क्रिया योग को लाहिड़ी महाशय ने भी समझाने कiner इसको समझाने के लिये अपने-आप को समुद्रवत् बनाना ही पड़ता है। मैंने यह समझाया, कि व्यक्ति किस प्रकार से अपने जीवन में धारणा को्थान देर धारणा के बाद किस्रकार गुंजर क्रणा के बाद किस्रकार गुंजरण क्रिया करते वह ध ध्य× में प्prisesवेश. आप एक दिन गुंजरण करेंगे, तभी आपको एहसास होगा, कि इससे मानसिक तृप्ति भी अनुभव होती है। एक ऐसा एहसास होता है, कि कुछ है जो हमारे जीवन में स्पष्ट नहीं है और यदि इसी गुंजरण को आप बीस दिन करते हैं तोर एहस इसीœuvre
इसलिये कि उसे सुख मिले और उस सुख और आनन्द की पtenir
संतान पैदा करना अपने आप में सुख का अनुभव हो सकता है, परन्तु उसको बड़ा करना बड़ा ही श्रमसाध्य है।।।. वह कोई आसान काम नहीं है, बहुत सी परेशानियां, कष्ट है इसमें— और इसके बाद भी संतान से सुख मिले मिले कोई.
Plus d'informations पंखा चल रहा है, यह मुझे सुख तो दे सकता है, मगर आनन्द नहीं दे सकता। यदि कोई मानसिक तनाव में है, तो बेशक ए-सी- लगा हुआ हो, नौकर चाकर हों- सब कुछ बेकार है। यदि व्यक्ति बीमार है, अशक्त है, हार्ट का मरीज है, तो उसको धन और मकान कहाँ से सुख देंगे देंगे? ये सब उसे आनन्द नहीं दे सकते। आनन्द की जो प्रवृत्ति है, जीवन का जो सच्चिदानन्द स्वरूप है, जिसको् चित् और आनन्द कहते हैं.
आप आसानी से गुंजरण क्रिया के माध्यम से ध्यान में पहुँच सकते हैं।। ध्यान जहां अपने आपको अपना ज्ञान नहीं रहे, हम थॉटलैस माइण्ड बना सकें, अपने आप में ह सके और पूरी तरह से आप आप में ही डूब और पूरी तरह से आप आप में ही डूब जर पूरी तरह से आप आप में ही डूब जर पू. Plus d'informations हमारे शास्त्र, हमारे गुरूओं, राम, कृष्ण और पैगम्बर सभी ने एक ही बात कही है कि आप जितने ही अपने ने से ब बœuvre
मैं आनन्द शब्द प्रयोग कर रहा हूँ सुख शब्द का प्रयोग नहीं कर रहा हूँ सुख तो आप पैसा खरxtefférence सुख के व्यूह में फंस कर तो आपको उन तृष्णाओं की ओर से भागना ही पड़ेगा। ऐसे जीवन का तो कोई अन्त है ही नहीं, क्योंकि जो सुख दिखाई दे रहा है वह सुख नहीं है। यदि यही सब सुख होता तो जीवन में इतनी विसंगतियां, इतनी बाधायें, परेशानियां नहीं आती।
जीवन में आनन्द की प्राप्ति का पहला पड़ाव ध्यान है सत्, चित् और आनन्द। आनन्द तो बाद में है पहले हम अपने जीवन को सत्यमय बना सकें, उसके बाद ही अपने् तक पहुँच सकते हैं, उस चित को्रित कर सकते हैं.. यदि हम देखें, तो अपने जीवन-आनन्द की प्राप्ति के लिये नहीं भटक हे रहे हैं, इसके आप प्रयत्न नहीं कर रहे हैं।। आप प्रयत्न नहीं. आप प्रयत्न कर रहे हैं- सुख की प्राप्ति के लिये लिये, - और सुख अपने आप में संतोष संतोष आनन्द, धैर्य, मधुरता, प्रेम नहीं दे सकता, क्योंकि हमनेœuvre
ध्यान के बाद तीसरी स्टेज होती है, 'समाधि'। समाधि के बारे में याज्ञवल्क्य ने एक सुन्दर श्लोक में समझाया है-
Plus d'informations ान्त परिमे वहितं सदैवं।
आत्मं परां परमतां परमेव सिन्धु, सिद्धाश्रमोद वरितं प्रथमे समाधि ।।
समाधि वह होती है, जब हम स्वयं को सुखों से बिल्कुल अलग करके, परम आनन्द में लीन हो सकें, क्योंकि सुख अपने आप में भोगवादी प्रवृत्ति की परिच. सुख से भोग पैदा होता है, भोग से रोग पैदा होता है और रोग से मृत्यु पैदा होती है— और वह रास्ता अपने में में्यु की ओर जाने काहैा। आप में मृत्यु की ओर जाने का है। Plus d'informations पुष्प को तोड़ कर कोट की जेब में डालने की जरूरत नहीं है है, इसकी अपेक्षा उस पुष्प से बात करने की कला सीखें। प्रकृति के बीच में यदि बैठ जायें- तो घंटे दो घंटे अपने आपको भुला सकें और उसके साथ ही कोशिश करें उस चित् को पकड़ने की, जोरण कœuvre
