरे-धीरे आँखे र र होने लगींœuvre समझ लिया है। वह पीछे देखने में समर्थ हो गया, उसकी गर्दन मुड़ने लगी और उसकी आँखें देखने लगी बाहर के रंग, वृक्ष और वृक्षों में फूल फूल फूल, ° से गुजरते लोग।. रंगीन थी दुनिया काफी। छायाये बिल्कुल रंगहीन थी, उदास थी, बाहर उत्सव था छायाओं में कोई्सव पकड़ में नहीं आता थाय. बच्चे नाचते गाते निकलते थे। Plus d'informations यहाँ पीछे छूपा हुआ असली जगत था।
उस आदमी ने धीरे-धीरे इसकी चर्चा दूसरे कैदियों से शुरू की।। Plus d'informations हम तो सदा से यही सुनते आए है कि यह सत्य है है जो सामने है और हम तो पीछे मुड़ कर देखते है तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता, सिवाय कर के है अब आँख आँख बंद हो जœuvre नहीं है कि अंधकार हो। हो सकता है, सिर्फ आँख बंद हो जाती हो। Plus d'informations तो कोई यह तो मानता नहीं कि मेरी आँख बंद हो सकती है, इसलिए अंधकार है। Plus d'informations मेरी आँख और बंद हो सकती है? यह कभी संभव है? हम अपनी आँख तो सदा खुली मानते हैं। Plus d'informations Plus d'informations अपनी आत्मा तो सदा जाग्रत मानते है और वही हमारी भ्रांतियों की जड़ है फिर कैदियों की्या बहुत थी, वह अकेला था और लोग खूब हंसे हंसेœuvre धीरे-धीरे उस आदमी को पागल मानने लगे।
Plus d'informations Plus d'informations जहाँ बीमारी स्वास्थ्य्य समझी जाती हो, वहाँ स्वस्थ आदमी का लोग इलाज कर देंगे पकड़ कर। स्वाभाविक है। क्योंकि लोग अपने को मापदंड समझते है और फिर जब बहुमत उनके साथ हो, बहुमत ही नहीं, सर्वमत उनके साथ हो, उस एक आदमी को छोड़.. लोग हंसे, मजाक की, उसे पागल समझा, उसका तिरस्कार किया, उसकी उपेक्षा की, धीरे-धीरे लोगों ने उससे बातचीत बंद कर दी।। क्योंकि वह बेचैनी पैदा करता था क्योंकि कभी-कभी संदेह उनके मन में भी उठ उठ आता था कि हो न हो कही यह आदमी सच न हो।। कि हो हो हो यह आदमी सच न हो हो। Plus d'informations बड़ा दांव है। यह आदमी गलत होना ही चाहिए। नहीं तो उनकी पूरी जिंदगी गलत होती और कोई भी आदमी नहीं चाहता कि उसकी पूरी जिंदगी गलत सिद्ध हो। Plus d'informations तुमने अवसर खो दिया। तुम मूढ़ हो, अज्ञानी हो, मूर्च्छित हो। अहंकार यह मानने को तैयार नहीं होता। अहंकार कहता है मुझसे ज्ञानी और कौन ? मुझसे समझदार और कौन ? ऐसे अहंकार रक्षा करता अज्ञान की। अहंकार रक्षक है, अज्ञान के ऊपर। Plus d'informations
धीरे-धीरे उन्होंने इसकी उपेक्षा कर दी, क्योंकि उससे बात करनी बेचैनी थी। क्योंकि वह हमेशा रंगो की बात करता, रंग उनमें से किसी ने भी देखे न थे थे। Plus d'informations संगीत उनमें से किसी ने भी सुना न था। उनकी सब इन्दtenir आखिर कैदी को भी सांत्वना तो चाहिये तो वह जंजीर को आभूषण समझ लेतcre Plus d'informations न केवल समझ लेता है बल्कि भीतर से सजा भी लेता है, ताकि पूरा भरोसा आ जाए, अपना घर है।
Plus d'informations Plus d'informations क्योंकि जिसकी जंजीर जितनी चमकदार होती, वह उतना संपत्तिशाली समझा जाता था। Plus d'informations जिसकी जंजीर जितनी वजनी होती, उसकी उतनी ही संपदा थी स्वभावतः। Plus d'informations क्योंकि जंजीर ही उनका जीवन थी और जंजीर को उन्होंने जंजीर कभी माना न था, वह आभूषण था। वही तो एकमात्र सजावट थी उनके शरीर पर और तो कोई सजसजcre क्योंकि उसे स्वतंत्रता के जगत की थोडी झलक मिलनी शुरू हो गई।। एक किरण उतर आई अंधेरे में। सूरज का संदेश आ गया। अब इस अंधेरे घर में, इस अंधेरे कारागृह में रहना मुश्किल हो गया। Plus d'informations
Plus d'informations बाहर की जंजीर बहुत कमजोर है। Plus d'informations Plus d'informations एक बार उसे समझ में आ गया कि आभूषण नहीं है, आधी तो मुक्ति हो ही गई। उसी दिन से उसने जंजीरों को घिसना बंद कर दिया, साफ करना बंद कर दिया, सजाना बंद कर दिया। Plus d'informations उदास हो गया बेचारा। Plus d'informations जिंदगी में हार गया। शायद पाया कि अंगूर खट्टे हैं। छलांग पूरी न हो सकी। कमजोर था। हम पहले से ही जानते थे कि कमजोर है। Plus d'informations Plus d'informations ऐसे ही वे सजाया रह रहा हैं आसपास की दीवार को साफ-सुथरा करना भी बंद कर दिया। अब पागलपन बिल्कुल पूरा हो गया है।
