भगवान श्रीराम अपार गुणों के धनी हैं हैं विष्णु स्वरूप नारायण अवतार भगवान श्रीराम वीर्यवान्, आजानु लम्बित ब्रीराम वीर्यवान्, आजानु्बितf.
वे धर्म निष्ठा, सत्य वाचक और लोक कल्याणकारी भावों से युक्त हैं। श्री__tié l'air वे समुद्र की भांति गम्भीर, हिमालय के समiner वाल्मीकी जी ने मानव के लिये जिन आदर्शों को निरूपित किया है, वे सभी गुण श्रीराम के्यक्तित्व्व पुंज ूप में समाहितराम के व्यक्तित्व पुंज ूप में समाहित हैं।।.
श्री राम का व्यक्तित्व आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श मित्र एवंर्श रnationज.
भगवान श्री राम का जीवन सर्वथा अनुकरणीय एवं सदाचार से समन्वित है, वेद विहित आचरण ही उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के. उनका सम्पूर्ण जीवन मानवीय मूल्यों के लिये समर्पित रहा है।।
श्री राम के द्वारा स्थापित आदर्शो, गुणों में माता सीता का विशेष योगदान है, अथवा यह कहना भी्य है कि सभी कœuvre जीवन की पtenir T पीड़ा, दुख सहने के्चात् भी अपने स्वामी से आत्मिक भाव से जुड़ी ही ही।। कठोर समय में भी उनका चिन्तन, विचार, श्रद्धा, विश्वास तनिक भी विचलित नहीं हुआ हुआ।
अशोक वाटिका के असहनीय पीड़ा में भी वे प्रत्येक क्षण राम नाम की ही रट लगाती रही। रावण के अनेक प्रलोभन, भयभीत करना जैसे उपाय भी उन्हें जरा सा भी डग-मग नहीं कर सके। उनके विराट व्यकtenir केवल उनके जीवन चरित्र को पठन-पाठन के रूप में नहीं ग्रहण करना चाहिये, उनके आदर्श वर्यादित जीवन के सुगुणों को हमारे व्यावहारिक जीवन में आत्मसातात. वास्तव में यदि उनके द्वारा स्थापित नियम और आदर्शों को हम अपने जीवन में जगह दें दें आत्मसात करे तो जिस र जीवन मेंœuvre
आज प्रत्येक भारतीय परिवार में अनेकों विकट परिस Joh व्यक्ति इतना अधिक स्वार्थी हो गया है कि वह अपने सिवाय किसी और के बारे में सोच भी नहीं पात. पति-पत्नी के मध्य राम-सीता के जैसा कोई भाव, विचार, सिद्धान्त मुश्किल से ही देखने को मिलते हैं और नहीं रlanम भरत जैस. पहले के समय में जहां माता-पिता की आज्ञा सर्वोपरि मानी जाती थी थी वहीं आज के युग में अनेक माता-पिता वृद्धाश्रम मे हीं अनेक माता पित को वृद्धाश्रम मे हीं हनcre पड़ता हैं। वृद. युवा वर्ग में माता-पिता का सम्मान या सेवा का भाव समाप्त सा हो गया हैं। अर्थात् माता-पिता के उपकार को वर्तमान सन्तान पूरी तरह नकारने कीर बढ़ बढ़ रही है।।।।.
अतः पारिवारिक, सामाजिक सौहार्द व आपसी पtenir जैसे श्री राम ने अपने जीवन में विजय पूर्ण स्थितियां प्राप्त की उसी तरह हम भी जीवन की रlanवण ूपीlanवण बाधाओं.