जब वह हृदय कमल अपने आप में प्रस्फुटित होने लग जाता है, तब अमृत वर्षा होने लगती है है नाभि में अमृत कुंड है, जिसके माध्यम से पूरा जीवन संचालित होता है। चित् ज्यों ही अपने आप में जाग्रत अवस्था में पहुँचता है है्ददायक अमृत की विस्तृत होकर पूरे शरीर को औœuvre ।
चित् के निकट पहुँचने पर आप उस समाधि में लीन होंगे, जहां, आपको तीन अवस्थाये प्राप्त होंगी। पहली अवस्था में हम गुंजरण क्रिया करें, शंख और सोऽहं मंत्रोंच्चारण के माध्यम से जितनीर तक तक हो सके करें।।. Plus d'informations उच्चकोटि का योगी बत्तीस मिनट तक सांस को नहीं टूटने देता। पtenir इस क्रिया को करने के लिये किसी पाठशाला में बैठने की जरूरत नहीं है है, मात्र 'सोऽहं' के गुंजरण के सहारे इस सारे शरीर को चरण के सहारे इस सारे शरीर को चरण्ज कियारे इस l'école है शरीर को चर्ज कियारे इसारे शरीर को चर्ज कियारे इसारे शरीर को चœuvre
इस क्रिया के माध्यम से योगी शून्य में आसन लगा लेते हैं, जमीन के ऊपर उठकर साधना कर लेते हैं। जब भर्तृहरि ने सोऽहं साधना करनी चाही तो गुface Plus d'informations जमीन का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जिस पर थूक, लार, रक्त नहीं गिरा हो, कौन सा स्थान पवित्र है, जहां पर बैठकर सोऽहं स्थान पवित्र है?
भर्तृहरि ने कहा- मुझे तो पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान दिखाई नहीं दे रहा है, जहां पर किसी प्रकार की नहीं नहीं ही ° हो।. गुरू ने बताया- केवल एक ही स्थान है जमीन से ऊपर उठकर ही यह साधना सम्पन्न हो सकती है।। गुंजरण क्रिया के माध्यम से शरीर के अन्दर उतनी विद्युत, उतनी ऊर्जा पैदा हो जाये, जिससे वह्का हो, ऊपर उठ सके।.
Plus d'informations Plus d'informations
फिर मैं आपके प्रति जिम्मेदार हूँ, मगर आप करेंगे ही नहीं और खड़े होकर आलोचना कर देंगे तोर आलोचना करना कोई बड़ी बहादुरी और विशेषता की बरन. हमने इसे एक फैशन सा बना रखा है।
Plus d'informations, plus d'informations उस गुंजरण क्रिया को इतनी तेजी के सiner कर दिया जाय, हीट निकलने का रास्ता बना दिया जाय, तो क्या वायुयान ऊपर उठ सकता है?
आपने अपने जीवन में किसी मरते हुये आदमी को देखा नहीं, वह भी अपने आप में एक अनुभव है। जब आदमी मरता है, तो उसके अन्दर जो प्राण है है वे दस में से किसी भी द्वार से बाहर निकल जाते हैंर उसकी्वार हो बाहर निकल औाते हैंर उसकीlan. एक लिंग, एक नाभि और दो कान। Plus d'informations यह विद्युत का प्रवाह है, जिसके द्वारा मैं तुम्हें देख रहा हूँ आंखो के माध्यम से से विद्युत ही है आंखो के्ह्यम Dieu अन्दर से बाहर निकलने की क्रिया विद्युत का विपरीतीकरण है।।
मगर मैंने कहा- उस चार्ज को एकत्र करें और विद्युत बाहर नहीं निकले। साधारण रूप से तो बाहर निकलेगी, क्योंकि भगवान ने ढक्कन तो दिये नहीं। इसलिये जब सामान्य गुंजरण का आठ मिनट का अभ्यास हो जाये तो उसके बाद उन दसों द्वारों को बन्द करके गुंजरण क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिये- यह इसकी दूसरी अवस्था है और जब दसों द्वार बन्द करके गुंजरण करेंगे, तो फिर वह हीट बाहर निकल नहीं सकती , वहअन्दर ही रहेगी। उस गुंजरण के मiner
Comment Chaitanya Kriya se produit-il ?
