अन्तर्द्वन्द् की इस स्थिति में खेत को अपने ही विरोधाभiner तो द्वन्द् समाप्त हो जाता है, तब गुरूदेव एक शुद्ध ज्ञान का, शुद्ध विचार का बीजारोपण करते हैं और फिर उस विचार के आनन्द में व्यक्ति निर्द्वन्द् हो जाता है, एक खुमारी में डूब जाता है और फिर वह जिस कार्य को हाथ में लेता है, उसे सफलता मिल जाती है।
द्वन्द् जीवन के चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, द्वन्द् का उत्पन्न्न होना तो एक्रारम्भिक एवं्यक्न. व्यक्ति के अन्दर जब द्वन्द् की स्थिति उत्पन्न होती है्वन्द् की. ऐसा हो पायेगा या नहीं हो पायेगा?
ऐसे ही अनेक विरोधाभासी विचारों के मध्य एक तनाव और क्लेश की दुःखद सी्थिति निर्मित हो जाती है। सी. व्यक्ति का मन खिन्न हो जाता है, वह निराश व हताश हो जाता है, उसका विश्वास डोल जातiner
परन्तु यह द्वन्द् यदि किसी के जीवन में आयआयcre जब तक दही को मथनी से पूरी तरह मथ नहीं दिया जाता तब तक श्वेत स्निग्ध मक्खन उसमें से नहीं निकल पाता। सद्गुरू भी यही क्रिया अपने शिष्यों के साथ करते है, अनेक प्रकार से्हें दुष्कœuvre
निर्द्वन्द् की स्थिति में ही आनन्द कiner प्रकृति में भी यह स्पष्ट देखने को मिलतiner जो इस द्वन्द् की स्थिति में विचलित नहीं होता है, जो इस तन. Plus d'informations
द्वन्द् तो हर व्यक्ति के जीवन में आते है है परन्तु स्वयं के प्रयासों से इन्वन्द्वों्वों स्वयं के्रयासों से द्वन्द्वों. परस्पर विरोधी विचारों के कारण वtenir जो इस द्वन्द् में उलझता नहीं है जो जो अटकता नहीं है, अपने लक्ष्य की ओर सचेत हत œuvre
इन सभी द्वन्द्वों का उपाय हमारे अन्दर ही छिपा होतiner यदि स्वयं प्रयास कियiner-जाये, चेष्टा की जाये तो मन में शुभ विचcreve इन्हीं शुभ विचारों को और शक्तिशाली बनाकर हम अपने जीवन को उचित दिश दिशा की ओर मोड़ सकते है, क्योंकि प्रबल विचार शक्ति ही समस्त क्रियाओं को्रबलरेरितरती हीœuvre
गीता में कहा गया है, कि 'संशयात्मा विनश्यति'
तो इसका आशय ही यही है, कि संशय या संदेह करने से ही व्यक्ति टूट जाता है, बिखर जाता है। Plus d'informations वह यह निर्णय नहीं कर पा रहा था, कि कैसे उन बन्धु-बान्धवों पर शस्त्र उठाए, जिनके साथ उसने जीवन बिताया है।।. द्वन्द् हुआ और तभी भगवान कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप दिखाकर संशय का निवारण किया, ज्ञान दिया प्रश्न होगारण किया, ज्तर प्र्त् réce होग्त्त्त्त्त्त्त्त्त méde Sortie.
होगा या नहीं होगा, कर पाऊंगा या नहीं कर पाऊंगा जैसी स्थिति व्यक्ति को अन्दर तक तोड़ देती है, परन्तु शायद ये बात अनुभव सभी ने की होगी, कि ऐसी स्थितियों में ही व्यक्ति बड़ी आतुरता से ईश्वर को याद करता है, सद्गुरू को याद करता है और जब उसके कदम गुरू चरणों की ओर बढ़ते है, तब उसे आनन्द का अथाह सागर लहराता हुआ मिल जाता है और वह अपने द्वन्द् से विमुक्त होता हुआ निश्चिन्त हो जाता है, वह यह समझ जाता है, कि उसकी प्रत्येक क्रिया में गुरूदेव सहायक है । फिर भी यदि कहीं कोई तनाव है, कोई द्वन्द् है, तो अवश्य ही उसके अन्दर ही कोई कंकड़ पत्थ__° विषम परिस्थितियों में प्रायः मनुष्य विचलित हो जाता है, परन्तु यदि Dieu जो स्थिति पैदा होती है, वह एक अस्थायी (अल्प कालिक) ही प्रतीत होगी। इसके विपरित द्वन्द् की इन घडि़यों में यदि व्यक्ति मन में ठ. करता ही है।
इतिहास साक्षी है कि जितने भी महान व्यकtenir Imp Plus d'informations परन्तु इसके पूर्व उस वैज्ञानिक के मiner है, कैसे करूं, किस से पूंछू और पूछने के लिये उसे कोई नहीं मिलता है, उसके प्रश्नों का उत्तर स्वयं उसके अन्दर से ही मिल जा उतर स्वयं उसके्वन्दर से निश्चित.
यदि हम भारतीय इतिहास में अवलोकन कर देखें, तो ऋषि काल में अनेक शास्त्रारoration हुआ करते थे, यह द्वन्द्द् ही तो है दो परते्प__ère विपरीत विचारère के्यlan सिद्धान्त की विजय होती थी और इस तरह एक नवीन विशुद्ध ज्ञान उभर कर सामने आता था।
साधक जीवन में भी द्वन्द्वात्मक स्थिति को इसी सकारात्मक दृष्टिकोण से लेना चाहिये। T शान्त चित्त से इन द्वन्दों को साक्षी भाव से देखता रहता है, तो उसे्ञान का बोध होता है। तो उसे.. द्वन्द् तो एक ऊर्जा होती है, एक छटपटाहट होती है, एक बेचैनी होती है सत्य को जान लेने की, और यह द्वन्द् ही व्यक्ति.
इसीलिये सद्गुरूदेवजी ने एक बार कहा था- 'यदि तुम्हारे मन में द्वन्द् आया है, यदि तुम्हारे मन की भटकन बढ़ी है, तो यह प्रसन्नता की बात है, क्योंकि तुम्हारी यही भटकन, तुम्हारा यही जिज्ञासु भाव, तुम्हारी यही खोजी प्रवृति एक दिन तुम्हें सफलता के उच्च सोपान पर पहुंचायेगी और जब उन अजtenir
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Shobha Shrimali
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