आप सब भी ऐसी ही स्थिति मे हैं। आपके अन्दर भी एक छोटा सा चेतना का झरना है और उसमें अगर चेतना प्रकट हो सकी है तोर्फf्फ इसीलिये कि वह कहीं न कहीं चेतन. एक तो बुद्धि है, जो विचार करती है, और एक हृदय है है, जो अनुभव करता है। हमारे अनुभव की ग्रंथि बंद रह गई खुली नहीं, गांठ बनी रह गई है। Plus d'informations इसीलिये प्रश्न उठता है-भगवान है या नहीं? लेकिन प्रश्न अगर जरा गलत हुआ तो उत्तर कभी सही नहीं हो हो पाएगा। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, भगवान कहां हैं? मैं उनसे पूछता हूं, भक्ति कहां है? Plus, plus, plus, plus लेकिन उनका प्रश्न विचारणीय है। वे कहते हैं, जब तक हमें भगवान का पता न हो, तब तक भक्ति कैसे करें? किसकी भक्ति करें ? कैसे करें ? किसके चरणों में झुकें? Plus d'informations, plus d'informations तभी हम झुक सकेंगे?
चूंकि भगवान की खोज उन्होंने गलत जिज्ञासा से की अब इस गलत जिज्ञासासा के कारण बहुत से गलत समाधान उठते हेंगे।।।. Plus d'informations आंख के उपचार के लिये सूरज की क्या जरूरत है? भक्ति के लिये सिर्फ तुम्हारे प्रेम के, भाव को बढ़ाने की जरूरत है, भगवान की कोई जरूरत नहीं है।। है है भगव. प्रेम को इतना बढ़ाओ कि अहंकार उसमें डूब जाये, लीन हो ज जाये। जहां प्रेम निरअहंकार को उपलब्ध हो जाता है, वहीं भक्ति बन जाता है। Plus d'informations भक्ति तो प्रेम का ऊर्ध्वगमन है। Plus d'informations प्रेम की बूंद को सागर बनाओ। Plus d'informations Plus d'informations कंजूसी न करो। अगर प्रेम में कृपण हो, तो प्रेम नहीं रहता और प्रेम अगर अकृपण हो, तो भक्ति, श्रद्धा आनन्द बन जाता है और जहां तुम्हारे अन्दर भक्ति, श्रद्धा, विश्वास अपने गुरू, अपने इष्ट व भगवान के प्रति जागृत हुआ वहीं तुम्हें पूर्णता प्राप्त हो जायेगी , et plus encore तुमसे कहा गया है बार-बार कि भगवान पर भरोसा करो ताकि भक्ति हो सके। Plus d'informations अब भक्ति की जिज्ञासा करें। और जिसने भक्ति की जिज्ञासा नहीं की, वह आया तो संसार में लेकिन संसार में्यर्थ ही जीवन गंवाया। जीया और जी नहीं पाया, उसकी जीवन कथा दुर्दिनों की कथा है और दुर्घटनाओं की। Plus d'informations, plus d'informations जो बिना श्रदtenir
श्री विवेकानंद ने कहा है जब मैं जागा तब मैंने जाना कि जीवन क्या है। Plus d'informations उसे भ्रांति से जीवन समझ बैठा था। जब आंख खुली तब पहचाना रोशनी क्या है। Plus d'informations जब हृदय खुला तो अमृत की पहचान हुई। एक राजा का दरबार लगा हुआ था। क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा खुली धूप में बैठा था। पूरी आम सभा सुबह की धूप में बैठी थी। महाराज के सिंहासन के सामने एक टेबल पर कोई कीमती चीज रखी थी।। Plus d'informations राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे। उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा, प्रवेश मिला तो उसने कहा मेरे पास दो वस्तुयें हैं, मैं हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी बात रखता हू कोई परख नहीं पाता सब हार जाते हैं और मैं विजेता बनकर घूम रहा हूँ अब आपके नगर में आया हूँ। राजा ने बुलाया और कहा क्या बात है तो उसने दोनों वस्तुयें टेबल पface Plus d'informations Plus d'informations
लेकिन रूप रंग सब एक है कोई आज तक परख नही पाया कि कौन सा हीरा है? और कौन सा काँच ? को परख कर बताये कि हीरा है या काँच। अगर परख खरी निकल गयी तो मैं हार जाऊगाँ और यह कीमती हीरा मैं आपके राज्य कीरी में जमा करवा दूंगा। यदि कोई नहीं पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी।। Plus d'informations राजा ने कहा मैं तो नहीं परख सकूंगा दीवान बोले हम भी हिम्मत नही .ve सब हारे, कोई हिम्मत नहीं जुटा पाया। हारने पर पैसे देने पड़ेगे इसका कोई सवाल नहीं, क्योंकि राजा के पास बहुत धन है राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी इसका सबको भय थ पxte कोई व्यक्ति पहचान नहीं पाया, आखिरकार पीछे थोड़ी हलचल हुई एक अंधा आदमी हाथ में लाठी लेकर उठा उसने कहा मुझें महाराज के लाठी लेक.