चैतन्य का मतलब है- अन्दर के चित्त को, अन्दर के समस्त चक्रों को्रियान्वित. कुण्डलिनी जागरण के लिये यह आवश्यक नहीं, कि एक-एक चक्र को क्रम से जाग्रत करें। Plus d'informations कुण्डलिनी जागरण का अर्थ है- पहले आप भस्त्रिका करें, मूलाधार करें, फिर आप स्वाधिष्ठान चक्र कोœuvre कुण्डलिनी जागरण की क्रिया थोड़ा सा रास्ता बदल देती है है, तो आदमी का दिमाग बिलकुल असंतुलित हो जाता है।। दिम. मगर इस क्रिया के माध्यम से एक-एक चक्र नहीं, अन्दर के सारे चक्र एक साथ जाग्रत हो जाते हैं, जिसको 'पूर्ण कुण्डलिनी' जागरण कहते हैं या सहस्त्रार जागरण कहा जाता है और यह इस चैतन्य क्रिया के माध्यम से ही संभव है।
Comment fermer les dix portes ?
Plus d'informations इन दसों द्वारों को बंद करने के लिए बायें पैर की एड़ी को गुदा पर रख दें। Plus d'informations यह सीधी क्रिया है और इस क्रिया में व्यक्ति दस घंटे बैठे तो भी थक नहीं सकत. Plus d'informations दोनों तर्जनी उंगलियों के माध्यम से दोनों आंखों को बंद कर दें। मध्यमा के माध्यम से दोनों नथुने और अनामिका व कनिष्ठिका के माध्यम से को को बंदर दें।। म. Plus d'informations यह एक मिनट का अभ्यास करके देखें, पांच मिनट के अभ्यास के बाद आसन नीचे नीचे से्पेस बनेगiner Plus d'informations
दसों द्वारों को बंद करके आठ मिनट के गुंजरण की क्रिया द्वारा प्राप्त अवस्था को ही समiner इस अवस्था में पूर्ण समाधि लग जाती है, उसमें शरीर को पूर्ण शून्यवत् बनाते हुये, जमीन से .ve समाधि क्रिया में आवश्यक है, अन्दर के सारे चक्र जाग्रत हों। हम अन्दर के सारे चक्रों को जाग Johûn
अब आप प्रश्न करेंगे- अगर यह समाधि है, तो फिर हमारा शरीर ऊपर उठतर ही हेग रहेगा?
ऐसा नहीं है, क्योंकि साधक जमीन से अधिक से अधिक चार फिट ऊपर उठने से शून्य-आसन लगा सकता हैर जहाँ आदमी चार फीटर उठœuvre की तीवtenir
अब ??? क्या आभास रहता है, कि अब मैं गुंजरण कम करूं या ज्यादा करूं?
Samadhi signifie- अन्दर की सारी चेतना जाग्रत रहना। बाहर से आप कट आफ होते है और अन्दर एक प्रकाश बिखर जाता है और प्रकाश जब अनtenir भगवान राम और श्रीकृष्ण के चित्रों के चारों ओर एक वर्तुल, प्रकाश की गोल रेखा देखी होगी।।।।।।।।।।।।। वह प्रकाश की रेखा अगर उन लोगों के मुख पर बन सकती है है, तो आप लोगों के भी बन सकती है क्योंकि आप्वयं ब्रह्म हैं। सकती है क्योंकि आप. अन्दर का जो आनन्द है, वह शरीर के ऊपर से जब बाहर बिखरने लग जाता है, तो सामने वाला देखते ही एकदम से ठगा सा रह जाता है। ही एकदम से ठगा सा रह जाता है।। एकदम एकदम ठग .cre इतना तेजस्वी चेहरा, इतनी दिप दिप करती आंखें, क्या चेहरा है, क्या प्रकाश है, जरूर कोई बहुत बड़ा आदमी है, क्या आनन्द कर प्रस्फुटन है है है!
समाधि में अन्दर तो सारा चैतन्य रहता ही है, यही नहीं उस चैतन्य अवस्था में ऑक्सीजन की भी आवश्यकता नहीं होती।।. Plus d'informations मेढ़क को यदि आप छः महीने तक बंद कर दें, तो वह बिना ऑक्सीजन के भी जिंदा रह लेगा। मनुष्य को ऑक्सीजन बार-बार क्यों लेनी पड़ती है? क्योंकि बार-बार हाथ हिलाता है, पांव हिलाता है, देखता है, चलता है— और उसकी शक्ति समाप्त होती जाती है है इसीलियेर ब शक्ति समाप्त होती जाती है है इसीलियेœuvre जब शक्ति खत्म होगी ही नहीं, तो अन्दर जो ऑक्सीजन है, वह आपको जीवन्त बनाये रखने के पर्याप्त.
