उस श्लोक में बताया गया है कि मनुष्य अपने आपमें एक अधूरा और अपरिपक्व व्यक Joh धन है तो प्रतिषtenir उसके शरीर में भी कोई विशेषता नहीं है उसमें केवल मांस निकलेगा, हड्डियां निकलेंगी, रूधिर निकलेगा। इसके अलावा इस शरीर में कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे की हम शरीर पर गर्व कर सके। हम किस बात पर गर्व करें? इस शरीर में क्या है जिस पर गर्व करें। हमारे लिये कोई ऐसी युक्ति भी नहीं है कि हम इस शरीर में कुछ ऐसा प्रभाव कुछ ऐसी आभा पैदा कर सके जिसके माध्यम्यम से हमारा शरीर हमर सके चेहœuvreœuvre हम जो भोजन करते हैं, जो शुद्ध अन्न है, वह भी आगे जाकर मल बन जाता है और ऐसा मल जिसका कोई उपयोग नहीं होता।
हलवा खाये तो भी उसका अंत मल ही है, घी खांये तो भी उसका अंत मल ही है और चाहे रोटी खांये तो भी उसका अंत मल ही है।। शरीर में ऐसी क्रिया ही नहीं है जो शरीर को दिव्यता और चेतना युक्त बना सके क्योंकि शरीर अपने आपमें्यर्थ है. एक चलती फिरती देह है और उस देह में उच्च कोटि का ज्ञान, उच्च कोटि की चेतना, उच्च कोटि का चिंतन समाहित नहीं हो सकता क्योंकि इस श__ère चिंतन सम.
इस शरीर के भीतर झांक कर भी देखा, इस शरीर को चीर फाड़कर भी देखा, इन आंखों को देखा, हाथ को देखा, टांग को देखा और ऑपरेशन करके भी देखœuvre तो उसके बाद भी शरीर में किसी पtenir क्यों नहीं बन सकती?
फिर मनुष्य शरीर हमने धारण क्यों किया? इसलिये ब्रह्मा पहले श्लोक की आधी पंक्ति में कहते हैं मनुषtenir न गुरू के चरणों में चढ़ा सकते हैं, न देवताओं के चरणों में चढ़ा सकते हैं। अपवित्र चीज नहीं चढ़ा सकते। एक हिसाब से सड़ा हुआ पुष्प है, या फूल है उसे भगवान के चरणों में नहीं चढ़ा सकते। यदि हम अपने शरीर को भगवान के चरणों में चढ़ाये कि भगवान मैं आपके चरणों में समर्पित हूँ तोरीर तो खुद अपवित्र है मल मल और मूत्र केर तो .cre कुछ्र है मल मल और मूत्र के अलावा कुछ है ही नहीं। औ. ऐसे गंदे शरीर को भगवान के शरीर में कैसे चढ़ा सकते हैं और ऐसे शरीर को अपने गुरू के चरणों में भी कैसे चढ़ा सकते हैं?
उस श्लोक की दूसरी पंक्ति में कहा है कि जीवन का सारभूत और देवताओं का सारभूत तथ्य अगर किसी में है तो वह .ve क्योंकि गुरू प्राणमय कोष में होता है, आत्ममय कोष में होता है और सप्त कोटि में होता है।।।. उसको गुरू कहते हैं। T कर सकता है।
न उसे भूख लगती है न प्यास लगती है न उसे मूत्र तœuvre । इसलिये उच्च कोटि के सiner कtenir तो इस जगह से उस जगह छलांग लगाने की कौन सी क्रिया ई कैसे हम उच्च कोटि का जीवन प्राप्त कर सकते हैं? अगर हम इस जीवन में साधारण मनुष्य ही बने रहें तो फिर हमारे जीवन में वह्थिति कब आयेगी जब जमीन से पांच फुट .ve जमीन से ऊपर उठकर साधना करने की क्या आवश्यकता है?
आवश्यकता इसलिये है कि जमीन का कोई ऐसा भाग नहीं है जहाँ पर रूधिर नहीं बहा हो। सैकडों लोग कटे होंगे, मरे होंगे, सैकड़ों शव बिखरे होंगे, सैकड़ों सभ्यताये नष्ट हो गई होंगी। हडप्पा बना, मोहनजोदड़ों बना नष्ट हुए, सैकड़ों बार प्रलय आया और एक-एक धरती इंच, धरती का एक-एक कण ूधिरूधिर से सना हुआ है।। अपवित्र जमीन है, अपवित्र भूमि है और उस भूमि पर बैठकर साधना कैसे हो सकती है? और वहां बैठकर साधनाओं में सिद्धि कैसे प्राप्त हो सकती है है?