Plus d'informations राजा ने कहा ठीक है ! तो उस अंधे आदमी को दोनो चीजे छुआ दी गयी और पूछा गया इसमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच यही परखना है। Plus d'informations जो आदमी इतने राज्यों को जीतकर आया था, वह नतमस्तक हो गया और बोला सही है। Plus d'informations अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी में दे रहा हूँ। सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कोई कोई तो मिला परखने वाला। वह राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे पहचान.
उस अंधे ने कहा कि सीधी सी बात है मालिक, धूप में हम सब बैठे बैठे है। Plus d'informations अंधा आदमी पत्थर को हीरा समझे ले, आश्चर्य क्या? अंधे को परख भी कैसे हो, पत्थर की और हीरे की? अंधे के लिये दोनों पत्थर हैं। आंख फर्क लाती है। आंख में जौहरी छिपा है। तो खयाल रखना, अगर भक्ति की जिज्ञासा नहीं उठी है तो समझना कि अभी तुम जन्मे ही नहीं। अभी तुम गर्भ में ही पड़े हो। अभी तुम बीज ही हो। अभी अंकुरण नहीं हुआ। अभी जीवन की जो परम संपदा है, उसकी भनक भी तुम्हारे कानों में नहीं पड़ी।
Plus d'informations Tout ce que vous voulez हालांकि दर्पण में जो दिखाई पड़ता है वह प्रतिबिंब ही है, असली सूरज नहीं। प्रतिबिंब तो प्रतिबिंब ही है, असली कैसे होगा? वह असली का धोखा है। वह असली की छायाँ है। इसलिये सूरज को देखने के दो ढंग हैं, यह कहना भी शायद ठीक नहीं, ढंग तो एक ही है-सीधा देखना। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations छाया मात्र है। Plus d'informations Plus d'informations लेकिन लोगों ने शास्त्र को सिर पर रख लिये हैं कोई गीता, कोई कुरान, कोई बाइबिल लोग शास्त्रों की पूजा में लगे हैं।। श. यह दर्पण की पूजा चल रहीं हैं। सूरज को तो भूल ही गयें। और दर्पणों पर इतने फूल चढ़ा दिये हैं कि अब उनमें प्रतिबिंब भी नहीं बनत. उन पर व्याख Joh
Plus d'informations Plus d'informations विवेकानंद भी पहले भक्त हो चुके थे, ज्ञानी हो चुके थे शास्त्र निर्मित हो चुके थे। विवेकानंद ने नहीं कहा कि चलो अब शास्त्रों में चलें और सत्य को खोजें खोजें चलों अब शास्त्र में चलें. Plus d'informations, plus d'informations भगवान मिलेगा तो वहीं मिलेगा शब्दों में नहीं, अपने अनुभव में मिलेगा। Plus d'informations और अगर तुम्हें वृक्षों में उसकी झलक नहीं दिखाई पड़ती तो तुम्हें शास्त्रों में उसकी झलक कभी भी दिखाई नहीं पड़ेगी पड़ेगी। में उसकी झलक भी दिख. Plus d'informations
इसलिये विवेकानंद जैसे ज्ञानी ने कहा है कि सत्य कहा नही जा सकता। और कहने से ही झूठ हो जाता है। क्योंकि शब्द की चौखट बड़ी छोटी है, सत्य का विस्तार अनंत है है। क्षुद्र शब्द के भीतर समाने की कोशिश में ही सत्य जड़ हो जाता है। बड़ी पुरानी कथा हैं कबीर के एक गीत में प्रेमी ने प्रेमिका के द्वार पर दस्तक दी आधी र face? प्रेमी ने कहा मैं हूं तेरा प्रेमी। मेरी ध्वनि नहीं पहचानी ? मेरी आवाज नहीं पहचानी ? भीतर सन्नाटा हो गया। कोई उत्तर न आया। प्रेमी बेचैन हुआ। उसने कहा, क्या कारण है ? द्वार क्यों नहीं खुलता? Plus d'informations Tous les deux Plus d'informations
प्रेमी वापस चला गया। कई दिवस आये गये, ऋतुयें आयी गयी, बड़ी साधना की उसने बड़ा अपने को निख निखारा। शुद्ध किया, आग से गुजरा, कंचन हो गया, एक रात पूर्णिमा को उसने प्रेमिका के द्वार पर दस्तक दी, वहीं सवाल, कौन हो? प्रेमी ने कहा, तू ही है। कबीर कहता है, द्वार खुल गये। भक्त कह दे परमात्मा से कि बस तू ही है यात्र पूरी हो गयी लेकिन अगर थोड़ा गौर से देखोगे तो जब तक तू क का भाव है तब तक मैं का भाव मिट नहीं सकता। तब तक मैं क. क्योंकि तू का अर्थ ही अगर मैं नहीं? तू में सारा अर्थ ही मैं के कारण है तू के पहले मैं है और जब प्रेमी ने कहा तू ही है और तब भीतर तो वह जानता है कि मैं कहरह. मैं ही तो तू कहेगा, तो तू भी कौन कहेगा ?
