Jeudi 19 juillet, 11h25 AM 20 juillet à 09:44 AM ??
इससे यह तो स्पष्ट ही है, कि सूर्य में अद्भुत शक्तियां निहित है और ग्रहण काल में सूर्य अपनी पूर्ण क्षमता से इन शक्तियों को, इन रश्मियों को विकीर्णित करता है, जिसे साधनात्मक प्रयोग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है, उतना कि जितना हमारे शरीर में क्षमता है।
जीवन में सब कुछ तो दुबारा भी प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु क्षण जो बीत गया उसे दुबारा वापस नहीं लाया जा सकता, नक्षत्रों का जो संयोग, ग्रहण का जो प्रभाव जैसा इस बार बन रहा है, वह एक बार बीत गया तो दुबारा नहीं आ सकेगा। सूर्य ग्रहण तो आयेगा पर जो नक्षत Johû T इसलिये शtenir
साधक के जीवन में अनेक प्रकार की इच्छाये होती है है ऐसाère जो हम चाहते हैं, क्योंकि ऐसे अद्वितीय ग्रह संयोग में की गई स साधना कभी निष्फल नहीं होती है।
अतः हमारे जीवन की मनोकामना पूर्ति के लिये देवताओं की अभ्यर्थना-आराधना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है।।. देवताओं का सारभूत अगर किसी में है, तो वह गुरू रूप में है, क्योंकि गुरू प्राणमय कोश में होता है, आत्ममय कोश में होतtat है। में होत. वह केवल मानव शरीर धारी नहीं होता। उसमें ज्ञान होता है, चेतना होती है, उसकी कुण्डलिनी जाग्रत होती है, उसका सहस्त्रार जाग्रत होता है।
Plus d'informations उनको गुरू क्यों कहा जाता है? इसलिये कि उन्होंने उन साधनाओं को, उस चेतना को प्राप्त किया, जिसके माध्यम से उनके शरीर से अष्टगंध प्रवाहित हुई। उनके शरीर से अष्टगंध प्रवाहित हुई।। उनके. उनका प्राण तत्व जाग्रत हुआ।
आप कितनी साधना करेंगे ? कितने मंत्र जपेंगे ? कब तक जपेंगे ? Plus d'informations लेकिन आपके जीवन का अधिकांश समय तो व्यतीत हो चुका है, जो बचा है, वह भी सामाजिक दायित्वों के बोझ से दब. फिर वह जीवन अद्वितीय कैसे बन सकेगा? और अद्वितीय नहीं बना, तो फिर जीवन का अर्थ भी क्या क्या क्या क्या क्या क्या क्या
मैं आपको एक अद्वितीय साधना दे रहा हूँ, हजार साल बाद भी आप इस साधना को अन्यत्र प्राप्त नहीं कर पायेंगे, पुस्तकों से आपको प्राप्त नहीं हो पायेगी, गंगा के किनारे बैठ करके भी नहीं हो पायेगा, रोज-रोज गंगा में स्नान करने से भी नहीं प्राप्त हो पायेगा। यदि गंगा में स्नान करने से ही कोई उच्चता प्राप्त होती होती तो मछलियाँ तो उस जल में ही हती हती है है अपने आप में उच.
साधना की प्रक्रिया उतनी कठिन या जटिल नहीं होती, महत्व तो क्षण विशेष का होता है, भारतीय ऋषियों ने काल ज्ञान और ज्योतिष पर इतने अधिक ग्रंथ है है तो.
अवतारों के जीवन मे भी ग्रहण की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलते हैं हैं। भगवान राम ने अपने गुरू से दीक्षा ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन. क्योंकि गtenir
यही वह दिव्य अवसर है जब एक शिष्य अपने गुरू को अपने कण कण में सtenir ऐसे विशिष्ट संयोग सूर्य ग्रहण युक्त निखिल जन्मोत्सव केES साथ ही जो साधक इस अवसर पर साधना, मंत्र जप सम्पन्न करता है, वह जीवन मेंlanture
Plus d'informations हमारे जैसा कोई दूसरा हो ही नहीं। ऐसा हो, तब जीवन का अर्थ है। ऐसा जीवन प्राप्त करने के लिये बस एक ही उपाय है, कि हम ऐसे गुरू की शरण में ज. सम्मोहित हो, अपने आप में सक्षम हो और पूर्ण रूप से ज्ञाता हो।
Plus d'informations आप उनके पास बैठ कर उनके ज्ञान से, चेतना से, प्रवचन से एहसास कर सकते है है यदि आपको जीवन में सद्गुरू की पtenir
यदि व्यक्ति में जरा भी समझदारी है, यदि उसमें समझदारी का एक कण भी है, तो पहले उसे यह चिन्तन करना चाहिये, कि उसे सद्गुरू को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये, जो उसे तेजस्विता युक्त बना सकें, जो उसे प्राण तत्व में ले जा Plus, plus et plus
यदि ऐसा नहीं किया, तो भी यह शरीर रोग ग्रस्तता और वृद्धावस्था को ग्रहण करता हुआ मृत्यु को्राप्तlan. फिर वह क्षण कब आयेगा, जब आप दैदीप्यमान बन सकेंगे? कब आप में भावना आयेगी, कि मुझ को दैदीप्यमान बनना ही है, अद्वितीय बनना है, सर्वश्रेष्ठ बनना है?
ऐसा तब सम्भव हो सकेगा, जब आपके प्राण, गुरू के प्राण से जुड़ेगें, जब आपका चिन्तन गुरूमय होगा, जब आपके्रिया-कलाप गुरूमय होंगे औœuvre में उतार देना।
” शरीर में उनका स्थापन होते ही उनकी चेतना के माध्यम से यह शरीर अपने आप में सुगन्ध युक्त, अत्यन्त दैदीप्यमान और तेजस्वी बन सकेगा, जीवन में अद्वितीयता और श्रेष्ठता प्राप्त हो सकेगी, जीवन में पूर्णता आ सकेगी, प्राण तत्व की यात्र सम्भव हो सकेगी और Plus d'informations
इस बार पन्द Joh ऐसा होना साधनात्मक दृष्टि से पूर्ण विजय सिद्ध मुहूर्त होता है। एक पक्ष के अनtenir इस अवसर पर मैं आपको एक अद्वितीय गुरूमय साधना प्रदान कर रहा हूँ- इस साधना में आवश्यक सामग्री 'गुरू हृदयस्थ स्थापन यंतxte
इस साधना को आप सूर्य ग्रहण युक्त निखिल जन्मोत्सव 21 अप्रैल को प्रœuvre साधक इस साधना हेतु पीले रंग का वस्त्र धारण करे तथा पीला आसन बिछाये, गुरू पीताम्बर अवश्य ओढ़ लें। बाजोट पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर 'गुरू हृदयस्थ स्थापन यंत्र' को स्थापित करें। घी का दीपक लगाये।
Plus d'informations कर पूजन करें।
Plus d'informations ा मंत्र जप करें, ऐसा 21 दिन तक करे-
21
Plus d'informations इतना अवश्य ध्यान रखे, कि यह साधना पंजो के बल खडे़ हो कर ही ही करनी है, बैठर या किसी अन्य आसन में इस साधना को सम्पन्न.
इस साधना के माध्यम से गुरू आपके रक्त के कण कण में स्थापित हो सके और आपका जीवन दिव्य, उदात्त पवित्र और श्रेष्ठ.
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