Plus d'informations Plus d'informations समाधि तो कितने ही वर्षों की हो सकती है और जितने वर्षों की आपकी समाधि है, उससे कई गुना ज्यादा आपकी आयु हो सकती है। शरीर को चैतन्य करने के लिये लिये सारे चक्रों को जाग्रत करने के लिये और अमृत तत्व को अपनी न. Tras
इस क्रिया के माध्यम से अन्दर गुंजरण को निरन्तर प्रवाहित किया जा सकता है, जिसकी वजह से व्यक्ति शून्य समाधि लगा पाता है, जमीन से ऊपर उठकर समाधिस्थ हो सकता है और ऐसा होने पर उसके अन्दर, एक प्रकाश का उदय होगा, चेहरे से एक मस्ती झलकेगी। आपने भगवान कृष्ण की आंखों में कभी एक उदासी या खिन्नता नहीं देखी होगी होगी। जब भी आँखों में देखते हैं, एक मस्ती दिखाई देती है, यह अन्दर का प्रभाव है। वही पtenir यह तो सीधी सादी सी एक्टिविटी है, जिसमें कहीं कोई मंत्र जप नहीं करना है।
क्रिया तो आप ही करेंगे, यदि आपको जीवन में ऐसा आनन्द प्राप्त करना है, जीवन में पूर्णता प्राप्त्त. Plus d'informations घोड़े को आप लगाम पकड़ करके तालाब के किनारे ले जा सकते हैं या उसको कह सकते हैं, कि यह पानी बहुत स्वच्छ है, यदि तू पीयेगा, तो प्यास बुझ जायेगी, पर यदि घोड़ा पानी पीये ही नहीं, तो आप क्या कर सकते हैं? आप गुरू की बात सुनकर हूं-हूं करते रहें और घर चले जायें, फिर चार-छः महीने बाद में कहें, कि गुरूजी बहुत दुःखी हूँ।।।।.
अरे! गुरू जी ने तो चार घंटे गला फाड़-फाड़ कर क्रिया योग की विधि को समझाया था, उसका क्या हुआ? अरे गुरू जी ! वह तो सब ठीक है, मगर अब व्यापार चलाने के लिये मैं क्या करूं?
ये तो आपकी अधोगामी प्रवृतtenir गुरू तो आपको ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों की ओर बढ़ा ही सकते हैं हैं।
T यदि आपने लाहिड़ी महाशय का ग्रंथ पढ़ा हो, तो उसमें क्रिया योग के बारे में लिखा है और उन्होंने प्रœuvrefour कितनी परेशानियाँ हुईं, किस-किस प्रकार से मेरी परीक्षायें ली गयीं। मेरे गुरू ने मुझे कितना ठोक बजा कर देखा, तब उन्होंने मुझे दीक्षा के योग्य पात्र समझा और इसी परिश्रम की वजह से से्र समझामर इसी परिश्रम की वजह से से__ère Plus d'informations उत्तम कोटि के व्यक्ति वे होते हैं हैं, जो अपने नाम से दुनियां में छा जाते है।
आपके सामने कई रास्ते हैं। Plus d'informations चालीस वर्ष की अवस्था के बाद आप जीवन की अधोगामी प्रवृत्तियों में चलेंगे चलेंगे तो किसी भी हालत में बिड़ला तो बन सकते सकते टाटा भी नहीं बन सकते। तो बन सकते सकते सकते. लूनी गांव में एक व्यक्ति थे, उनकी उन्नीस संताने आज भी जिंदा हैं, चौबीस पैदा हुये, उनमें पांच मर गये और उन्नीस जिंदा हैं, आप तो उसर गयेर उन्नीस जिंद. भौतिकता के रास्तों पर तो असंख्य लोग चले हैं हैं, परन्तु ये ऊर्ध्वगामी रास्ते बिलकुल अछूते हैं हैं। ऊ. Plus d'informations इन रास्तों पर चल करके आप पूरे देश में नाम कमा सकते हैं हैं, हजारों लोगों का कल्याण कर सकते हैं हैं, अपना स्वयं का मार्गदर्शन कर सकते है।.