Plus d'informations लेकिन मैं थोड़ी देर और बंद रखना चाहूंगा अगर कबीर मुझे मिल जाये तो मैं कहूंगा कविता को थोड़ा और चलने दो कहलाओं प्रेमिका से कि कि जब औœuvre Plus d'informations, plus d'informations अशुद्धि गई, शुद्धि बची, पाप गया, पुण्य बचा उसे जाने दो और तब मैं कहता हूं, प्रेमी को आने की जरूरत नहीं प्रेमिका ही आएगी आने की कीरूरत नहीं, प्रेमिका ही आएगी। तब उसे वापस दोबारा लाने की जरूरत नहीं दरवाजा खटखटाने के लिये दो दफा काफी खटखटा चुका अब प्रेमी नहीं लौटेगा। तब प्रेमी जहां होगा, मगन होगा। अब प्रेमिका ही उसे खोजती हुई आयेगी प्रेमिका ही उसे आकर आलिंगन कर लेगी।
जिस दिन भक्त बिलकुल मिट जाता है। भगवान आता ही है। और मैं तुमसे कहता हूं, कि भक्त कैसे भगवान तक पहुंच सकता है? Plus d'informations पता भी लिखोगे तो कहां ? जाओगे तो कहां? तुम उसे खोजोगे कैसे ? वह मिल भी जाये तो पहचान कैसे होगी ? क्योंकि पहले तो कभी जाना नहीं। Plus d'informations जैसे बूंद सागर में खो जाये। Plus d'informations तुम मिटे कि परमात्मा आया। Plus d'informations तू का क्या अर्थ है, अगर मैं नहीं? मैं का क्या अर्थ है, अगर तू नही?
Plus d'informations, plus d'informations न वहां कोई मैं है, न वहां कोई तू है। हमने तो एक को बस, एक ही तरह जाना। Plus d'informations वह नर्क में है। दो यानी नर्क, एक यानी स्वर्ग। Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations सीमा नर्क है। बंधे हुये अनुभव होना पीड़ा है। सब तरफ से दबे होना दुःख है। कुछ बचा है पाने को। जब तक सब कुछ न पा लिया गया हो। कुछ भी न बचे बाहर। Plus d'informations Plus d'informations स्वामी राम चरण दास कहा करते थे कि मैंने ही चँाद-तारे बनाये। वह मैं ही था। जिसने चांद-तारों को पहले छुआ ऊंगली से और जीवन दिया और गति दी और चांद-तारे मुझमें ही घूमते हैं।। तो लोग समझते थे कि पागल है। Plus d'informations बात ही पागलपन की लगती है।
जब स्वामी राम चरण दास अमेरिका गये और उन्होंने ये ही बातें वहां कही-तो वहां के लोगों ने उन्हें पागल कहा सcre Plus d'informations बातें हजारों साल से पागलों को सुनते-सुनते जो पागल नहीं हैं, वे भी कम से उनकी उनकी भाषा से परिचित हो गये।। कम उनकी भ. मानते है कि सधुक्कड़ी भाषा है। अपनी नहीं, साधुओं की है। कुछ सिरफिरे लोगों की है। Plus d'informations Plus d'informations मगर हमने इतने दिनों से सुनी है और हमने इतने मस्त पुरूष देखे हैं कि हम नासमझी में भी चाहे स Joh
इसलिये हमारे ऋषियों ने कहा है कि जब भक्त अपना सब कुछ छोड़ देत. Plus d'informations जिसने यहां गिराया अपना अभिमान, जब बूंद समुद्र में डूब गई वह सब के भीतर सब के प्राण उसके ही प्राण हो गया। रामकृष्ण परमहंस को मरने से पहले गले का कैंसर हो गया, तो बड़ा कष्ट था। Plus d'informations गले से कोई भी चीज खाने में बड़ा कष्ट था, तो विवेकानंद ने एक दिन रामकृष्ण को कहा कि इतनी पीड़ा शरीर को हो रहीं हैं।। आप जरा माँ को क्यों नहीं कह देते? जगत् जननी को जरा कह दो। तुम्हारी वह सदा से सुनती रहीं हैं। इतना ही कह दो, कि गले को इतना कष्ट क्यों दे रही हो? रामकृष्ण ने कहा, तु कहता है तो कह दूंगा मुझे ख्याल ही न आय आया।
