साधक अपने जीवन में चार पुरूषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त कर पूर्णत्व की ओर अग्रसर होने के लिये हर समय तत्पर रहता है किन्तु अर्नगल लोगों द्वारा षड्यंत्र, तंत्र प्रयोग आदि बाधायें शत्रुरूप धारण कर सामने खड़ी होता है। जब तक साधक अपने शत्रु इन शत्रुओं को समाप्त नहीं करेगा तक जीवन में सुख, शांति, उत्साह, आनन्द को्राप्त कर नहीं सकताह, आनन्द को्राप्त कर नहीं सकता है।
मानव जीवन मे पग-पग पर शत्रु पैदा होते है और जिनके बीच खड़े रहकर अपनी मंजिल की ओर बढ़नाक, साधारण मनुष्य के लिये कठिन और दुष्कर होतारण क्य के शतœuvre दुविधा ग्रस्त होने के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है और इन्हीं सब कारणों से उसे अपने जीवनœuvre
इस वैमनस्यता के युग में आज हर कोई शक्तिशाली बनने कiner पौराणिक काल से अब तक यह होता रहा है, कि जो साधारण, कमजोर, अस्वस्थ, निर्बल प्राणी होते है, उन पर हर कोई प्रहार करने की कोशिश करता है और किया भी है, पुराने जमाने में वह वर्ग माना जाता था, जन सामान्य पर अत्याचार कर, उन पर आधिपत्य स्थापित कर उन्हें अपना गुलाम बना लिया जाता था।
अगर मानव इसी प्रकार का भय ग्रस्त जीवन जीयेगा तो वह जीवन में कभी भी Dieu उसे किसी मुकदमे में फंसा न दे दे, कहीं वह घर में अशांन्ति उत्पन्न करने की कोशिश न कर रहा हो या व्यार में हœuvre.
ऐसे क्षणों में मानव मस्तिष्क के अधिक विचारशील हो जाने के कारण, उसके मन में विभिन्न प्रकार की चिन्ताएं व्याप्त हो जाती हैं, अतः वह ठीक ढंग से कार्य करने में असमर्थ ही रहता है और शत्रुओं को कैसे परास्त किया जाये निर्णय न ले पाने के कारण उसका जीवन निराशाजनक एवं संकट ग्रस्त हो जाता है और यही उसकी त्वरित मृत्यु का कारण भी बनता है।।.
जीवन के विभिन्न पक frais व बाधाओं से जितना निकलने का प्रयास करते हैं उतना ही उलझते ही चले जाते हैं इसका कारण उनकी निर्बलता, शक्तिहीनता ही है है।
ब्रह्मास्त्र प्रयोग के द्वारा ऐसे व्यक्ति अपनी निर्बलता, कायरता व शक्तिहीनता को कम कर सकते है और ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है शक्तिहीन को शक्तिशाली बनने में कोई बुराई नहीं है, यह तो उन्हें आन्तरिक शक्ति प्रदान करने वाला एक तीक्ष्ण अस्त्र है, जिससे वह अपनी परेशानियों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सके और अपने जीवन में शiner
जिन व्यक्तियों के पास ताकत नहीं है, बल नहीं है कोई शक्तिशाली गुट भी नहीं है जिसके द्वारा वे उन शत्रुओं से अपना बचाव कर सके, उनके लिये यह प्रयोग ब्रह्मास्त्र को प्राप्त करना ही है, जो उनके जीवन के समस्त शत्रुओं का विनाश करने और उन्हे Plus d'informations
मानव के सबसे बड़े शत्रु तो उसकी देह के साथ ही अवगुणों के ूप में में उससे चिपके हते है है, मानव के सबसे बड़े शत्रु तो यहीं होते है काम, क्रोध शत्रु तो उसे ह__° प .cre जीवन .cre. प्रदान करते है, जो उस पर हर क्षण प्रहार करते ही रहते हैं, जिससे मानव जीवन दुःखदायक हो जाता है ये शत्रु कभी ोग दुःखदcre इन उलझनों एवं बाधाओं को दूर करके ही एक श्रेष्ठ सुखमय जीवन प्राप्त किया जा सकता है।
इन बाधाओं, कष्टों, परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है यदि इस विशिष्ट 'ब्रह्मास्त्र पीताम्बरा बगलामुखी साधना' को एक बार अपने जीवन में सम्पन्न कर लिया जाये, क्योंकि 'ब्रह्मास्त्र प्रयोग' एक गोपनीय प्रयोग है, जिसे पौराणिक काल में संकट के समय प्रयोग किया जाता था, जिसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता था, जिसका प्रभाव अचूक होता था और आज भी अचूक हैं इसकœuvre
आज के इस युग में जब सभी भौतिकता के पीछे पiner Plus d'informations शत्रुओं को पराजित कर ईंट का जवाब पत्थर से दे सके सके, इतना शक्तिवान, सामर्थ्यवान, बलशाली वह प्रयोग के्व्वान ही बनाली वह प्रयोग के्वारा ही बन सकता है।.
T हो सकते, फिर बाधाये व उलझने उनको नहीं घेर सकती, फिर वह जीवन में कभी पराजित नहीं हो सकता, क्योंकि इस साधना का मूल आधार ब्रह्म की दिव्य शक्ति है।।.
बगलामुखी जयन्ती 20 मई या किसी भी गुरूवार को रात्रिकाल में स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर संक्षिप्त गुरू पुजन करें, फिर एक बाजोट पर गहरे रंग का वस्त्र बिछाकर, उस पर चन्दन से त्रिशूल बनाकर बगलामुखी शक्ति युक्त 'पीताम्बरा यंत्र' को स्थापित कर दें, उस यंत्र का कुंकंम, अक्षत से संक्षिप्त पूजनर, धूप और दीप जला कर यंत्र के ठीक सामने रखें, दीपक में तिलर यंत्__° के च.
इसके पश्चात् सर्वप्रथम गुरू मंत्र की 1 माला मंत्र जप करें, फिर 'महिषासुर मर्दिनी माला' से्न मंत्र की 7 मर्दिनी.
मंत्र जप की समाप्ति के पश्चात् पुनः गुरू मंत्र की 1 माला जप कर साधना में सफलता के लिये गुरूदेव से्रारoration करे और गुœuvre छठे दिन समस्त सामग्री को उस बाजोट पर बिछे कपड़े में लपेट कर किसी मन्दिर मेंर्पित करे।
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