मैंने जैसा कहा, कि चौबीस घंटों में से केवल आधा घंटा भी ऐसा करेंगे, तो यह भी गुरू सेवा ही होगी। Plus d'informations गुरू दक्षिणा के रूप में आप से गुरू न धोती चाहते हैं, न कुरता चाहते हैं, न पांच रूपये चाहते हैं, वे तो चाहते हैं कि आप नित्य आधे कprises उत्तरार्द्ध की दीक्षा अपने आप में ही अत्यन्त अद्वितीय है। आप में ही्यन्त अद्वितीय है। जैसा कि मैंने बताया, कि क्रिया योग का पूरा तथ्य समझाने पर ही उत्तरार्द्ध दीक्षा दी जाती है।
इसलिये मैंने आपको समझाया, कि समाधि अवस्था कैसे प्राप्त की जiner सशरीर जाने की क्रिया कौन सी है, उसको समझाने पर ही उत्तरार्द्ध दीक्षा दी जाती है और यह्षा प्रदान कर गुरू पूर्णQuervers..
Kundalini et Kriya Yoga
क्रिया योग जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसके जिसके माध्यम से हम स्वयं एक्टिविटी करते हुये स्वयं क्रिया करते हुये अपनेरते हुयेरी__° कोर्णता क्रद. जीवन में और हृदय में आनन्द का एक स्त्रोत उजiner ऐसी क्रिया योग दीक्षा प्राप्त करके साधक निरन्तर क्faceère मगर इसके साथ ही साथ कुण्डलिनी जागरण के बारे में भी मैंने पहले विवेचन किया है, लेकिन क्रिया योग को हम समझ लेते हैं तो कुण्डलिनी जागरण मैट्रिक की्टेज. T जाते हैं, तो कुण्डलिनी अपने आप में एक सामान्य सी स्थिति बनकर रह जाती है।
हमारे शरीर में ऐसे कई चक्र हैं, जिनको नाडि़यों का गुच्छा कहते हैं और वे चक्र यदि स्पन्दनयुक्त हो जायें, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में सहस्त्रर के बारे में कहा कि वह यदि जाग्रत हो जाता है, तो उसके माध्यम से जो क्रिया होनी होती है, वह हो जाती है, और वह क्रिया है- भूतकाल को देखने की शक्ति और सामर्थ्य पैदा करना। जिस पtenir मूलाधार से लगाकर सहस्त्ररoque तक पहुँचने की क्रिया को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं।
कि इस जड़ शरीर को चेतना युक्त कैसे बनाया जा सकता सकता जा सकताा कैसे बनाया जा सकता युक्त कैसे बनाया जा सकता सकता हमारे शरीर में बहत्तर हजार नाडि़यां हैं और बहत्तर हजार नाडि़यों में तीन नाडि़यां मुख्य हैं, जिनको इड़ाडि़यों पिंगलर सुषुम्नां मुख्य हैं, जिनको इड़ा पिंगला और सुषुम्ना कहते हैं। हैं हैं. तीनों नाडि़यों का प्रारम्भ रीढ़ की हड्डी जहां समाप्त होती है, वहां से होता हैर पूरे शरीर में ये नाडि़यां व्याप्त्त.
आज्ञा चक्र में केवल सुषुम्ना नाड़ी पहुँचती है और इड़ा मस्तिष्क तक पहुँचती है। इन तीनों का अलग-अलग स्थान है। Plus d'informations जो केवल बुद्धि से ही ज्यादा कार्य करते हैं, उनकी इड़ा ज्यादा जाग्रत होती है है। जो हृदय पकtenir यदि हम किसी वैद्य के पास जiner प्रकार का रोग है ?