दो कमियां हमारे जीवन में आई। एक कमी तो यह कि पृथ्वी खून से ंगी रंगी हुई है— अगर दिल्ली को ही देखें तो सैकड़ों उस पर अत्याचार हुये।।। सैकड़ों उस. पृथ्वी की कोई जगह नहीं जहां पर खून नहीं बहा हो या जो पूर्णतः पवित्र हो। कहीं पर मल विसर्जन हुआ होगा, कहीं पर मूत्र विसर्जन हुआ होगा। पवित्र कहीं पर भी धरती है ही नहीं। और बिना पवित्रता के इतनी उच्च कोटि की साधनाये सम्पन्न हो ही नहीं सकती और अगर साधनायें सम्पन्न्न. Plus d'informations ऐसा जीवन क्या काम का है? इस जीवन के माध्यम से हम सिद्धाश्रम कैसे पहुंथ सकककैसे पहुंथ उसके माध्यम से हजारों वर्षों की आयु प्राप्त योगियों के दर्शन कैसे कर सकते हैं? और अगर ऐसा नहीं कर पायेंगे तो इस जीवन का अर्थ क्यक्य? फिर जीवन का मतलब क्या? क्या इसी प्रकार घसिट करके जीवन को समाप्त कर करके जीवन को समाप्त कर दे ननदीवन देतनदेतनदेतन ऐसे ही जीवन बर्बाद हो जाना है?
ऐसे तो कई पीढि़यों के जीवन बर्बाद हो चुके हैं और आज उनके जीवन का नामो निशान भी नहीं है। आपको अपने दादा परदादा तक का तो नाम शायद याद हो मगर उससे पहले तो आपको नाम ही मालूम नहीं कि कौन nég मेरे परदादा के पित. Plus d'informations
अगर आप भी ऐसा ही जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो फिर आपको जीवन में गुरू की जरूरत है ही नहीं, फिर जीवन का मतलब नहीं नहीं है. शरीर पर साबुन लगाने से जीवन स्वच्छ नहीं बन सकता, यदि आप चार दिन Dieu कोई पास खड़ा होगा तो कहेगा क्या बात है तुम्हारे शरीर से इतनी बदबू आ रही है, स्नान नहीं किया क्या? यह शरीर कितना अपवित्र है कि चार दिन भी बाहर के वातावरण को झेल नहीं सकता और हम कल्पना करते हैं कि भगवान कृष्ण के शरीर से अष्टगंध प्रवाहित होती्ण के शरीर से अष्टगंध प्रवœuvre Plus d'informations राम के शरीर से सुगंध प्रवाहित होती थी थी उच्च कोटि के योगीयों के शरीर से अष्टगंध प्रवाहित होती है तो हममे्या कमी है कि हम्रवाहित होतीtine तो हममे्या कमी है कि हम. पास में से निकले और दूसरे अहसास करे कि यह पास में से कौन निकला यह कह कहां से आई। ऐसी सुगंध जो कस्तूरी की नहीं है, केसर की नहीं है और किसी चीज की नहीं है है, हिना की नहीं है इत्र की नहीं है है गुलाब की है है।। इत. यह गंध क्या है, यह चीज क्या है, इस व्यक्तित्व में क्यों हैं? अगर ऐसा जीवन नहीं बना तो जीवन का मूल्य, मतलब, अर्थ और चिंतन क्या है?
ब्रह्मा कह रहें कि यह आने वाली पीढि़यां नहीं समझ सकेंगी .ve और एक दिन मर जायेगा। जो यह मनुष्य शरीर भगवान ने दिया है, इस मनुष्य शरीर को प्राप्त करने के लिये देवता भी तरसते हैं। वे येन केन पtenir राम के रूप में जन्म लेते हैं, कृष्ण के रूप में जन्म लेते हैं हैं्ध के ूप में्म लेते हैं हैं, महावीर के ूप में जन्म लेते हैं ईस्मसीह. के रूप इसलिये धारण करते हैं कि इस शरीर से कुछ ऐसा हो जो अपने आपमें अद्वितीय है।
हमें मनुष्य शरीर मिला है और हम उसका उपयोग नहीं कर सकते, हम इस शरीर को जमीन से ऊपर नहीं उठा सकते, शून्य में आसन नहीं लगा सकते इस शरीर को ब्रह्म्म. ऐसी कृष्ण में क्या विशेषता थी? राम में क्या विशेषता थी ? और हममें क्या न्यूनता है?
ब्रह्मा के दूसरे श्लोक का अर्थ यह है और इस शरीर को पवित्र बनाने के लिये यह आवश्यक है कि देह तत्व सेœuvre फिर भी हम जीवन के सारे क्रिया कलाप करेंगे मगर फिर मल मूत्र विसर्जन की जरूरत नहीं हेगी रहेगी। फिर भूख प्यास नहीं लगेगी, फिर भोजन और पानी की जरूरत नहीं रहेगी, फिर शून्य में हम आसन लगा सकेंगे, फिर शरीर से सुगंध प्रवाहित हो सकेगी सकेंगेर शरीर से सुगंध प्रवाहित हो सकेगी सकेगी. फिर अंदर एक चेतना पैदा हो सकेगी अंदर एक क्रियमाण पैदा हो सकेगा, फिर सारे वेद, सारे उपनिषद अपने आप कंठस्थ हो जारे क्योंकि प्रे उपनिषद कोष आप कंठस्थf...
