भगवान विष्णु ने 'कूर्म' अर्थात् 'कच्छप' का अवतार विश्व कल्याण के लिये लिया था। दरअसल समुद्र मंथन के दौरान देव गणों और दैत्यों की सहायता करने के लिये मंदराचल पर्वत का भार अपनी पीठ.. इसी समुद्र मंथन से चौदह बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति हुई थी थी। जिससे विश्व का कल्याण हुआ।
Plus d'informations कई पुराणों एवं ग्रंथो में है। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations वैजयंती फूलों की माला उन् होंने इन्द्रदेव Plus d'informations Plus d'informations को पैरो तले रौंध दिया।
यह सब देख ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने इन्द्रदेव को श्रीहीन, होने का श्राप दे दिया। परिणामतः समस्त देवतागण निर्बल हो गये इसी बीच असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें हराकर दैत्यराज बलि ने स__ère médecin Plus d'informations व्यथित होकर इन्द्रदेव व अन्य सभी देवता भगवान ब्रह्मा के समक्ष गये व अपनी विपदा सुनाई। बtenir देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण में जाकर प्रार्cité कीœuvre किन्तु यह कार्य इतना सरल नहीं था क्योंकि देवता अत्यन्त निर्बल हो चुके थे कि अकेले्र मंथन कर पाना उनके स थे .tiens.. इस समस्या का समाधान बताते हुये भगवान विष्णु ने उनtenir जब देवताओं ने यह बात असुरो को बतiner Plus d'informations
इसके पश्चात् वासुकि नiner परेशान होकर देवता पुनः सहायता हेतु भगवान विष्णु का स्मरण करने लगे। यह देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कूर्म का रूप लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठर खरख लिया। इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन आंरभ हो पाया। मथते-मथते बहुत देर हो जाने पर भी जब अमृत न निकला तब भगवान ने सहस्त्रबाहु होकर स्वयं ही दोनो ओर से मथना प्रœuvre. इसके बाद उसी समय हलाहल विष निकला जिसे पीकर भगवान शिव निलकंठ कहल. इसी प्रकार समुद्र मंथन से कामधेनु, उच्चैश्रवा, ऐरावत, कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, कलxteher
अब अमृत को प Joh तब भी श्री विष्णु ने अपनी लीला रचाकर अमृत देवतiner अमृत पीकर देवता अमर हो गये और असुरों को युद्ध में परास्त कर पाये और इस प्रœuvretique इन्द्रदेव व सभी देवतागण कृतज्ञ होकर बार-बार कूर्म भगवान की स्तुति करने लगे।
भगवान प्रसन्न हुये व उन सभी को अभिमान का त्याग कर, सकुर्म करने का ज्ञान दिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की नित्य पूजा-अर्चना करने से सुख समृद्धि व सुबुद्धि की प्राप्ति होती है।। व.
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