Plus d'informations कब तक इसी कंठ से बंधा रहेगा ? सभी कंठों से भोजन कर तो रामकृष्ण ने कहा, यह कंठ अवरूद्ध ही इसलिये हुआ था कि सभी कंठ मेरे हो जायें। Plus d'informations एक कंठ अवरूद्ध होता है, तो सभी कंठों के द्वार खुल जाते हैं। यहां एक अस्मिता बुझती है और सारे अस्तित्व की अस्मिता, सारे अस्तित्व का मैं भाव वही तो परमात्मा है।। मैं. Plus d'informations Plus d'informations सब धर्म छोड़ कर तू मेरी शरण में आ जा यह कौन बोला हा हा ? यह कौन है मेरी शरण में ? यह कोई कृष्ण नहीं है, जो सामने खड़े हैं। Plus d'informations क्योंकि तुम्हारा मैं बाधा है क्योंकि उसके कारण तुम सारे अस्तित्व के मैं के साथ एकता नहीं साध पाओगे। मैं के स.
रवींद्रनाथ ने अपना एक संस्मरण लिखा, जो मुझे बड़ा ही प्रीतिकर लगा। Plus d'informations Plus d'informations बड़ी टिमटिमाती रोशनी थी। छोटा सा दिया था। Tous les autres Plus d'informations उसकी मंदी सी रोशनी सारे कक्ष को रोशनी से मंदा कर रही थीं वह आधी रात तक पढ़ते-पढ़ते थक गये।। Plus d'informations Plus d'informations यह एक अनूठी सी घटना थी। उन्होंने सोचा भी न था ऐसा होगा। अभी तक पीला सा प्रकाश भरा था कमरे में। दीये को बुझाते ही द्वार से, खिड़कियों से, रंध्र-nég ंध्र से चांद भीतर आ गया और नाचने लगे रवींद्रनाथ।।.
उस रात उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, मैं भी कैसा पागल हूं! पूरा चांद बाहर खड़ा था अनूठी सुंदर रात बाहर प्रतीक्षा कर रही है। चांद द्वार पर खड़ा है, खिड़की पर खड़ा है, रंध्र-suरंध्र के पास खड़ा रह देखता है कब बुझाओगे भीतर का दीया, कि मैंर आ कब जाओगे। कर का दीया, कि मैंर आ ज .cre और छोटा सा दीया बाधा बना है और उसकी वजह से भीतर मंदा प्रकाश भरा है जिसमें आंखें थकती हैं, शीतल नहीं होतीं।।।।। है जिसमें आंखें हैं, शीतल नहीं होतीं।। Plus d'informations भीतर जगह खाली हो गई। शून्य हो गई। चाँद आ गया नाचता हुआ। रवींद्रनाथ ने कहा, उस दिन मेरे मन में एक द्वार खुल गया, कि जब तक मेरे भीतर अहंकार का दीया जल tiéहा है, तब तकर अहंकार का दीया ोशनी हाहर ही खड़ी तकरम.। .Cre जिस दिन यह दीया मैं फूंक मार कर बूझा दूंगा, उसी दिन बह नाचता भीतर आ जायेगा। फिर नाच ही नाच आनन्द ही आनन्द फिर इस उत्सव का कोई अंत नहीं होता।
जिन्होंने दो कहा, वे नर्क में है। कबीर का यह वचन एक बहुत प्रसिद्ध वचन है, जिसमें उन्होंने कहा है- दूसरे की मौजूदगी नरक है।। कह. तो क्या करें ? क्या अकेले में भाग जायें? एकांत में हो जायें, जहां दूसरा न हो? न पत्नी हो, न पति हो, न बेटा हो। बहुतों ने यह प्रयोग किया है। Plus d'informations क्योंकि दूसरा नरक है। लेकिन तुम भाग कर भी अकेले नहो पाओगे। Plus d'informations Plus d'informations और ध्यान रखो, जहां मैं हूं, वहां तू है। वह सिक्का इक्टठा है। तुम आधा-आधा छोड़ नहीं सकते। Plus d'informations जल्दी ही तुम अपने को ही दो हिस्सों में बांट कर चर्चा करने लगोगे।