Imp इस जीवन को अद्वितीय कैसे बना सकेंगे ? और फिर अद्वितीय भी नहीं बनाया तो फिर जीवन का अर्थ भी क्या रहा?
फिर तो जैसा जीवन है वैसा जीवन व्यतीत करके चले जायेंगे और फिर तो जैसे दूसरे लोग हैं वैसे वैसे ही हैं हैं, जैसे आपके चाचा हैं वैसे हैं आप हैं ही आपके आपके पित. हैं। फिर आपमें और उनमें अंतर क्या है? और फिर अंतर नहीं है तो मेरा या गुरू का उपयोग क्या ॥ फिर मैं गुरू बना ही क्यों ? फिर मेरे जीवन का अर्थ क्या, चिंतन क्या अगर मैं शिष्यों को चेतना और ज्ञान नहीं दे सकूं सकूं?
ब्रहtenir कृष्णं वंदे जगद्गुरूं। कृष्ण को कृष्ण के रूप में याद नहीं किया, कृष्ण को जगद गुरू के रूप में याद किया गया। उनको गुरू क्यों कहा गया? इसलिये की उन्होंने उन साधनाओं को पtenir उनके शरीर में चेतना प्रवाहित हुई और प्राण तत्व जाग्रत हुआ। यह जीवन का अर्थ है यह जीवन का धर्म है, यह जीवन की बहुत बड़ी तपस्या है। हजार साल के अध्ययन के बाद भी आप इस चीज को प्राप्त नहींर सकते, पुस्तकों से प्रœuvreviciत. अगर गंगा में स्नान करने से कुछ उच्चता बनता है तो मछलियां तो हर समय स्नान करती हैं, वे तो अपने आपमें की उच्च. उच्च बनने की तो दूसरी ही क्रिया है और ब्रह्मा कह रहें हैं कि आने वाली पीढि़यां इस चीज को भूल ज. इसलिये ब्रह्मा ने एक गुरू की भी सtenir उसने कहा- मुझे ब्रह्मा नहीं कहा जाये मुझे गुरू कहा जाये ताकि मैं अट्ठारह पुत्रें को ज्ञान दे सकूं.
उन्होंने अपने अट्ठारह पुत्रें को वह ज्ञान दियiner-जिसके माध्यम से Dieu Plus d'informations जो हिमालय में साधना करते हैं उन्हें भला भोजन और पानी कहा से मिलेगा। Plus d'informations हम गृहस्थ में रहते हुए भी उच्च कोटि के व्यक्तित्व बन सकते हैं हैं। Plus d'informations कोई करोड़पति हैं तो जरूरी नहीं की करोड़ रूपये दिखाए— उसका चेहरा, उसकी बोली, उसकी ठसक, उसके बोलने की क्रिया अपने बत. Plus d'informations वह तो उसकी चाल, उसकी ढाल, उसकी चलने की क्षमता, उसका वक्ष स्थल, उसकी तेजस्विता, उसकेरे हुए बाल, उसकी्ड़ एकदम बता देती है. मरी हुई चाल नहीं है, एक रोती हुई चाल नहीं है, वह दहाड़ता है तो जंगल अपने आपमें दहल उठता है।
आप जब बोलते हैं तो पास वाले व्यक्ति पर प्रभाव भी नहीं पड़त पड़ता, इसलिये आपकी आपकी व. आपका व्यक्तित्व तेजस्वी नहीं है है, इसलिये की आपका शरीर दुर्गंध युक्त है, इसलिये की आपके शरीर में कुछ है ही नहीं।। आपके शरीर में केवल मल मूत्र है और खून, हड्डियां और नाडि़यां हैं। यह जीवन जिसका आप बहुत बखान कर रहे हैं, तारीफ कर रहें हैं यह जीवन तो बहुत्छ और ओछा है। Plus d'informations Plus d'informations गाय मरेगी तो उसकी चमड़े से जूती तो बनेगी, आपकी चमड़ी से तो जूता भी नहीं बन सकता, आपकी हड्डियों से भी कोई चीज नहीं बन सकती।।।। हड हड. Plus d'informations
मगर इसके साथ-साथ इस शरीर में यह विशेषता है कि यह शरीर अपने आपमें दैदीप्यमान बन सकता है, तेजस्विता युक्त बन सकता है।।. वह नहीं बनेगा तो बाकी सारी साधनाये बेकार हैं व्यर्थ हैं तुच्छ है वे हो ही नहीं सकती, संभव ही नहीं है।। वे हो ही नहीं सकती, संभव ही नहीं है। मैं आपको हीरे लाकर दे भी दूं और आपको हीरों का ज्ञान ही नहीं है तो आप कांच के टुकडे समझ.. मैं आपको मंत्र दूंगा, साधनाये भी दूंगा मगर आप उन साधनाओं का मूल्य, अर्थ और महत्ता नहीं समझ पायेंगे, उस्य नहीं बन. जीवन में अद्वितीयता हो यह जीवन का धर्म है, हम हैं और हम ही हैं और हमारे जैसा कोई नहीं है ऐसा हम बनें तब जीवन्तित्व्व है है तब आपक. Traduit
