।। अतीत्येकादशाहं तु नामकर्म तथा करोत्।।
वही कुछ अन्य विद्वान व कर्मकाण्ड पण्डितों का मानना है कि नामकरण संस्कार को ग्याहरवें दिन ही नहीं अपितु ग्रहों की स्थिति व राशि गोचर के अनुसार किसी भी शुभ दिवस पर सम्पन्न किया जा सकता है। वहीं कई अन्य विद्वानों का मानना है कि शिशु के जन्म के दसवें दिन से लेकर दूसरे वर्ष के पहले दिन तक यह संस्कार उचित मुहूर्त पर सम्पन्न किया जा सकता है।
नाम कैसा और क्या होना चाहिये, इस विषय पर भी प्राचीन ग्रन्थों में बहुत विचार हुआ है। सामान्यतया नाम ऐसा होना चाहिये जिससे मंगल, बल, धन आदि सूचित होता हो। बुरे या घृणित अर्थ वाला नाम नहीं रखना चाहिये। ऐसा नाम भी न हो जिसका कुछ अर्थ ही न हो। लड़कियों के नाम ऐसे हो जो शोभा और कल्याण का बोध कराते हो और लड़को के नाम ऐश्वर्य, महिमा तथा विवेक का ज्ञान कराये ऐसे हो।
वर्तमान समय में इस संस्कार का रूप तनिक बदल गया है। नाम रखने में अधिक विचार किये बिना केवल नयेपन का आभास देने वाले नाम रख दिये जाते हैं, भले ही वे अर्थहीन हो या उनका अर्थ बुरा हो। नाम रखते समय एक मनोवैज्ञानिक तथ्य का जरूर ध्यान रखना चाहिये कि नाम पुकारते समय गौरव, सम्मान का अनुभव होता हो। जिस नाम को सुनने मात्र से हीनता या घृणा का भाव जागे ऐसा नाम कदापि नहीं रखना चाहिये। जन्म का समय लिखकर, नक्षत्र व ग्रहों की स्थिति पर विचार करने के बाद राशि के अनुसार नाम रखना चाहिये, ऐसा करना बच्चे के व्यक्तित्व विकास में विशेष योगदान देता है उसे यशस्वी बनाता है। इसलिये हमारे ऋषि-मुनियो ने नामकरण संस्कार को विधि विधान से नक्षत्र व ग्रह स्थिति को ध्यान में रखकर सम्पन्न करने पर विशेष बल दिया है। यही कारण है कि भगवान राम का नाम स्वयं भगवान राम से भी प्रभावशाली है, भगवान राम का नाम ही स्वयं में एक मंत्र है जिसे जप कर उनके भक्तों के पहाड़ जैसे दुःख भी समाप्त हो जाते है।
राम नाम में इतनी शक्ति थी कि जिस पत्थर पर लिखा वह विशाल समुद्र में भी नही डूबा और राम नाम से एक विशाल व मजबुत पुल बन गया। राम का नाम लेकर भगवान हनुमान ने सोने की लंका तक जला डाली थी। कहा भी जाता है कि राम से बड़ा है उनका नाम और इसलिये हमारे विकास में नाम का बहुत महत्त्व है। ज्योतिष विज्ञान भी व्यक्ति के नाम के आधार पर ही उसके भविष्य की रूप रेखा तैयार करती है। इसलिये नामकरण प्रकाण्ड पण्डित द्वारा ग्रहों की स्थिति व जन्म समय की सहायता से नाम राशि का गोचर कर रखना सर्वोत्तम व कल्याणकारी सिद्ध होता है।
नामकरण संस्कार संपन्न करने की विधि-शास्त्रें के अनुसार शुभ तिथि एवं पवित्र मुहूर्त निश्चय करके, माता-पिता द्वारा कुल देवी-देवता व गुरू पूजन संपन्न कर हवन किया जाता है। इसके पश्चात् माता अपने शिशु को गोद में लेकर बैठती है पिता अपने सामने प्रज्जवलित अग्नि में देवताओं, कुल देवी-देवताओं, नवग्रहों को हवि देते हुये बच्चे को गोद में लेते है और बच्चे के कान में धीरे-धीरे तीन बार उसके नाम का उच्चारण करते हैं इस समय पूजन कराने आये पुरोहित या ब्राह्माण संकल्प लेते है-
अद्येत्यादि—–अमुक ममास्य जातस्य पुत्रस्य
बीजगर्भसमुद्धेवनो निवर्हणाय नामास्यं संस्कार करिष्ये।।
इसके बाद सभी को बच्चे का नाम बताया जाता है। सारे अश्यागत जन बच्चे को आशीर्वाद देते है। इसके पश्चात् सूर्य पूजन होता है और शिशु को सूर्य दर्शन कराये जाते है जिससे कि सूर्य का दिव्य प्रकाश व ऊर्जा शिशु को प्राप्त हो। पिता या पुरोहित जी निम्न मंत्र का बच्चे के कान में उच्चारण करते हैं-
हे कुमार त्वं —-कुलदेवताया भक्तोसि ।।
हे कुमार त्वं आसनाम्ना—असि।
हे कुमार त्वं नक्ष़त्र नाम्ना —–असि।
है कुमार त्वं व्यवहार नाम्ना —असि।
अन्त में पण्डित जी शिशु को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देते है-
अंगादगांत् संभवसि हृदयादधि जायंसे आत्मा वै
पुत्रनामासि सः जीव शरद शतम्।।
भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में नामकरण संस्कार की पूजन विधि रसम-रिवाज व नाम रखने का तरीका अलग हो सकता है। देश के कई प्रांतों में नाम शिशु की भुआ द्वारा रखा जाता है व कहीं पूजन में शिशु के दादा द्वारा भी कान में नाम उच्चारित किया जाता है। ध्यान में रखने वाली बात यही है कि नामकरण व पूजन-हवन शुभ मुहूर्त में ग्रह-नक्षत्र ध्यान में रखकर संपन्न की जाये ताकि शिशु का सम्पूर्ण विकास हो व उसका आचरण-व्यक्तित्व उत्तम हो।
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