मानव हर जन्म में विभिन्न रूप, विभिन्न धर्म, विभिन्न समाज में जन्म लेते है, हर बार नया परिवार, नये दायित्व के साथ परन्तु एक दायित्व एक रिश्ता जन्म जन्मांतर तक चलता है वह है गुरू-शिष्य का रिश्ता, यह मन का एक ऐसा जुड़ाव है जो छुडायें नहीं छूटता-साधक चाहे कितना भी स्वयं की विफलताओं के लिये कितना भी गुरू को्यो न कोसे परन्तु गुरू सदैव Nonू.. साधक को यह समझना चाहिये कि गुरू उन्हें कष्टों से बचाने के लिये नहीं अपितु उनका सामना करने के लिये प्रेœuvre करते है।।. इस संसार में हर पल हर क्षण समस्याये किसी न किसी रूप में आती हेगी रहेगी। हम बच्चों को परीक्षा के भय से स्कूल नहीं छुड़iner Plus d'informations वह साधकों के समस्त कष्ट को, समस्त पापों को अपने ऊपर लेते है।। क्योंकि माता-पिता तो मात्र जन्म देते है पर गुरू उस जन्म को दिशा, ओज, अर्थ देते हैं अपने अपने साधक के को अपने अपने तपोबल, अपनी साधना से सरते जीवन को अपने तपोबल तपोबल, अपनी साधना से करते है। अपने अपने तपोबल, अपनी साधना से करते है।। अपने तपोबल, अपनी साधना से करते है।। अपने तपोबल तपोबल, अपनी साधना से करते है है। अपने तपोबल, अपनी साधना से करते है है। अपने तपोबल, अपनी साधना से करते है है। अपने तपोबल तपोबल, अपनी साधना से क.
यह एक साधक का शिष्य का दायित्व है कि वह अपने गुरू की चेतना, अपने Dieu नहीं होने दे। गुरू पूर्णिमा के इस दिवस पर आप अपने लिये, अपनी आत्मा के लिये, अपने जीवन के्ञान के लिये अपने अपने जीवन केर उस क्षण के.
इस हेतु अपने दिन के कुछ क्षण विधिवत गुरू पूजन के लिये निकाल कर पूर्ण वैदिक मंत्रों से, सभी देवी-देवताओं का आवाह्न्न्न्ोंtié अपने. जब एक साधक पूर्ण रूप से गुरू को अपने मन में, अपने प्राण में समा सके तभी वह जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थिति्थिति का सामना धैर्य सेर विषम परिस्थिति का स.
इस हेतु प्रत्येक साधक को इस गुरू पूर्णिमा 24 जुलाई को गुरू आत Joh जिससे गुरू शिष्य का आत्मीय जुड़ाव व अपने गुरू के प्रति साधक का जुड़ाव अटूट हो सके।
le vôtre
Vineet Shrimali
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