ब्रह्मा कह रहें हैं कि ऐसा हो और ऐसा शिष्य को बना सके तब वह गुरू है। मगर उससे पहले गुरू अपने आपमें पूर्ण प्राणवiner अगर अपने आपमें क्षमता हो तो वह दूसरों को, शिष्यों को ज्ञान दे सकता है। की परीक्षा गुरू आप कर भी कैसे सकते हैं, आपके पास कोई कसौटी नहीं कोई मापदंड नहीं है। उनसे बातचीत से, उनके पास बैठकर उनकी ज्ञान की चेतना से, उनके प्रवचन से और उनकी सामीप्यता से हम एहसास कर सकते है यह यह गुरू है।। एहस. एक एहसास है, एक विश्वास है, अपने आप में एक गर्व है कि हम उनके शिष्य हैं। ° आप कितने वेद याद करेंगे, कितने पुराण याद करेंगे, कितने शास्त्र याद करेंगे।
Plus d'informations इसीलियें ब्रह्मा ने अपने उस श्लोक की चौथी लाइन में कहiner हो। ऐसे जीवन की कोई सार्थकता नहीं है। ऐसे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमने चालीस साल बिता दिये ऐसे जीवन को जीते हुये और हम रोग के अलावा कुछ पैदा ही नहीं कर पाये। Plus d'informations Plus d'informations और हमने जीवन में किया क्या? हमने स fraisé जा नहीं सके तो आप धीरे-धीरे जरा युक्त हो जायेंगे, बूढ़े हो जायेंगे, मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे और गुरू आपके पास से निकल जasser आज आप मुझे मिलने आये, कल आप अपने घर चले जायेंगे हम बिछुड जायेंगे। फिर चार छः महीने बाद मिलेंगे, फिर बातचीत करेंगे और हम फिर बिछुड जायेंगे। फिर वह क्षण कब आयेंगा जब मैं आपको दैदीप्यमान बना सकूंगा और आपमें क्षमता आयेगी मुझे मुझे दैदीप्यमान बनना है, अद्वितीय बनना है, श्रेष्ठतम्ठतम बनना है? फिर वह भावना आपमें आयेगी कब?
मैं आपको चैलेंज के साथ कहता हूँ कि ऐसा हो तब आपका जीवन है नहीं तो जीवन आपक आपका बेकार है, तुच्छ है, व्यर्थ है।।। है है. और दैदीप्यमान तब हो सकता है जब इस टयूब लाइट के अंदर लाइट होगी तो यह रोशनी देगी अन्यथा इसमें अंधेरा ही रहेगा अंधेरे में ोशनी नहीं पैदा हो सकती सकती ही ही हेग.. आपके शरीर के अंदर कोई बटन नहीं हैं कोई मशीनरी नहीं है कि मैं बटन दबाऊं और आप तेजस्विता युक्त हो जाये तोर कौन सी्रिया है? साधनाये आप दो सौ साल कर नहीं सकते। अगर मैं आपको अठारह घंटे एक आसन पर बैठने के लिये कहूं तो आप बैठ नहीं नहीं सकते। संभव नहीं है और उसके बाद भी आपका मन कितना शुद्ध है यह भी आवश्यक है क्योंकि अशुद्ध शरीर में शुद्ध मन होगा भी कैसेf. जब हमारा शरीर दुर्गंध युक्त है तो उसमें सुगंध व्याप्त होगी भी कैसे? आपमें सुगंधकहाँ से आयेगी ? बदबू में सुगंध प्रवाहित हो भी नहीं सकती केवल देह तत्व में जिंदा रहने से प्राण तत्व जाग्रत नहीं हो सकते।। अैसा नहीं हो सकता तो जीवन बेकार है। Plus d'informations फिर ज्ञान कहां से प्राप्त होगा, चेतना कहां से प्राप्त होगी? फिर शुद्ध मन कहां से पैदा होगा? शुद्ध मंत्र आपको कहां से प्राप्त होगा?