Plus d'informations मैं और तू दोनों हो गये। अकेले में लोग ताश खेलने लगते हैं। Plus d'informations Plus d'informations इतना ही नहीं, उस तरफ से भी धोखा देते हैं, इस तरफ से भी धोखा देते है किसको धोखा दे रहे हो? Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations तुम जहां जाओगे, तुम भीड़ में रहोगे। तुम अकेले नहीं हो सकते। हिमालय का एकांत शून्य नहीं बनेगा। अकेलापन रहेगा ही। और अकेलेपन और एकांत में बड़ा फर्क है। अकेलेपन का अर्थ है, लोनलीनेस और एकांत का अर्थ है अलोननेस, अकेलेपना का अर्थ है, किरे की चाह मौजूद है। दूसरे की वासना मौजूद है। तूम चाहते हो कोई आ जायें। तुम अपनी हिमालय की गुफा के बाहर बैठकर भी रास्ते पर नजर लगाये रखोगे कि शायद कोई यात्री मानसरोवर जाता गुजर जाये। शायद कोई मनुष्य थोड़ी खबर ले आये नीचे के मैदानों की, कि क्या हुआ? Est-ce que vous avez besoin d'aide ? शायद कोई अखबार का एक टुकड़ा ही ले आये और तुम वेद वचनों की तरह अखबार को पढ़ लो लो मन तुम्हारा नीचे ही भटकता रहेगा मैदानों में, जहां भीड़ है।।
रामकृष्ण एक बार बैठे थे मंदिर के बाहर दक्षिणेश्वर में तो देख. अब चील कितने ही ऊपर उड़े, नजर तो उसकी नीचे कचरे-घर में लगी रहती है। जहां मरे चूहे पड़े हो, मांस का टुकड़ा पड़ा हो, फेंकी गई मछली पड़ी हो।। आकाश में नजर तो घूरे पर लग रहती है। तुम हिमालय पर बैठ जाओ। कोई फर्क नहीं पड़ेगा। नजर घूरे पर लगी रहेगी दिल्ली में एक पहाड़ हो जिस पर घूर पड़ा है। उस पहाड़ के आसपास और भी बहुत सुन्दर चीजे है पर लोगों की नजर उस घूर के पहाड़ पर ही जाती है।।।. Plus d'informations तुम अपने को तो साथ ही ले जाओगे। Plus d'informations
रामकृष्ण ने देखा कि वह चील उड़ रही है चूहे को लेकर और बहुत सी चीलें उस पर झपटृा मार रही है।। कौवे दौड़ गये है। बड़ा उत्पात मच गया है आकाश में। वह चील बचने की कोशिश कर रही है। लेकिन और गिद्ध आ गये हैं और सब तरफ से उसको टोचे जा रहे है वह भागती है, बचना चाहती है। उसके पैरों पर लहू आ गया है। तब क्रोध की अवस्था में वह भी किसी गिद्ध पर झपटी औ__° मुंह से चूह. Plus d'informations कोई वे चील के पीछे पड़े नहीं थे। Plus d'informations जैसे ही चूहा छूटा वे सब चले गये। अब वह थकी चील वृक्ष पर बैठ गई। Plus d'informations चूहा सारी भीड़ को ले आया था।
तुम्हारे मैं में तुम हिमालय चले जाओंगे, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सब भीड़ आ जायेगी। तुम्हारा मैं भीड़ को खींचता है। तुम मैं, को छोड़ दो बाजार में बैठे रहो, वहीं हिमालय हो जायेगा। तुम्हारी दूकान तुम्हारी गुफा हो जायेगी तुम्हारा दफ्रतर तुम्हारा मंदिर हो जायेगा। मैं का चूहा भर छूट जाये। फिर कोई चील हमला नहीं करती फिर कोई गिद्ध तुम पर आकर हमला नहीं करता। तुमसे किसी का कुछ लेना-देना नहीं है। Plus d'informations तुम्हें कभी किसी ने धक्का नहीं मारा? Plus d'informations तुम्हारे मैं को नीचा दिखाया गया है? किसी ने कभी तुम्हारी स्तुति की ? Plus d'informations जैसे ही मैं गया सारी भीड़ गिर जाती है निंदाकों की, स्तुति करने वालों की, मित्रों की, शत्रुओं की, अपनो की, परायों की द opér. शास्त्र कह रहा है-दूसरा नर्क है लेकिन अगर बहुत गौर से सोचो और थोड़ा गहरे जाओ तो दूसरा इसीलिये है, कि तुम हो।। द गो इज द हेल। गहरे पर विश्लेषण करने पर तो पता चलेगा कि दूसरा तो तुम्हारे कारण है। इसलिये दूसरे को क्या नर्क कहना। वह नर्क मालूम पड़ता है। वस्तुतः मैं ही नर्क है। अहंकार ही नर्क है।
