समाज और सामाजिक स्तर पर जीवन जन्म से मृत्यु के विविध संस्कारों में गुंफित है।। के के विविध. T , पारिवारिक एवं सामाजिक कर्तव्य का बोध संस्कार-ग्रहण तदनंतर मृत्यु के संस्कारों-अंत्येष्टि आदि का वर्णन किया है।। ।्येष्टि आदि. सभी षोड़श संस्कारों का जीवन में पूर्ण औचित्य और महत्त्व है।
हमारे देश में पtenir इसी कारण कुछ बालकों में महापुरूषों के लक्षण बाल्यावस्था से ही दिखाई देते हैं हैं्प प्रयास से उनकी प्रतिभा जगमगाने प्रयास से उनकी प्रतिभा जगमगाने लगती है।। से ही उनकी्रतिभा जगमगाने लगती है। उन्हें क्या बनना है- उसके लक्षण स्पष्ट दिखने लगते हैं, फिर समुचित वातावरण एवं परिवेश रूपी आलोक पर समुचितर प्रतिभा कमल कीरिवेश ूपीरtience इसीलिये हमारे समाज में संस्कार प्रदान करने की प्रक Johûn.. संस्कार हमारे मन पर मनोवैज्ञानिक असर भी डiner
एक सम्राट के रथ के थोड़ी दूर आगे साधारण-सादे वस्त्र में एक महात्मा जा रहे थे। सम्राट के रथ के आगे किसी के चलने का दुस्साहस कैसकैसइ? ऐसा समझकर एक सैनिक उस महात्मा के पास पहुँचा, बोला- 'हटो रास्ते से, देखते नहीं सम्राट की सवारी आ रही है?' महात्मा ने पीछे मुड़कर रथ की ओर देखा फिर मुस्कुराकर वे शांत भाव से चलते रहे। Plus d'informations सम्राट को बहुत क्रोध आया। रथ महात्मा के पास पहुँच चुका था। ? महात्मा ने विस्मित भाव से कहा- मैं सम्राट हूं। यह बात सुनकर सम्राट को और अधिक क्रोध आ गया, वह बोला साधारण वस्त्रें में इस प्रकार नंगे पांव सड़क पर चलने व इस व्यक्ति्ति्tié सम्रœuvreG.
महात्मा ने कहा- कीमती वस्त्रें से सुसज्जित, स्वर्ण रथ पर सवार संस्कारविहीन अहंकारी व्यक्ति सम्राट कैसे हो होœuvre सम्राट तो वह है, जिसका चित विकार रहित हो, जो अहंकार विहीन हो, जिसमें सब के्रति श्रद्धा भाव है, जो संयम प्तिferci जिसे स्वयं पर अनुशासन नहीं, वह किसी राज्य का शासन कैसे चला सकता है? Plus d'informations
निष्कर्ष यह है कि जीवन एक यजtenir संस्कार-संपन्नता मानव-जीवन को अनुशासित करने की एक सार्थक प्रक्रिया है। मानव-शरीर अनुशासित-प्रक्रिया का जीवंत स्वरू४ हई अनुशासन और संतुलन में संबंध है। जिस पtenir संस्कार हमारे आंतरिक सद्गुणों की वृद्धि करके अनुशासित जीवन जीना सिखाते हैं। साथ ही ज्ञान के माध्यम से जीवन में शुचिता, श्रेष्ठता, मनोरथों की पूर्णता की भाव भूमि में निरनtenir दुर्गुणों से गtenir
Plus d'informations मनुष्य जीव के रूप में जन्म लेता है। पालन-पोषण, संरक्षण से उसकी प्राणशक्ति सबल होती है और जीवन जीने की्रक्रियœuvre Plus d'informations लेकिन एक व्यवस्थित जीवन जीने, सार्थक जीवन जीने के लिये जीवन-प्रक्रिया को निखारने की जरूरत होती है है, जिसकीर्ति संस्कार से ही. Plus d'informations किन्तु संस्कार-प्राप्ति ही पर्याप्त नहीं है है, अपितु प्राप्त संस्कार केरूप साधना भी्यक है।. Plus d'informations