गायत्री मंत्र का उदाहरण है, कहा गया है कि चौबीस अक्षरों की गायत्री मंत्र पूर्ण गायत्री मंत्र मारी ज्र पूर्ण गायत्री मंत्र माना जाता है।।. Plus d'informations वह पूर्ण मंत्र एक बहुत ही तेजस्वी मंत्र है और उसको आप तभी प्राप्त कर सकते हैं जब आप स्वयं तेजस्विताप्त कर सकते. Plus d'informations Plus d'informations उसने कहा कि एक ही क्रिया है। Plus d'informations
गुरू प्रसन्न होता आपकी सेवा से, प्रसन्न होता है आपके साहचर्य से, प्रसन्न होता है आपके हृदय की सामीप्यता से।।।. जब आपके प्राण मेरे प्राणों से जुड़ जाये, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि इस व्यक्ति को जिंदा रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि मेरा जीवन चाहे बर्बाद हो जाये मगर इस व्यक्ति को स्वस्थ रखना है, जब आप हर क्षण यह चिंतन करें कि यह व्यक्ति तेजस्विता युक्त है, प्राणास्विता युक्त है मेरा शरीर तो छोटा सा शरीर है, हजार-हजार शरीर भी इनके आगे समर्पित हो सकतें हैं, यह व्यक्तित्व जिंदा रहे जब ऐसी भावना आपके अंदर आये तब आप मेरे शिष्य हैं, तब मैं आपका गुरू हूँ।
अन्यथ l'eau मैं तो टूक आपको कहता हूँ कि आप मेरे चरणों में पाँच पैसे भी नहीं चढ़ायें, कुछ नहीं नहीं चढ़ाये। Plus d'informations मुझे इस बात की आवश्यकता नहीं है। Plus d'informations बार-बार मेरा जोर इसी बात पर है। यह शरीर सिद्धाश्रम चला जायेगा तो आप बिलकुल अंधेरे में भटकते रहेंगे। कोई आपको रोशनी नहीं मिल पाएगी। Plus d'informations कुछ भी करिये फिर आप एक जगह से दूसरी जगह भटकेंगे, तीसरी जगह भटकेंगे क्योंकि कुतर्क आपको बराबर भटकायेगा। मगर यह जीवन कृष्णमय कैसे बन पायेगा, राममय कैसे बन पायेगा, सुंगधमय कैसे बन पायेगा, प्राणमय कैसे बन पायेगा और जो भगवान कृष्ण ने ग l'amour ऐसा आपके शरीर में विराट कैसे स्थापित हो पायेगा?
वह नहीं स्थापित हो पायेगा तो मल मूत्र भरी देह आप मेरी चरणों में चढ़ायेंगे भी क्या? जब आप शरीर में गुलाब का इत्र लगाते हैं तो मैं समझता हूँ कि आप क्या भेंट चढ़ा रहें हैं। मल मूत्र से भरा हुआ शरीर चढ़ा रहे हैं। गुरू के चरणों में क्या चढ़ाया जा सकता है? क्या है कुछ ऐसा जो चढ़ाया जा सकता है? चढ़ाया जा सकता है सुगंधित कमल कमल चढ़ाया जा सकता है सुगंधित जीवन जीवन चढ़ाया जा सकता है प्राणस्विता युक्त जीवन और ऐसा जीवन जो जमीन से ऊपर उठकर ससस्पन्न्हित्tié .ve Plus d'informations फिर दूसरी किसी चीज की आवश्यकता है ही नहीं, फिर किसी मंत्र की भी आवश्यकता नहीं है।।
ब्रह्मा ने कहा है कि आगे की पीढि़यों में व्यक्ति इस बात को समझ नहीं पायेगा और मैं कह रहा हूँ ब्रह्मा ने यहर कह तो तोcre ऐसा घिसा पिटा जीवन जीना ही नहीं हैं। आज मृत्यु आ जाये तो आप मरने को तैयार हैं या फिर उच्च कोटि का जीवन जीने के लिये तैयार है। दोनों में से एक ही होना चाहिये, घिसा पिटा जीवन नहीं चाहिये।
हजारों की भीड़ में आप भी खड़े हैं तो मेरा गुरू बनना ही बेकार है, हजारों की भीड़ में आप अकेले दहasser लोग आपको देंखे तो मुड़-मुड़ कर देखें। तो फिर गर्व से मेरा सीना फैलेगा कि यह मेरा शिष्य है अपने आपमें शेर की तरह व्याघ्र की तरह है, और मेरे लिए मर मिटने के लिएरह. Plus d'informations मुझे भी कtenir मुझे दोनों प्रकार का जीवन जीना पड़ता है और दो जीवन एक साथ जीना बड़ा कठिन है। मगर यह एक दूसरा ही प्रसंग है। जब संन्यास जीवन था तब कोई चिंता थी ही नहीं, बस देखा जायेगा, शिष्य है और हम हैं, बाकी कोई परवाह ही नहीं थी।। हैं हैं. अब गृहस्थ जीवन में है तो गृहस्थ जीवन भी जीना है और सिद्धाश्रम युक्त जीवन भी जीन. दोनों जीवन में सामंजस्यता लाने में अंदर कितना विलोड़न होगा। आप शायद इसकी कल्पना नहीं कर सकते।