इसका मतलब यह हुआ कि हाथ की कलाई में जो नाडि़यां हैं, उन नाडि़यों का पूरे शरीर से सम्बन्ध है।।।. हृदय को, दिमाग को और पूरे शरीर की चेतना को एक साथ संगुम्फित करने में इन तीनों (कुण्डलिनी नाडि़यों का सहयोग और इन नाडि़यों के सहयोग को हीlan
मगर उस समाप्त होने की क्रिया से पहले यह पूरे शरीर में से विचरण कर लेती है। जैसा कि मैंने बताया, पिंगला नाड़ी रीढ़ की हड्डी के नीचे से प्रœuvrevicité होकर हृदय्ष में सम. और मस्तिष्क में घूमती हुई, फिर हृदय पक्ष में जाकर समाप्त होती है।
यदि आपने रीढ़ की हड्डी देखी हो, तो वह बिल्कुल खोखले बेलन की तरह है, जिसमें बत्तीस छल्ले हैं बिल्कुल गोल।। जिसमें्तीस छल्ले हैं. इन छल्लों में से होती हुई ये नाडि़यां आगे की ओर अग्रसर होती हैं, मगर ये तीनों ही नाडि़यां सुप्तावस्था में हैं। ही ही न. यह तो मैंने पहले ही बताया था कि हमारा अट्ठानवे प्रतिशत शरीर सुप्तावस्था में है, चेतनायुक्त नहीं है।।।।।।।। उसी जड़ अवस्था में ये तीनों नाडि़यां भी हैं, और तीनों को जिस प्रकार से जाग्रत किया जाता है, क्रिया कुण्त जागरण कहते है। क्रिया को्डलिनी जागरण कहते है। इसका मकसद है, पूरे शरीर को चेतनायुक्त बनाकर ऊर्ध्वगामी पथ पर अग्रसर होना।
नृत्य करना किसी प्रकार का भोंडापन नहीं है, यह तो जीवन का एक उद्वेग है, अपने प्रस्फुटित करने की्रिया है। आपको्रस्फुटित करने की्रिया है। यदि जीवन में नृत्य नहीं होता, तो कुंठायें व्याप्त हो जाती— और ऐसे व्यक्ति, जो्य नहीं कर सकते, जो व्यक्ति को्य्त्त. हो जाते है।
Plus d'informations आज से चालीस साल पहले जैसा होली का त्योहार होता था, अब तो वैसा रहा ही नहीं। मैंने चालीस साल पहले की होली भी देखी है और आज भी देख रहा हूँ, चालीस साल पहले वे जवान लड़के जिस प्रकœuvre यह उच्च वर्ग की घटना है- कोई मजदूर या कृषक वर्ग की बात नहीं कर रहा हूँ।
Pourquoi les ancêtres ont-ils conservé une telle pratique ?
यदि आपने होली गीत सुने हों तो उसमें आपने देखा होगा कि व्यक्ति अपनी विचारधारा को प्रकार से व्यक्त करता है। प्रकार से व्यक्त करता है।।।।।।।. व्यक्ति की जो दमित इच्छायें होती हैं हैं उनके पूर्णरूप से प्रदर्शित करने के लिये एक जगह बना दी।।।. अगर वह जगह नहीं बनेगी, तो व्यक्ति अन्दर से दमित और कुंठाग्रस्त हो जायेगा, इसलिये ये दो दिन दिन बना दिये व्यक्ति.
नृत्य भी उन्हीं भावनाओं को प्रस्फुटित करने की क्रिया है। यह कोई भोंडा प्रदर्शन नहीं हैं यह तो जीवन की भावनाओं का उद्वेग है और जीवन की भावनाओं कiner जो हृदय से जाग्रतवान होते हैं, वे ही अपने आप में मुस्करा सकते है।
आपने अट्टहास शब्द तो सुना ही होगा कि हमारे पूर्वज जोरों से अट्टहास लगाते थे। आज यह शब्द हम केवल सुनते है। ऐसा देखते नहीं, आज अगर कोई व्यक्ति जोरों से हँसे हँसे तो हम कहते हैं यह यह असभ्यता है, बड़ा ही असभ्य है गंव तो. घर की बेटी अगर जोर से हंसने लग जाय तो कहेंगे- तुझे शर्म नहीं आती, क्या घर की बहू-के ये ये लक्षण हैं? रोती हुई लड़की या लड़का बड़ा अच्छा लगता है और हम कहते हैं- वह बहुत गंभीर है। व्यक्ति अट्टहास के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है, मगर हंसी्ध और निर्मल होनी.