लेकिन उस आदमी ने धीरे-धीरे जंजीरे तोड़ने के उपाय खोज लिये। Plus d'informations आधा तो गिर ही गया। बुनियाद तो हिल ही गई। पीछे के जगत का, छिपे हुए जगत का संदेश आ जाए—— तब एक अनंत पुकार उसे पुकारने लगी। एक प्यास उसके रोएंरोएं में समा गई-असली जगत में प्रवेश करना है। उसने जंजीरे तोड़ी। जब प्यास प्रगाढ़ हो, तो कमजोर से कमजोर आदमी शक्तिशाली हो जाता है। जब प्यास प्रगाढ़ न हो, तो कमजोर से कमजोर जंजीरें भी बड़ी मजबूत मालूम पड़ती हैं। प्यास बढ़ती चली गई। पीछे का जगत ज्यादा साफ होने लगा। Plus d'informations एक दिन उसने जंजीरे तोड़ दीं और वह उस कारागृह से निकल भागा। वह नाच रहा था। Plus, plus, plus et plus! बस, वास्तविक लोग, छायायें नहीं।
एक भरोसा चाहिये। भरोसे का मतलब इतना ही है, कि जो मैंने नहीं जाना है वह भी हो सकत. अगर तुम सोचते हो कि तुमने जो जाना है बस उतना ही है, तब तो यात्रा का कोई सवाल ही नहीं है।। Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations मेरा अनुभव और सत्य समान है। यह संदेह है। श्रद्धा का अर्थ है, मेरा अनुभव छोटा है, सत्य बहुत बड़ा हो सकता है। मेरा छोटा आंगन है। आंगन पूरा आकाश नहीं। बड़ा आकाश है। इतना जिसे ख्याल आ जाए, जिसे संदेह पर संदेह आ जाए, वह श्रद्धावान हो जाता है। Plus d'informations जिसे संदेह पर संदेह आ जाए, जो अपने संदेह की प्रवृति के प्रति संदिग्ध हो जाए, उसके जीवन श्रद Joh
Plus d'informations मैंने थोड़े कंकड़-पत्थर बीन लिए हैं समुद्र के तट पर, लेकिन इससे समुद्र का तट समाप्त नहीं हो गया। मैंने मुट्ठी भर रेत इकट्ठी कर ली है, लेकिन सागर के किनारो पर अनंत रेत शेष है। Plus d'informations Plus d'informations मैं कितना ही प्राप्त करूँ लेकिन पाने को सदा शेष रह जायेगा। Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations तुम पा-पा कर थक जाओगे, वह नहीं चुकेगा। Plus d'informations Plus d'informations हम कण मात्र है। जब कण को ख्याल हो जाता है कि मैं सब कुछ हूँ, वही श्रद्धा समाप्त हो जाती है।
Plus d'informations अनजान में प्रवेश, अज्ञात में प्रवेश, जहाँ मैं कभी नहीं गया, जो मैं कभी नहीं हुआ, वह भी हो सकत. Plus tard, plus tard क्यों ? क्योंकि अब तक जो जीवन ऊर्जा वासना बन रही थी वह कहाँ जाएगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। अभी धन के पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे दौड़ती थी, महत्त्वकांक्षाए थी अनेक। अनेक-अनेक तरह के भोगो की कामना थी, सारी ऊर्जा वहाँ संलग्न थी। प्रकाश के जलते, ज्ञान के उदय होते वह सारा अंधकार, वह भोग, लिप्सा, महत्वकांक्षा ऐसे ही विलीन हो जाते है, जैसे दीये के जलते अंधकार। ऊर्जा का क्या होगा ? जो ऊर्जा काम-वासना बनी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊर्जा ईर्ष्या बनती थी थी मत्सर बनती थी उसœuvre वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है और वह करूणा तुम्हारी काम-वासना से्यादा अदम्य होती है।।।. क्योंकि तुम्हारी काम-वासना और बहुत सी वासनाओं के साथ हैं महत्वकांक्षा, धन भी पाना है।।. तुम काम-वासना को स्थगित भी कर देते हो कि ठहर जाओ दस वर्ष, धन कमा लेंगे ठीक सेर शादी करेंगे। धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। Plus d'informations Plus d'informations हजार कामनाएं है और सभी में ऊर्जा बंटी है लेकिन जब सभी कामनाएं शून्य हो जाती है, सारी ऊर्जा मुक्त होती है है। Plus d'informations एक प्रगाढ़ शक्ति ! उस शक्ति का क्या होगा?