ब्रह्मा ने कहा कि ये शिष्य नहीं समझ पायेंगे, ये लोग नहीं समझ प पाएंगे। उनको यह जtenir यहां बीच में आकर ज्ञान देना चाहिये यह उनका धर्म है यह उनका कर्तव्य है। Plus d'informations वह नहीं समझ पाये यह उनका दुर्भाग्य है, वे समझ पाये यह उनका सौभाग्य है।
ब्रह्मा ने कहा हम उन मंत्रें के माध्यम से, चेतना के माध्यम से, तेजस्विता के माध्यम से, अपने शरीर को एकदम से सुगंध युक्त, दैदीप्यमान, सूर्य के समान प्रखर और तेजस्वी, हजारों-हजारों सूर्य के समान तेजस्विता वाला बना सकते हैं। Plus d'informations सारे शरीर से एक सुगंध प्रवाहित हो। हम चलें और एक मील दूर तक सुगंध प्रवाहित हो, एहसास हो सके परिवार को, समाज को और हमको खुद को और उसके लिये क्रियœuvre जब मल मूत्र युक्त नहीं होगा जीवन। Plus d'informations गंदगी में वह नहीं बैठ सकेगा।
Plus d'informations ऐसा होने पर ही जीवन में सिद्धि और सफलता प्राप्त हो सकती है है। ऐसा होने पर ही भूमि से ऊपर उठकर साधनाएं सम्पन्न हो सकती हैं हैं। Plus d'informations ऐसा होने पर ही सारे देवी देवता हाथ जोड़कर खड़े हैं तो यह कोई गलती नहीं है क्योंकि 'अहं Dieuf. मैं स्वयं देवता हूं। मैं देवताओं को प्रणाम करता हूँ इसका मतलब यह नहीं कि मैं एक घटिया व्यक्तित्व हूँ, मैं ओछा व्यक्तित्व नहीं हूँ, उन देवताओं के समक्ष खड़ा रहने वाला व्यक्तित्व हूँ और मैं हूँ यह बहुत बड़ी बात नहीं है आपको भी वैसा उच्चकोटि का व्यक्तित्व बना दूं यह Plus d'informations Plus d'informations शरीर का कोई भाग नहीं है जहां रूधीर नहीं है, आँख के छोर में भी अठ्टारह नाडियां हैं और उन अट्ठारह नाडियों से पुतली बनती हैर उन अट्ठारह नाडियों से पुतली बनती हैर उसमें खून बहतारह न. मैंन गुरू हृदस्थ धारण पtenir एक ही बार में एक ही झटके में सब कुछ प्राप्त हो जiner
जो मंत्र इस गुरू रक्त स्थापन क्रिया में गुरू बोलता है या उच्चारण करता है वह फुल स्केच के चौदह पंद्रह पृष्ठों में एक मंत्र आता है और वह कही पुस्तकों में वर्णित नहीं है क्योंकि वह मंत्र ही नहीं है, पूर्ण स्वामी सच्चिदानंद और समस्त योगी, यदि संन्यासियों के साथ हृदय में गुरू तत्व स्थापन की एक उच्च क्रियœuvre फिर पाँच इंच पांव उठेंगे और धीरे-धीरे आप शून्य में आसन लगाने की क्रिया सम्पन्न कर सकेंगे। क क्रिया सम्पन्न कर सकेंगे। तब आप समझ पायेंगे की यह मंत्र और यह क्रिया कितनी तेजस्वी है।
इसके लिये तीस दिन बहुत होते हैं। इक्कीस बाईस दिन बाद ही लगता है जैसे आप ऊपर उठ रहे हैं और तीसवें दिन लगता है कि आप उठ गये हैं और फिर आप किसी किसी परिवार के सदस l'amour Plus d'informations Plus d'informations परंतु यह एक प्रमाणिक क्रिया है जिसे आप गुरू के माध्यम से सम्पन्न कर सकते हैं, जिसे आप गुरू से प्राप्त कर अपने जीवन को और की उच्चता श्रेष्ठता ओर अग्रसर कर सकते हैं और गुरू वह है जो आपको हर प्रकार का ज्ञान दे सके, हर क्षेत्र का चिंतन दे सके, हर प्रकार की साधना दे सके चाहे वह लक्ष्मी की साधनiner गुरू तो हर चीज देने में सक्षम है, आवश्यकता इस बात की है कि आप प्राप्त करने के योग्य बन सकें। प. यह गुरू का धर्म है कि वह दे, कुछ भी छिपाये नहीं, परन्तु यह भी आवश्यक है कि शिष्य उसे प्राप्त कर सकें्यक आत्मसात कर सके।।।.