होली का त्योहार नृत्य, कलाओं का चिन्तन और अपने आप में निमग्न हो जाने की क्रिया तो चैतन्य महाप्रभु से्रारम्भ हुई है्य महाप्रभु से्रारम्भ हुई है।।। मह. हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि पहले सभी स्त्रियां नृत्य करती थी और जिस बहू को नृत्य करन. अब तो सब कुछ बदल गया है, क्लब में जाना, पत्ते खेलना, शराब पीना, सिगरेट के छल्ले उड़ाना- ये सब आज के क .cre
इस कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से भी जीवन का सारा आनन्द प्रस्फुटित होता है और व्यक्ति नर्तनयुक्त्त. नृत्य करना है- आँखो के माध्यम से नृत्य करता है- शरीर के माध्यम से नृत्य करता है- चेतना के माध्यम से नृत्य करता है- बातों के माध्यम से, बात ऐसी सटीक करता है, कि सामने वाला एहसास करता है, कि कुछ उत्तर मिला । तुरन्त उत्तर दिया जाये और सटीक उत्तर दिया जाय, यह अपने आप में बहुत बड़ी कला होती है है।
Plus d'informations सुख तो हम पैसे से प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि हम बाहरी प्रवृत्तियों को सुख मानते हैं।।. आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आनन्द प्राप्त करने के लिये तो अन्दर की सारी प्रवृत्तियां जाग्रत करनी पड़ती है और वे सारी वृत्तियां जिस प्रकार से जाग्रत होती हैं, उसको कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, यह उसका मूल आधार है।
Plus d'informations उसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र है। एक-एक करके चक्रों को जाग्रत करने की क्रिया का बेस क्या है, आधार क्या है, यह मैं पहले स्पष्ट्ट कर चुका हूँ।, यह मैं ही स्पष्ट कर चुका हूँ।
शास्त्रों में बिल्कुल स्पष्ट रूप से बताया है कि व्यक्ति सही. Non. आप सांस ले रहे हैं, मगर जैसा मैं पहले ही उल्लेख कर चूका हूँ। आपको सांस लेना आता ही नहीं, क्योंकि सांस का सम्बन्ध सीधा नाभि से है। जब आप सांस लेते हैं, तो आपके नाभि प्रदेश में स्पन्दन होना चाहिये।
यदि आपको देखना है, तो केवल चार-छः महीने के बच्चे को देखें, कि वह सांस ले रहा है और उसकी नाभि थर-थर हिलती है स्पन्दनयुक्दनयुक्त. तो केवल गले तक ही लेते हैं। सांस लेना आपको एक बच्चे से सीखना चाहिये और व्यक्ति सांस लेकर अपनी नiner
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations इसीलिये मैं कह रहा हूँ, नाभि तक सांस लेना चाहिये, क्योंकि नाभि तक सांस लेंगे, तो पूरे शरीर में स्वच्छ्छ वायु का संचरण होगरीर में स्वच्छ्छissement मूलाधार जाग्रत करने के लिये कुछ फोर्स तो लगाना ही पड़ेगा।
आपने सपेरे को देखा होगा, जब सांप कुण्डली मारकर बैठ जाता है। तो सपेरा बीन बजाता है और यदि फिर भी नहीं उठता है, तो वह हाथ से छेड़ता है, तब सांप फन फैला करके खड़ा होता है।।।. इसी पtenir आप सांस इतनी गहराई से लें कि नाभि में स्थित जो चक्र हैं, सीधा उस पर धक्का लगे और जब धक्का लगेगा तो अपने अपने आपœuvre
सबसे पहले कठिन कtenir यदि आप भस्तtenir पूरे फोर्स के साथ बाहर निकालें। इसलिये हमारे पूर्वजों ने कहा है कि सुबह उठकर गहरी सांस लेनी चाहिये। गहरी सांस लेने का मतलब है, कि अन्दर तक पहुँच सके, मगर पहुँच नहीं पा रही है, पहुँच नहीं पा रही— इसीलिये प्रकार की बीमारियां हैं और ° ोग तो आप में मृतœuvre
यदि व्यक्ति को कुण्डलिनी जागरण का ज्ञान हो, सीधा नाभिस्थल तक पहुँचने का ज्ञान हो, तो फिर उसको्यु ूपी cérémé इसलिये इतने फोर्स से सांस बाहर निकालें कि ऐसा लगे, जैसे सीना फट जायेगा और उतनी हीर से सांस को वापिस खींचें।। उतनी जो. इन दोनों कtenir यह कोई ऐसी विशेष कठिन क्रिया नहीं है। Plus d'informations इस भस्तtenir यदि व्यक्ति अनाज खाना छोड़ दे तो व्यक्ति मर नहीं जायेगा, यह गारण्टी की बात है। वह आटा खाता है, इसलिये मर जाता है। जो व्यक्ति केवल वनस्पति पर रहता है, वह अधिक जीवित रहता है।।
अब आप कहेंगे, आपने यह सलाह तो दे दी, पर भूख लग जाती है, उसका क्या करें? तो मैं कहता हूँ, कि आटा कम खाना चाहिये और भोजन करने से पहले पानी ज्यादा पी लें। पानी ज्यादा पी लेंगे, तो फिर भूख कम लगेगी और आप कम रोटी खा सकेंगे। इसलिये पेट में ज्यादा फालतू का सामान नहीं जाये और जो हो हो, पहले उसे पचा लें। दूसरी जो क्रिया है, उसमें शवासन में लेटकर पांवों को छः इंच ऊपर उठा लें, तो आप देखेंगे कि पैरों में खिंचाव महसूस हो erci है है। कि. केवल एक-दो मिनट में ही ऐसा लगेगा कि अन्दर का सारा प्रदेश फट रहा है। जितना भी पेट में स्टोरेज है उसके टूटने की, विखंडन कि क्रिया होगी और धीरे-धीरे जो चर्बी है, जिसको मांस पिंड कहा जाता है, वह अपने आप में गलेगांस पिंड कह. शरीर को तो चाहिये ही, ऊर्जा अब या तो आप रोटी के द्वारा दे देंगे, नहीं तो जो जमा है, उससेरीर प्राप्त करता रहेगा। जब पेट अपने आप में दबेगा, तब आप जो सांस लेंगे वह सीधा ही नांभि तक पहुँचेगा।
दूसरा आसन है कि आप सीधे बैठ कर के पेट को बहुत अंदर खींचें, गहरी सांस छोड़ करके ऐसे कि जैसे पीठ से चिपक ज.