Plus d'informations एक ही पानी है, चाहे गंगा में, चाहे तुम्हारे घर रखें गंगोदक में। और चाहे छोटे से मिटृी के दीये में और चाहे महासूर्यों में एक ही ज्योति है। इस एक को पहचानो। इस एक को जीओ। इस एक में रमों। एक को ही गुनो। इस एक को ही साधो। इस एक को ही ध्यान बनाओ।
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations नाम का भेद है। मूल का तो जरा भी भेद नहीं है। अस्तित्व का तो जरा भी भेद नहीं है। कोई स्त्री है, कोई पुरूष है। भीतर सब एक है। कोई गोरा है, कोई काला। कोई हिंदू है, कोई तुर्क है। कबीर कहा रहा है कि लकड़ी को रगड़ने से अग्नि पैदा की जाती है। वही एक उपाय था। लकड़ी में अग्नि छिपी है। काष्ठ में अग्नि छिपी है। जब बढ़ई काटता है लकड़ी को तो लकड़ी ही कटती है, अग्नि नहीं कटती है है। Plus d'informations Plus d'informations अग्नि नहीं कटती। जब बीमारी तुम्हें पकड़ती है, तो लकड़ी को ही पकड़ती है, अग्नि को नहीं पकड़ती पकड़ती।
जब जवान बूढ़ा होता है तो लकड़ी ही बूढ़ी होती है, अग्नि बूढ़ी नहीं होती होती। कबीर यह कह रहे है। ऐसे ही तुममें कहां वह एक छिपा है। चाहे तुम्हें पता न हो। क्योंकि तुमने रगड़ा ही नहीं कभी और जिन्होंने रगड़ा अपने आप को उन्होंने जाना। Plus d'informations जिन्होंने भीतर के रूप को बाहर प्रकट कर के देखा, उन्होंने जाना। उन्होंने भीतर की अग्नि को पहचान लिया और तब वे जानते है, कि सभी लकडि़यों मे एक ही अग्नि छिपी है है। लकड़ी के रूप अलग-अलग होंगे। आग का रंग-ढंग एक। आग का स्वभाव गुण एक। Plus d'informations Plus d'informations
इसलिये तो कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हैं, '' ना हन्यते हन्यमाने शरीरे '' शरीर कटेगा फिर भी वह नहीं नहीं कटता। नैनं छिदंति शस्त्रणि नैनं दहति पiner शरीर ही कटेगा, मैं नहीं कटता हूं। तू भी नहीं कटेगा शरीर ही कटेगा। ये जो युद्ध के मैदान में आकर खड़े हो गये लोग हैं हैं, इनकी काष्ठ की देह कटेगी अग्नि नहीं कटती।।।।।।।।।।
और जब तुम्हें यह दिख गया कि भीतर की ज्योति अखंड है, भीतर के प्राण शाश्वत सनातन हैं। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations अहंकार को गलना पड़ता है। Plus d'informations तब उस परमात्मा से एकाकार होता है। तब अन्दर छिपी अखंड ज्योति स्वरूप वह अग्नि प्रज्वलित होती यह तभी सम्भव है जब हम अपने अन्दर के मैं को मार डाले और अपने अन्दर अपने ईष्ट, गुरू व उस परमात्मा के प्रति श्रद्धा, विश्वास भक्ति को जाये जिससे तुम्हारा जीवन अजस्त्र अखंड गंगा की तरह निर्मल होकर बहता रहे।
Sa Sainteté le Sadhgurudev
M. Kailash Shrimali
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