मानवीय संस्कारों की सार्थकता तब तक सिद्ध नहीं होती, जब तक पारिवारिक और समाजिक संस्कार के पल्लवित पुष्पित होने कर मौकाजिक संस्कार के पल्लवित पुष्पित होने का मौका नहीं मिलतार। तेजोमय संस्कार के सद्गुणों के आलोक से ही भौतिक जगत् के तमस को दूर करना संभव है। सिर्फ आदमी ही एक ऐसा जीव है, जो रोते हुए पैदा होता है, शिकायतें करते हुए जीता है और हर समय ऊपर वाले पर नाराज होतर हुआर समय ऊपर वाले पर नाराज होता हुआ अन्त में. सब कुछ होने के बाद और पूर्णरूपेण भोग-विलास में लिप्त रहने के बाद भी हम प्रभु 'से मांगते रहते हैं, मांगने की प्रवृति बनी हती हैcre इससे तो पशु अच्छे हैं, जिन्हें कभी किसी से गिला शिकवा नहीं होता। बीज से ही वृक्ष बनता है, जैसा बीज होगा, वैसा ही वृक्ष होगा, हम प्रकृति के नियमों को बदल नहीं सकते।। जैसा आचार-विचार व्यवहार हम करेंगे, हमें उसी के अनुसार फल मिलता है।
यह शरीर किसका है? इस शरीर पर किसका अधिकार है- यह शरीर क्या पिता का है, माता का है या अपना स्वयं का है? 'पिता कहता है कि यह मुझसे उत्पन्न हुआ है, इसलिये इस शरीर पर मेरा अधिकार है।' 'मां कहती है कि' मेरे गर्भ से यह उत्पन्न हुआ है 'इसलिये यह मेरा है।' 'पत्नी कहती है कि' इसके लिए मैं अपने माता-पिता को छोड़कर आयी हूं, अतः इस पर मेरा अधिकार है। इससे मेरी शादी हुई है, मैं इसका आधा अंग बनी हूं, इसलिये यह मेरा है। ' 'अग्नि कहती है कि यदि शरीर पर माता-पिता, पत्नी का अधिकार होता तो प्राण जाने के बाद वे घर में ही क्यों नहीं खते के ब. इस शरीर को श्मसान पर लाकर लोग इसे मुझे अर्पण करते हैं, इसलिये पर मेरा अधिकार है। ' "
Par exemple Plus d'informations यह शरीर मेरा है।
Plus d'informations ना मालूम कितने लोग प्रतिदिन मरते हैं और कितने लोगों के धन का नित्य नाश होता हैं, पर हम किसी के लिये नहीं नहीं ोते किन्तु यदि अपने यहœuvre इसका कारण मोह ही है। हमारा एक मकान है, यदि कोई आदमी उसकी एक ईंट निकाल लेता है तो हमें बहुत बुरा लगता है। Plus d'informations अब उस मकान की एक-एक ईंट से सारा मोह निकलकर हमारी जेब में रखे हुए उस बैंक के चेक में आ गया।
Plus d'informations चिन्ता है उस कागज के चेक की। Plus d'informations अब भले ही बैंक के लिपिक उस कागज के चेक के टुकड़े को फाड़ डाले, हमें चिन्ता नहीं। Plus d'informations क्योंकि हमारे रूपये जमा हैं। इस पtenir भक्त तो सर्वस्व अपने प्रभु को अर्पण कर उनको अपना बना लेते हैं और स्वयं उनका बन जाते हैं। हैं. उसमें कहीं दूसरे के लिये मोह रहता ही नहीं, इसलिये वह शोकरहित हुआ। सर्वदा आनन्द में मग्न रहता है।
हम केवल सुख चाहते हैं, मगर हमारे सुख की परिभाषा केवल धन प्राप्ति है धन आ जाय सुखी हो जायेंगे।। है धन ज. परन्तु ऐसा नहीं है, धनवान भी घोर दुखी हैं हैं, धन के साथ जो व्यसन आ जाते हैं, उनसे हम यदा-कदा ही बच पाते हैं।।। उनसे हम यदा-कद. Plus d'informations सरल हृदय, अच्छा व्यवहार, सबका सत्कार, सीमित आवश्यकताएं, सात्विक आहार, परोपकार, समाज और देश प्रेम से हम मह.
aime ta mère
Shobha Shrimali
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