इन तीनों क्रियाओं के माध्यम से मूलाधार जागरण की क्रिया प्रारम्भ होती है और कुण्डलिनी जागरण का विशेष मंत्र, भस्त्रिका के बाद में उच्चारण करने से भी अंदर की सारी गन्दगी, जो गैस, चर्बी है, जितना भी फालतू है, वह ऊर्जा के माध्यम से जल्दी से जल्दी पिघल करके साफ हो जाता है और फिर कुण्डलिनी जागरण प्रœuvres होर कुण्डलिनी जागरण प्रœuvre ये दोनों का मूल भेद है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुण्डलिनी जागरण कर सकता है।
Mantra Siddhi - Atteindre la perfection
मैंने आपको कुण्डलिनी जागरण के बहुत सरल, सामान्य से नियम बताये हैं, न इसकी इसकी पेचीदगी में गया और न ही यह बताया, कि कुण्डलिनी क्या है? कुण्डलिनी का माया से क्या सम्बन्ध है? इससे तुम्हारा कोई मतलब नहीं है है क्योंकि जब तुमने उस साधना को समझा है, जिसके माध्यम से पूरा शरीर अपने आप में्य कियायम जाता हैरीर अपने्रिक की प्य्ष् °.
क्रिया योग के माध्यम से भी पूरी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, जिसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है है वह अपने में ही तीन कलाग्रत होती. सोलह कलाओं तक पहुँचने के लिये प्रयत्न यह करना है, कि सबसे पहले एक योग्य गुरू की खोजरनी है।। एक योग्य गुरू की करनी है।
'चेतना सिद्धि', प्राणमय सिद्धि ', ब्रह Joh
चेतना सिद्धि का तात्पर्य है- पूरे शरीर को चैतन्य करने की क्रिया। यदि हमारा शरीर चैतन्य होगा तो हम कुण्डलिनी जागरण कर सकेंगे, शरीर चैतन्य होगiner उन जड़ शरीर को चेतना युक्त बनाने के लिये 'चेतना सिद्धि यंत्र' को सामने रखकर नित्य एक माला मंत्र जप 'स्फटिक माला' से कियाला मंत्र जप 'स्फटिक माला' से कियालान. यह मंतtenir -
इसका यदि आप निरन्तर एक माला मंत्र जप करते हैं तो आपका पूरा शरीर चैतन्य होता ही है। इसकी पहचान कैसे होगी ? यदि आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है तो आपकी स्मरण शक्ति अपने आप ही तीवtenir एकदम से आपको नई चेतना, नये विचार, नई भावनायें, नई कल्पनायें प्राप्त हो सकेंगी- इसको चेतना प्रयोग कहा जाता है।
दूसरी प्राणमय सिद्धि, जब शरीर चैतन्य हो जाय तो उससे प्राण संस्कारित करने पड़ते हैं।।।।।. यद्यपि हमारे शरीर में जीव संस्कारित है, यह जीवात्मा है और हम परमात्मा होना चाहते हैं। प्राणों का संचार करना एक अलग चीज है, जीवन का संचार तो भगवान ने किया ही है। Plus d'informations इस 'प्राणमय यंत्र' को सiner
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations सिद्धि प्रदान करेंगी।
मैं आपको पूर्ण आशीर्वाद देता हूँ कि आप अपने शिष्यत्व को उच्चता की ओर अग्रसर करते हुए पूर्णत्व्व प्रœuvrevice आशीर्वाद आशीर्वाद आशीर्वाद
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
M. Kailash Shrimali
Il est obligatoire d’obtenir Gourou Diksha du révéré Gurudev avant d'effectuer une Sadhana ou de prendre une autre Diksha. S'il vous plaît contactez Kailash Siddhashrashram, Jodhpur à travers Email , whatsApp, Téléphone or Envoyer la demande obtenir du matériel de Sadhana consacré sous tension et sanctifié par un mantra et des conseils supplémentaires,