करीब पंद्रह साल पहले मैं हरिद्वार गया था, एक महीने भर हरिद Joh Plus d'informations कल्प वास का अर्थ है कि महीने भर तक गंगाजी के तट पर रहना, गंगाजी के पानी से आटा गूंथना, खुद के हाथ से रोटी बनाना और खाना या पत्नी के हाथ से रोटी बनाना और खाना और वहीं कुटिया बनाकर के रहना तो हमने कहा चलिये कल्पवास कर लेते हैं। वहां पर एक सन्यासी था। Plus, plus et plus
मगर वह लड़का बहुत समझदार था, हट्टा-कट्टा और मजबूत था और वह रोज सेवा करता। परिचय हो गया पांच सiner हम महीने भर वहां रहे और महीने भर के बाद मैंने ही कहा कि तुम शायद मुझे पहचानते नहीं हो। उसने कहा-गुरूजी मैंने आपको पहचानने के बाद ही सेवा शुरू की है, पहले से मुझे मालूम था आप कौन हैं, इसलिये मैं पागल नहीं हूँ .cre मैं घुटा हुआ हूँ। वह बिहार का था, कहीं का। मैंने कहा-तुम बिहारी हो। उसने कहा-हंड्रेड परसेंट बिहारी हूँ। Plus d'informations मैंने कहा- चलो कोई बात नहीं, होशियार हो तुम। Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations
उसने कहा- मैंने तीस दिन सेवा की आप एक ही विद्या सतएक ही विद्या सत मैंने कहा- एक ही सिखाऊंगा। उसने कहा- मैं महीने भर बाद आपके घर आकर सीख लूं तो। मैंने कहा- महीने भर बाद आ जाना। Plus d'informations Plus d'informations एक दिन वो जोधपुर पहुँच गया। Plus d'informations ?????? उसने कहा- गुरू जी महीने भर तक मैंने आपकी सेवा की ह आपने कल्पवास किया था।
मैंने कहा- हाँ, हाँ ठीक बिलकुल सही बात है, बोलो क्या चाहते हो तुम? उसने कहा- गुरूजी कुछ नहीं चाहता हूँ, बहुत मर्द हूँ, ताकतवान हूँ, मगर मैं शमशान जागरण करना चाहता हूँ कि भूत कैसे नाचतेरण करना चाहता हूँ कि भूत कैसे न. Plus d'informations जिंदगी भर। किसी को भूत लगा दिया तो मरेगा। Plus d'informations
मैंने कहा- तू मुझसे भी बहुत ऊँचा है, मगर यह विद्या तो मुझे ही नहीं आती।। उसने कहा- नहीं गुरू जी आपको आती है। आती है और मुझे सिखानी पड़ेगी। बस भूत लगाऊंगा और पैसे कमाऊंगा और वापस भूत उतार दूंगा, ठीक कर दूंगा। Plus d'informations अब मैं वचनबद्ध अलग। हाँ भरू तो खोटा, न कहु तो खोटा। मैंने कहा कल बताऊंगा। उसने कहा- गुरू जी कल आप मना कर देंगे। आप बस बता दीजिये कि कल सिखाऊंगा या महीने भर बाद सिखाऊंगा। आप बता दीजिये मैं यहां बैठा हूँ।
बैठा रहा, रात भर बैठा रहा, दूसरे दिन सुबह भी बैठा रहा, शाम को भी बैठा रहा। अगले दिन पत्नी ने कहा- यह ब्राह्मण है, संन्यासी है भूखा मर रहा है, कितना पाप लगेगा हमको, सेवा की है, आपने अपने मुंह से बोला हैcre मैंने कहा- सिखाना तो ठीक है, मगर इसने दूसरा पाइंट एक अलग बताया है कि भूत भूत लगा दूंगा, फिर वह नाचेगा, कूदेगा और पैसे लेकर मैं उतर वह दूंगाचेगा, कूदेगा और पैसे लेकर मैं उतर दूंगा।, कूदेगा और पैसे लेकर मैं उतर दूंगा।।. Plus d'informations यह गड़बड़। Plus d'informations पर वह कहता है कि फिर तो सीखना ही बेकार है।
फिर वह पीछे पड़ा रहा तो मैंने उससे कहा- मैं तुझे यह भूत लगाना भगाना नहीं सिखाऊंगा। बस तुझे जो भूतों का नृत्य देखना है, शमशान जागरण देखना है वह दिखा दूंगा। वह बोला- गुरूजी बस महीने में दो तीन केस मुझे करने दीजिये उससे मेरा काम चल जायेगा, दो तीन केस में मैं पार हो जाऊंगा। मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं मैं सिखाता मगर तू आया है तो तुझे शमशान जागरण दिखा अवश्य दूंगा। Plus d'informations पहले मैंने सोचा भी कि इसे शमशान ले जाऊंगा नहीं ले जाऊं मगर उसका शरीर बहुत मजबूत था, बहुत ताकतवान था। एम्बेस्डर गाड़ी थी मेरे पास तो गाड़ी में ले गया उसे शमशान। वहां जो डोम था वह परिचित था कि गुरूजी कभी-कभी शमशान साधना करने आते है। Plus d'informations, plus d'informations गाड़ी मैंने पार्क की शमशान के बाहर और उसे कहा चलो अंदर चलो।
चले अंदर। वहां मैने एक घेरा बनाया, बीच में उसे बिठा दिया और कहा देख यहां शमशान जागरण में बहुत.. पर डरने की बात नहीं है। भूत होंगे, प्रेत होंगे होंगे कोई अट्टहास करेंगे, किसी के सींग होंगे .ve कुछ भी झपट्टा मारे तुम घबराना नहीं मैंने कहा- बस तू अपना ध्यान रखना। उसने कहा- गुरू जी आप चिंता मत करिये आप चिंता बहुत करते हैं, थोड़ा टेंशन फ्री रहिये गुरू जी।