T Plus d'informations सीता ने भी वचन दिया कि हर सुख और दुःख में वे उनके साथ रहेंगी। राम और सीता ने पहली बातचीत में भरोसे और समर्पण की प्रतिज्ञा ली थी। समर्पण राम का था तो सीता भी प्रत्येक कदम पर सहयोगी रहीं और यही कारण tiéहा कि इन दोनों के मध्य कभी Dieu व्तिगत erci Plus d'informations
वर्तमान में सर्वाधिक रिश्ते व्यक्तिगत रूचि और अहंकार के कारण ही खण्डित होते हैं।। रिश्तों में समर्पण की भावना समाप्त सी हो गई हैं, और यदि हम वैवाहिक जीवन के मूल तत्व समर्पण व भरोसे को पुनः जीवन्त बना लें, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से परे हटकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करें, तो हमारा गृहस्थ जीवन राम-सीता की तरह सपफ़ल -सुखद और शांतिदायक हो सकता है।
वर्तमान में बहुत सी स्त्रियां ऐसी मिल जiner सास, बहू और बेटे के बीच मतभेद और कलह-क्लेश प्रतिदिन होते रहते हैं। इन सभी का कारण अधिकार और कर्तव्य निर्वाह मुख्य रूप से होता है, सभी लोग अपने-अपने अधिकार की बाते करते हैं, परन्तु कर्तव्य निर्वाह की ओर कम ही ध्यान जाता है, ये बाते पति-पत्नी, सास सभी पर समान रूप से लागू होती है। यदि किसी में भी कर्तवtenir अधिकारों को प्राप्त करने के लिये किसी संघर्ष की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिये अनिवार्यता केवल इतनी ही है कि आप अपने कर्तव्य का निर्वाह निष्ठा पूर्वक करें।
रामचरितमानस के इस प्रसंग से स्पष्ट उल्लेखित है कि पति-पत्नी के मध्य ठीक इसी प्रकार की समझ होनी च. दोनों के बीच ताल-मेल बहुत महत्वपूर्ण है, यह एक ऐसा तथ्य है जो सम्पूर्ण गृहस्थ जीवन को एक अलग ही आनन्द युक्त क्थ जीवन को अलग ही आनन्द युक्त करता है। अलग ही. वैवाहिक जीवन में दोनों की आपसी समझ जितनी मजबूत होगी, गृहस्थ जीवन उतना ही मधुर आनन्ददायक होगा।
राम सीता के गृहस्थ जीवन में ऐसे कई तत्व हैं हैं जिसे सभी अपने अपने दाम्पत्य जीवन में सम्मिलित करना चाहिये, जिससे आपका गृहस्थ जीवन भी्मिलित कœuvre सुख-शांतिमय व्यतीत कर सकेंगे।
भगवान श्री राम के जन्म और कर्म दोनों वiner हिन्दु नववर्ष के पtenir ताकि बाधायें समाप्त हो सके, और गृहस्थ जीवन आनन्दमय बन सके।। शारदीय नवरात्रि, विजया दशमी में साधना सम्पन्न करते है, जिससे कि जीवन में र œuvre
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्षीय विवाह पंचमी जो कि प्रभु श्रीराम-सीता जी के परिणय पर्व है। इन पुरूषोत्तममय शक्ति दिवसों में सiner
जिससे गृहस्थ जीवन के असत्य, अधर्म, शत्रु, रोग, छल, विश्वासघात, गरीबी, आसुरी शक्तियों के युद्ध. धक गृहस्थ के सभी रसो से सरोबार हो सकेगा और जीवन में निश्चिंततार और श्रेष्ठता प्राप्त हो सकेगी।
Plus d'informations Plus d'informations, plus d'informations Plus d'informations सीता को माना गया है। Plus d'informations े ओत-प्रोत है। प्रेम जीवन का आधारभूत सत्य है।
साधक किसी भी शनिवार को पूर्व की ओर मुख करके पूजा स्थान में बैठ जाये। गुरू और गणपति पूजन कर। एक ताम्faceère इसके पशtenir
Plus d'informations पवित्र जलाशय में विसर्जित करें।
बल, बुद्धि, पराक्रमी, संकटो का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले भगवान श्रीराम महावीरमय हैं। मन के साथ-साथ शरीर भी ऐसा तेजस्वी, बलवान और निरोगी हो व आत्मविश्वास से्त शक्ति का सौन्दर्य. वही पूर्ण सफ़ल होता हैं।
साधक किसी भी रविवार को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन पर प्राerciतः काल किसी पात्र में्लीं यंत्रœuvrepen को__ère इसके बाद महiner
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सौभाग्य के क्षण जीवन में बहुत कम आते हैं, और जो व्यक्ति इन महत्वपूर्ण क्षणों को पकड़ ले तो अपने जीवन दिश्वपूर्ण क्षणों को पकड़ तो अपने अपने की दिश. जीवन के अभिशाप दुर्भाग्य समाप्ति हेतु कiner
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षोडश कला पूर्ण का तात्पर्य है कि व्यकtenir वही धैर्य, सहनशीलता, वीरता, प्रेम, सम्मोहन, नीति, मर्यादा, आचरण, शीत चरित्र साधक के जीवन में भी्थापित होरित्र साधक के जीवन opé.
Plus d'informations Plus d'informations Plus d'informations संक्षिप्त पूजन करें। jusqu'à 5 ans jusqu'à 7 ans तक षोडश माला से सम्पन्न करें-
Plus d'informations पवित्र जलाशय में विसर्जित करें।
मार्गशीर्ष मास जो कि पुरूषोत्तम साधनात्मक मास कहा जाता है साथ ही इसी मास में भगवान श्रीराम व सीता माता का परिणय पर्व उत्सव रूप में सम्पन्न करते है अतः उक्त सभी साधनायें इन्हीं पर्व स्वरूप दिवसों में सम्पन्न करने से जीवन की असुर राक्षसीमय रावणरूपी विषमतायें समाप्त हो सकेगी ।
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