हजारों साल से यह सूत्र आदमी को पता है और इन हजारों सालों में सभी लोगों ने कभी कृष्ण के पास ग्वालों के लोगों ने में बुद्ध के पास भिक्वालों के ूप में में बुद्ध के प्षुकQ. करके, कभी ध्यान करके, कभी मंत्र साधना कर, कभी तंत्र साधना कर, कभी त Joh परन्तु जब मैं अपने शिष्यों के भीतर झांक कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि कोई Dieu में चेतना में वह असफलता अपना प्रभुत्व जमा बैठी उसका कारण है अधर्म का प्रभुत्व पूरे विश्व में बढ़ता हुआ दिखायी देना क्योंकि धरे विश्व में बढ़त.
आप साधना से गुजरेंगे तो यह परिणाम घटते हैं इनकी आपको चिन्ता नहीं कface और मेरा अनुभव है कि जितनी जल्दी करोगे उतनी देर हो जायेगी, क्योंकि जल्दी करने वाला मन शांत हो ही नहीं सकतœuvre रेल गाड़ी पकड़नी है और जल्दी में हैं, तो जो कार्य पांच मिनट में हो सकता था, वहीं कार्य दस मिनट ले लेता है।।।. वस्त्र ही उल्टे पहन लेते हैं फिर निकiner में दूसरी तलाश करते है, वह भी नहीं लगती फिर तीसरी तलाशते है, इस प्रकार जल्दी करना मन को अस्त-व्यस्त कर देता है traves इसलिये जब छोटी-छोटी बातों में जल्दी करना देर का कारण बन जाता है, तो विराट यात्रा पर तो जल्दी करना बहुत देर करवा देगीर तो जल्दी करना बहुत देर करवा देगी.
जीवन में ऊँचा उठना है और यदि नहीं उठते हैं तो यह जीवन व्यर्थ है, क्योंकि ऊँची सीढ़ी पर चढ़ना बहुत कठिन है है, नीचे फिसलना बहुत आसान है है।. दस सीढि़यों से नीचे उतरने में एक सैकण्ड लगता है, परन्तु दस सीढ़ी चढ़ने में आपको बीस सैकण्ड लगेगा। एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको निरन्तर-निरन्तर यही चिंतन करना पड़ेगा कि क्या मेरे अन्दर ऊपर उठने का भाव बन हा है यर ऊप__vi उठने. मेरा जीवन कैसा व्यतीत हो रहा है-अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता है, महानता है और यह वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत बनकर गुरू से एकाकार होने का सामर्थ्य रखता है और शंकराचार्य कहते है, ऐसे ही व्यक्ति गुलाब के फूल बनते है, जो सही अर्थो में गुरू के लिये अपने आपको समर्पित कर देते है।
चिंतन में एक संघर्ष है अन्दर। जो भी आप चिंतन करते है, उसमें आप जूझते है, लड़ते है, एक आन्तरिक लड़ाई चलती है। आप अपने सारे अतीत की स्मृति और सारे अतीत के विचारों को उसके खिलाफ खड़ा कर देते है। फिर भी अगर हार जाते है, तो मान लेते हैं, लेकिन मानने में एक पीड़ा, एक कांटा चुभता रहता है। वह मानना मजबूरी का है उस मानने में कोई प्रफुल्लता घटित नहीं होती। Plus d'informations Plus d'informations सब चिंतन चिंता का ही रूप है, बेचैनी है उसमें छिपी हुई एक तनाव हैं क्योंकि एक भीतरी संघर्ष है, कलह है।। मनन और चिंतन का फर्क है चिंतन शुरू होता है तर्क से, मनन शुरू होता है, संघर्ष से।
मानव ने अमृत प्राप्ति के लिये जितने भी प्रयास किये हैं, उन सब में वह असफल ह रहा है। केवल त्याग के द्वारा ही बtenir उसे पाने की शर्त एक ही है निष्ठा। अमृत पाने की तीव्र आकांक्षा इसलिये है कि अमृत कभी मिट नहीं सकता वह अमिट है और आप कुछ भी्राप्तf. इस जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है शाश्वत है है इसलिये ब्रह्म ज्ञानियों ने यही खोज की जो शाश्वत है, जो सदैव है जो खोज की की जो नहीं हो सकत. यदि हमारा सम्बन्ध इससे हो जाये हम भी उस जैसे ही हो ज जायेंगे। हम में कोई भेद ना होगा। हम निर्भय हो जायेंगे क्योंकि अब भय किस बात का जब हम अमृत हो गये है और अमृत तो शाश्वत होता है।।.
T यदि उसे इस बात के लिये मना करे अथवा त्याग करने के लिये कहें तो वह मœuvre । व्यक्ति जीवन भर धन इसीलिये एकत्र करता रहता है कि धन से कुछ ऐसा मिल जायेगा, जिससे सुरक्षित ह सकूंगा जो समायेगाता, नहीं होगरक्षित कम ° व. Plus d'informations व्यक्ति ऐसा सोचते है कि उनका पुत्र बड़ा होकर पढ़ लिख कर, व्यवस्थित होकर विवाहित हो जाये तथा फिर उसके्चे भी इसी्nerci, जाये तथ. लेकिन उस व्यक्ति से यदि यह पूछा जाये इस सब को करने का क्या प्रयोजन है? Plus d'informations तुम ही क्या और भी ऐसा ही कर रहे है, क्या इस प्रकार करने से तुम्हें अमृत्व की प्राप्ति होरने? Tous les autres
प्रारorationथना वह शक्ति है जिसमें मनुष्य पूर्णतया खो जाता है। उसे बाहरी स्थिति का, बाहरी क्रिया कलापों कiner Plus d'informations यदि उसे प्रार्थना के समय बाहरी क्रियाकलापों का आभास होता है तो उस समय जो प्रार्थना तुम करते हो वह प्रार्थना नही, वह तो बाहर से की जाने वाली औपचारिकता मात्र है और यदि हम पूर्ण तन्मयता के साथ प्रार्थना करे तो हमारी यात्रा सन्मार्ग की ओर आरम्भ हो जाती है तथा हम अग्नि के समान हो जाते है अर्थात् ऊर्ध्वगत हमारी ऊर्जा हो जाती है।। हम. Plus d'informations
हमने अग्नि को भी देखा है तो साक्षात् पानी को भी देखा है और पानी की यात्रा सदैव नीचे की ओर होती है। की की. T T T
जो स्वयं को असहाय मानता है, अज्ञानी मानता है वह ही विनम्र होता है। वह ही यह बात कह सकता है। हे अग्नि देव! मुझे उर्ध्वपात की ओर ले चल अर्थात् निरन्तर उच्चता की ओर, आकiner आपको सब कुछ पता है और आपके किये से ही अब कुछ हो सकता है ओर आप ही मुझे ले चलों ऊँचाईयों कीर मेरे कर्मों को हे आप ज. और मनुष्य को सद्मार्ग पर अगtenir सद्मार्ग पर बढ़ने के लिये राह में आई बाधाओं के कारण उसके पग डगमगाते है अन्यथा किसी भी असद्मार्ग पर जब वह बढ़ताहैा तो स्वयं हीार् पा हैा हैœuvre अतः अधोगमन का रास्ता स्वयं के कारण है तथा ऊर्ध्वगमन्वगमन का facedre
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