जब भी आनंद का जन्म होता है, सत्य का आकाश मिलता है, तब तुम्क्षण पाते हो कि वे जो पीछे पीछे ह गये उन्हें मुक्त करने में लग ज जाताआक. जिनके पंख जंग खा गए है, उनके पंखों को सुधारने में लग जाता है कि वे फिर से उड़ सकें सकें जिनके पैर जाम हो गए है, उनके पैरों को फिर जीवन देने में लग जाता है। Plus d'informations तुम लगड़े हो। तुम चले नहीं। यात्रा तुमने बहुत की है लेकिन जब तक तीर्थयात्रा न हो, तब तक कोई यात्रा यात्रा नहीं। तुम बहरे हो। तुमने सुना बहुत है, लेकिन वासना के सिवाय कोई स्वर तुमने नहीं सुना और वासना भी कोई संगीत है! Plus d'informations वासना तो एक विसंगीत है, जिससे तुम तनते हो, चिंतित होते हो बेचैन, बेचैनरेशान होते हो। संगीत तो वह है जो तुम्हें भर दें उस अनंत आनंद से से, जहाँ सब बेचैनी खो जाती है, जहाँ चैन की बांसुface
तुम अंधे हो। तुमने बहुत कुछ देखा है लेकिन जो देखा है वह सब ऊपर की रूपरेखा है। भीतर का सत्य तुम नहीं देख पाते। शरीर दिखता है, आत्मा नहीं दिखती। Plus d'informations दृश्य दिखाई पड़ता है, अदृश्य नहीं दिखाई पड़ता और अदृश्य ही आधार है दृश्य का। परमात Joh Plus d'informations अंधे हो तुम, पंगु हो तुम। जिसके जीवन में समाधि खिलती है वह भागता है उनको जगाने, जो सोये है है। कुछ दिन तो उसने अपने को रोका।
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations पत्थर और कांटों से स्वागत होगा, फूलमालाये मिलने को नहीं नहीं। लेकिन अदम्य है करूणा। उसे रोका नहीं जा सकता।
जीवन बीतता है रोज हाथ से जैसे रेत सरकती जाये वैसे पैर के नीचे की भूमि सरकती जाती है दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिये बड़ी. Plus d'informations आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता। अपने ही हाथ से आदमी अपने को समाप्त कर लेता है और जो भी तुम कर रहे हो उसका कोई भी्यधिक मूल्य नहीं है। हो उसक. ऐसी दशा मनुष्य की है उसे पता भी नहीं कि उसकी जड़े टूट गई हैं हैं। उसे पता भी नहीं कि परमात्मा से उसका सम्बन्ध विच्छन्न हो गया। उसे पता भी नहीं कि जीवन के स्त्रोत से उसकी सरिता अलग हो गई है है। किसी नेवृक्ष को काट गिराया है। वृक्ष कट गया है, लेकिन अभी हरा है अभी भी फूल खिले है, मुरझाने में समय लगेगा उसे पता नही कि जड़ों से सम्बन्ध्ध टूटा है उसे पता नही जड़ों से सम सम्बन्ध टूटा है उसे पता नहीं कि अब जमीन से कोई नाता न उसे उसे .cre।. कोई उपाय भी तो नहीं है उसे समझाने का और जब समझाने का उपाय होगा तब समझाने का कोईर्थ न ह ° जायेगा जब वह सूख ही जर्थ न बुदœuvre Plus d'informations अक्सर लोग मरने के समय में समझ पाते है कि जीवन व्यर्थ गयiner-इसके पहले उन्हें समझाने की कितनी ही कोशिशरो, उनकी समझ नही नहीाने की कितनी कोशिश करो, उनकी समझ नही नही आत. क्योंकि क्षुद्र में वे सार देखते रहते है और उन्हे यह भी भरोसा नही आता कि मौत आने वाली है।।।।. क्योंकि बुद्धि कहे जाती है और दूसरे मरते होंगे, तुम तो कभी पहले मरे नहीं और जो कभी नहीं हुआ, वह क्यों होगा? Tout ce que vous voulez Plus que jamais ! Plus d'informations
