किसी ने उसकी बात नहीं मानी। लोग अपने काम में लगे रहे। तो विकास ने स्वयं से कहा ऐसा मालूम होता है, इन तक अभी खबर पहुंची नहीं है। लेकिन यह कैसे हो सकता है, कहीं इन्होंने ही तो उसकी हत्या नहीं की है? और इन तक ही उसकी खबर नहीं पहुंची है। Plus d'informations Plus d'informations उसने मंदिरों के द्वारों पर दस्तक दी, पुजारियों को हिलाया और कहा कि, सुनो किसकी पूजा कर रहे हो? वह मर चुका है। पुजारियों ने कहा बाहर
Plus d'informations तब विकास ने कहा हद हो गई! तुम्हीं ने तो उसकी गर्दन दबायी और तुम्हीं को उसका पता नहीं है? खूब भोले बने बैठे हो ! मलूक दास जी ने कहा था कि- राम द्वारे जो मरे, बहुरि न मरना होय। राम के दरवाजे पर जो मर जाना सीख जाता है, फिर उसकी मृत्यु नहीं होती है। जैसे उसने अमृत का पान कर लिया हो, राम की शरण में जाने पर मृत्यु का भाव नहीं साथ ही जीवन में न्यूनता नहीं रहती है।
तुम्हारी हालत उल्टी है, तुम्हारे द्वार पर राम मरे पडे़ है। तुम कितना ही tiérés तुम्हारी सारी प्रारorationथनायें है, लड़का पैदा हो जाये, धन मिल जाये, नौकरी बड़ी हो जाये। Plus d'informations तुम उसकी हत्या कर रहे हो। तुम पूछते फिरते हो, ईश्वर कहां है और तुमने ही उसे मार डाला है-दरवाजे पर ही। अहंकार ईश्वर की हत्या है, क्योंकि अहंकार यह कह रहा है कि मैं हूं-तू नहीं और अगर तू भी है तो मेरे लिये है।।. Plus d'informations राम द्वारे जो मरै, बहुरि न मरना होय।
अहंकारहीन का अर्थ है-शून्यता- कि मैं अपने को छोड़ता हूं अर्थात मैं सब कुछ अपने परमात्मा पर छोड़ता हूं जो कुछ भी जीवन मेंœuvre जब यह भाव सांसारिक व्यक्ति में आ जाता है तब भक्त और भगवान एक हो जाते है क्योंकि सृष्टि कीरी एकœuvre इसीलिये सर्व वtenir एक बार संत भिक्षा मांगने के लिये एक घर के सामने खड़े हुये और उन्होंने आवाज लगायी! '' जय जय रघुवीर समर्थ!'' घर से महिला बाहर आयी। उसने उसकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा, महात्माजी, कोई उपदेश उपदेश! महात्माजी ने कहा कल दूंगा उपदेश।
दूसरे दिन स Joh वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामीजी ने अपना कमंडल आगे कर दिया, वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल मेंर और कूड़ा भरा पड़ा है।। में .ve उसके हाथ ठिठक गये। वह बोली, महाराज यह कमंडल तो गन्दा है।
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न? स्त्री ने कहा, जी महाराज ! Plus d'informations मन में जब तक चिनtenir यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिये, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिये तभी्चे सुखœuvre
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus, plus et plus रों में शुद्धता Plus d'informations ात करते हुये श्रेष्ठमय बन सकेंगे। Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations इक्कठी हो जायेगी।
तात्पर्य यही है कि आलोचना, ईर्ष्या, दूषितता व विषमता रूपी बुरे संस्कारों से जीवन में सुख और आनन्द की प्राप्ति नहीं होती, नित्य प्रतिदिन उक्त तरह की कुत्सितता रूपी क्रियाओ व भावना से निरन्तर अर्नगल संस्कारो की वृद्धि होती रहती है उसी के फलस्वरूप हम मलिनमय जीवन व्यतीत करते रहते है। यदि जीवन में श्रेषtenir जिस तरह से कोई भी अच्छी-बुरी आदत तब बनती है जब हम निरनtenir अतः कुस्थितियो को निकालने के लिये यदि हम पच्चीस दिन तक अभ्यास करे तो वह कुस्थिति जीवन भर के लिये समाप्त. ठीक उसी तरह उपदेश, भजन, मंत्र को भी जीवन में उतारने के लिये मात्र पच्चीस दिन तक अभ्यास करना होगा तब हमेxte
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