मैंने सोचा चलो ठीक है। उसके चारों तरफ घेरा बना दिया घेरे में मैं भी बैठ गया और उसे भी बैठा दिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके। उसके बाद मैंने शमशान जागरण आरंभ किया, उसके बाद मैंने शमशान जागरण किया ही नहीं, बस वही था लास्ट। T Tous les autres मेरा तो रोज का अभ्यास था, संन्यास जीवन में मैं था ही तो मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं थी। Plus d'informations मैंने उधर ध्यान ही नहीं दिया कि मजबूत आदमी है, हट्टा कट्टा है, मुझे कोई चिंता की बात ही नहीं है है। लेकिन तीन मिनट हुए नहीं कि खट्ट-खट्ट, खट्ट-खट्ट आवाज होने लगी।। मैंने सोचा यह आवाज कहां से आ रही है? उधर देखा तो थर-थर कांप रहा है, दांत बज रहे हैं और हा हा हा हा कर रहा है। मैंने सोचा-मर जायेगा यह, एक संन्यासी की हत्या हो जायेगी और बहुत गड़बड़ हो जायेगी।
Plus d'informations मैंने कहा क्या हुआ अब तो उठ जा। वह चिल्लाया- अरे भूत, अरे भूत, अरे भूत - कहा- अरे भाई यहां भूत कुछ नहीं है, हो गया सब।।।. वह बस कांपता रहा और बोलता रहा हर्र, हर्र, हर्र, हर्र— मैंने उसे उठाया, कंधे पर डाला और पीछे कार में डाला। डाल कर घर पर लाया, रास्ते भर चिल्लाता रहा- भूत आया, आया, आया हुर्र हुर्र—।।।. मैंने सोचा यह तो हट्टा-कट्टा था, यह क्या गड़बडऋ गट्टा गह क्या गड़बड। माता जी ने कहा यह क्या लाये। मैंने सिखाया। दो मिनट ही हुये थे, शमशान जागरण आरंभ ही हुआ था उसके पहले इसके दांत ही गये गये होंगे, कांपते हुये।
अब उसको हिलाऊं, डुलाऊं, पानी उसके ऊपर डाला, जूता सुंघाया मिर्ची की धूनी दी। वह उठा और बोला- भूत, भूत, हुर्र, हुर्र— मैंने कहा- यह मर जायेगा, मुश्किल हो जायेगी। मैंने कहा- भूत वूत कुछ नहीं है, यह शमशान नहीं है मेरा घर है, अब चिंता मत कर तेरे लिये दूध लाया हूँ, केसर डाल कर लरेय. Plus d'informations करीब आधे घंटे, पौने घंटे के बाद उसने आँख खोली- मैं कहां हूँ? कहां हूँ? मैंने कहा तू मेरे घर में हैं। तू मेरे पास बैठा है। वह बोला- भूत आया, भूत आया।
मैंने कहा- भूत वूत कुछ नहीं आया, तू देख ले, यह मेरी पत्नी बैठी है तू देख लें।। पंद्रह बीस मिनट आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा, बड़ी देर के बाद वह संभला, उसे दूध पिलाया, कंबल ओढ़ाया। वह बोला- यह क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं हुआ। यह तो शुरूआत हुई थी, अब जब शुरूआत में यह खेल है तो अंत कहां होगा। Plus d'informations जैसा कि मैंने कहा कि गुरू तो हर चीज देने को तैयार बैठा है, आवश्यकता इस बात की है कि आप लेने के लिए तैयार है यœuvre अगर गुरू दे और आप ले नहीं पाये, आत्मसात नहीं कर पाये, तो सब बेकार है, नगण्य है। Plus d'informations गुरू तो साधनाओं का भंडार है, साधनाओं का सागर है, आप कितना ले पाये यह आपर निर्भर है।। प. और गुरू रक्त स्थापन क्रिया एक ऐसी क्रिया है, एक ऐसा चिंतन है, एक ऐसी साधना है जिसके द्वारा शिष्य अपने भीतर का सब मल, मैल, ओछापन, न्यूनता समाप्त करता हुआ पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है और अगर वह इस तेजस्वी क्रिया को पूर्णता के साथ आत्मसात कर लेता है तो निश्चय ही वह जमीन से पांच छः फूट ऊपर उठकर शून्य में आसन लग. क्योंकि मैंने बताया कि जमीन पर बैठकर साधना में पूर्णता प्राप्त हो ही नहीं सकती। जमीन से ऊपर उठकर ही सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।। Plus d'informations वह तो हर क्षण आपको सही मार्ग पर गतिशील करने को तत्पर है और मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ कि मैं प्रतिक्षण आपके साथ हूँ हर सेकेण्ड आपके साथ हूँ, जीवन के प्रत्येक क्षण का मैं रखवाला हूँ, मैं आपके जीवन की रक्षा करूंगा, उन्नति करूंगा और आप भी जीवन में उच्चता प्राप्त कर पाये सफलता प्राप्त कर पाये ऐसा ही मैं आपको आशीर्व.
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
M. Kailash Shrimali
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