आप जब भी किसी को मरते हुये देखते है तो ऐसा लगता है, कोई दुर्घंटना हो गई न कि कोई जीवन का सत्य मृत्यु ऐसी है जैसे जैसे होनी न थीर सत्य मृतxte जिस दिन जन्में, उसी दिन जड़े टूट गई। Plus d'informations, plus d'informations जिस दिन जन्में उसी दिन परमात्मा से दूर जाने की यात्रा शुरू हो गई।। उसी दिन हम पृथक हो गये। पृथकता को अर्थ समझ लेना चाहिये। Plus d'informations अंग कहना भी ठीक नहीं क्योंकि उसे यह भी पता नहीं था कि मैं अंग हूँ हूँ। वह माँ के साथ एक था। Tous les autres क्योंकि एक होने का भी पता तब ही चलता है, जब हम दो हो गये हों हों। Plus d'informations बच्चा सिर्फ था होना परिपूर्ण था। फिर बच्चा पैदा हुआ माँ से विच्छन्न हुआ, जड़े टूटीं टूटीं, जैसे किसी ने पौधा काट डाला।
जिसको हम जन्म कहते हैं, वह माँ से दूर हटने की प्रक्रिया है और फिर जिसको हम जीवन कहते हैं हैं वह रोजरोज दूर हटते. पहले बच्चा माँ के गर्भ से अलग होता है, लेकिन तब भी माँ के साथ उसका सम्बन्ध जुड़ा रहता है, फिर वह्बन्ध भी टूट जायेगा।, फिर वह्बन्ध भी टूट जायेगा। फिर भी वह माँ के आसपास घूमता रहेगा। Plus d'informations ऐसे वह दूर जा रहा है और जितना दूर जायेगा उतना अहंकार मजबूत होगा। Plus d'informations Plus d'informations
ज्योति जब मिल जाये तब अंधेरे का अंत हो जाता है प्रकाश के आते ही तिमिर टिक नही पाता, सामना नहीं कर पाता प्रकाश का। क्यों, इसलिये कि्रकाश की उपस्थिति उसके अस्तित्व को खंडित कर देती है। चुपके से अंधकार उस अवस्था की प्रतीकtenir मन के किसी कोने में जब सत्य का दीप आलोक बिखेरता है, तब अज्ञान तिमिर छंटने लगता है और अभीप्सा के स्वर मुखरित होने लगते हैं हैं. सत्य की पुकार जब अस्तित्व के किसी कोने को झंकृत करने लगती है है, तब स्वयं में एक्रिय रूपांतरण घटित होने लगता है। सक. इसी सुखद अवसर में जब अभीप्सा पीड़ा बनने लगे और पीड़ा समाधान की दिशा में आतुर होकर अंगड़ाई ले, तो संपूर्ण अस्तित्व प्रभु से भोगत. Plus d'informations ऐसे अवसर ही स्वयं को उस अद्भुत उपलब्धि में स्थिर करते हैं, जहाँ स्वयं है। Plus d'informations
समाधान में तृप्ति है। अस्तित्व का प्रत्येक कोना समाधान की ओर जब अग्रसर हो, तब समाधान निकट होता है। Plus d'informations हाथ लगा समाधान बिखर जाता है, पाया स्वबोध विलीन हो जाता है और फिर अभीप्सा और स्वयं की आतुरता में्तित्व्व जाग्रत होता है औरत्य. निकट आया और उपलब्ध हुआ 'स्वयं' कहां खो जाता है? जागरूकता के अभाव में चूक होती है।
Plus d'informations क्यों ? क्योंकि किनारे की निकटता का बोध शिथिलता को जन्म देता है, पर कभी अधिक जागरूकता और किनारे पर ही गंतव्य है।
अपनी अभीप्सा की पीड़ा में, गहरी पीड़ा में परिवर्तन होने दो दो, छटपटाहट बढ़ने दो। यह छटपटाहट ही पर से स्व की ओर चेतना को आमंत्रण देगी और यात्रा पूर्णता कीर विकसित होगी होगी। अपने अनtenir
Plus d'informations एक क्षण की सावधानी स्वयं के सौंदर्य को चकित कर सकती है है, परन्तु कुछ पल की असावधानी, बेहोशी और जड़ता जीवनर कुंठन बन सकती सकती है।।.
जागो, गहरी निद्रा से जागो। Plus d'informations Plus d'informations इस पुकार और अभीप्सा में तुम्हारी सावधानी स्वयं के साम्राज्य में अतुल्य विपुल आत्मवैभव और आत्म सौंदर्य का अतुल्य विपुल्मवैभव और आत्म सौंदर्य का अतुल खजाना लिये खड़ी.
उठो, जागो और संभलों कि पा सकों स्वयं को, जान सको स्वयं के आत्मा को। परमशांति के दूत तुम्हारे स्वागत के लिये खड़े है और प्रकाश तुम्हें दिव Joh
Sa Sainteté le Sadhgurudev
M. Kailash Chandra Shrimali
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