Plus d'informations इसलिये नहीं की सागर बहुत दूर है, इसलिये की सागर बहुत निकट है। जो दूर है वह दिखाई पड़ता है, जो निकट है वह आंख से ओझल हो जाता है। Plus d'informations Plus d'informations
पूछते है लोग, कहाँ खोजें गुरू को? पूछते हैं कि जो भीतर ही छिपा है, वह भूल कैसे गयॾ ह ? पूछते हैं कि जो इतना करीब है कि हृदय की धड़कन भी उतनी करीब नहीं, श्वासें भी उतनी पास नहीं स्वयं के, वह भी बिछुड़ कैसे गया है? जो मैं स्वयं ही हूँ, उससे भी विस्मृति कैसे हो गई ई और वे जो पूछते हैं, ठीक ही पूछते हैं। जो मेरे भीतर ही छिपा है, उसे ही मैं नहीं जान पाता ँ! Plus que jamais ! तो फिर परिचय किससे होगा? पहचान किससे होगी ? ज्ञान किसका होगा? Plus que jamais !
ऐसा नहीं कि वह आज पास हो गया हो, वह सदा से ही पास है, अनंत-अनंत काल से ही पास है। Plus d'informations हम जहाँ भागे, हमारे साथ भागता है। हम जहाँ जाये, वह हमारे साथ जाता है। यह कहना भी ठीक नहीं कि साथ खड़ा होता है, क्योंकि जो हमारे साथ होता है उससे भी थोड़ीरी होती है।।।। उससे भी दूरी होती है। हमारा होना और उसका होना एक ही बात है।
आंख की सीमा है, एक परिधि है। उससे ज्यादा दूर हो तो आँख नहीं देख पाती, उससे ज्यादा पास हो तो भी आंख नहीं देख पाती। आंख के देखने का एक विस्तार है। किसी चीज को आँख के बहुत पास ले आयें, फिर आँख नहीं देख पायेगी, बहुत दूर ले जाये, तो भी आँख नहीं देख पायेगी।।।। भी आँख देख प. तो एक क्षेत्र है जहाँ आँख देखती है और इस क्षेत्र के इस पार या उस पार आँख अंधी हो जाती हैर आप तो इतने निकट है है आँख के प. यही अड़चन है।
ऐसा समझें कि दर्पण के सामने खड़े हैं, तो एक खास दूरी से दर्पण पर ठीक्रतिबिंब बनता है।।।।. अगर बहुत दूर चले जाये तो फिर दर्पण पर प्रतिबिंब नहीं बनेगा। बहुत पास आये कि आँख को दर्पण से ही लगा लें, तो प्रतिबिंब दिखाई नहीं पड़ेगा। लेकिन यहाँ मामला ऐसा है कि आप दर्पण के पीछे खडे हैं, इसलिये दर्पण पर प्रतिबिंब बनने का कोई उपाय ही नहीं हैं।।।।.
आँख आगे है, आप पीछे है। आँख देखती है उसको जो आँख के आगे हो। आँख उसको कैसे देखे जो आँख के पीछे है? Plus d'informations कान उसको कैसे सुने जो कान के भीतर है? Plus d'informations मैं आपको छू सकता हूँ, अपने को कैसे छुऊं? और अगर अपने शरीर को भी छू लेता हूँ तो वह इसीलिये कि शरीर भी मैं नहीं हूँ, वह भी पराया है, इसलिये छू लेता हूँ।।। भी. लेकिन जो मैं हूँ जो छू रहा है, उसे कैसे छुऊं? उसे किससे छुऊं? इसलिये हाथ सब छू लेते हैं और खुद को नहीं छू पाते हैं, आँख सब देख लेती है और खुद को नहीं देख पाती है।। अपने लिये हम बिलकुल अंधे हैं। हमारी कोई इंद्रिये काम की नहीं है। जिन इंद्रियों से हम परिचित हैं, वे कोई भी काम की नहीं हैं।। अगर कोई और इंद्रिय का उद्घाटन न हो जो उल्टा देखती हो हो कोई कान न खुल जाये, जिसर पर भीतर की ध्वनि-तरंगें भी प्रभाव लर भीतर की तब्वनि तरंगें भी. Plus d'informations
जो निकट है वह चूक जाता है। जो निकट से भी निकट है वह असंभव है। Plus d'informations दूसरी बात सागर में ही पैदा होती है, सागर में ही जीती है, सागर ही उसका भोजन, सागर ही उसका पेय, सागर ही उसका प्राण, सागर ही सब कुछ. ही. फिर सागर में ही मरती और लीन हो जाती है। जानने के लिये मौका नहीं मिलता, क्योंकि दूरी नहीं मिलती, फासला नहीं मिलता। मछली को सागर का पता चलता है, अगर कोई उठा कर उसे सागर के किनारे फेंक दे, तभी। Plus d'informations
तो मछली तड़पती है रेत पर, धूप में, तब उसे सागर का पता चलता है। Plus d'informations पैदा होने के पहले भी जो मौजूद था और मरने के बाद भी जो मौजूद रहेगा और जिसमें ही पैदा हुये और जिसमें ही लीन हो गये उसका पता कैसे चलेगा? Plus d'informations Plus d'informations आदमी की और भी मुसीबत है। गुरू सागर ही सागर है, उसका कोई किनारा नहीं जिस पर आपको फेंका जा सके, जहाँ आप तड़पने लगें मछली की तरह। Plus d'informations Plus d'informations इसलिये तो जो गुरू को किनारा खोजते हैं, वे उसे कभी नहीं खोज पाते। जो गुरू की मझधार में डूबने को राजी है, उनको ही उसका किनारा मिलता है।
Plus d'informations, plus d'informations ा हो भी कैसे! Plus d'informations Plus, plus et plus Plus d'informations ज से। गुरू के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। यह उसकी वैज्ञानिक परिभाषा हुई। गुरू का अर्थ है- समस्त, सर्व, सब, कुछ, जो भी है।
उसका कोई किनारा नहीं हो सकता, क्योंकि उसके अतिरिक्त कुछ किनारा बनने को बचता ही नहीं है। इसलिये गुरू मझधार है। वहाँ कोई किनारा नहीं है। जो डूबने को राजी है, वह उबर जाता है, जो उबरने की कोशिश करता है, बुरी तरह डूबता है। कोई किनारा हो तो पता भी चल जाये। इसीलिये हमें पता नहीं चला है। उसी में हम हैं। जिसे हम खोजते हैं, उसी में हम हैं। जिसे हम पुकारते हैं, उसे पुकारने की जरा भी जरूरत नहीं है है, क्योंकि इतनी भी दूरी नहीं है कि हमारी आवाज हमें जोर से पुकारनी पड़े।।। आव. इसलिये कबीर ने कहा है कि क्या तुम्हारा ईश्वर बहरा हो गया है जो इतनी जोर से पुकारते हो? Plus que jamais ! अगर मैने भी कुछ भीतर होगा तो वह भी सुन लिया जायेगा, इतने पास है! दूसरे को पुकारना हो तो आवाज देनी पड़ती है, खुद को पुकारने के लिये आवाज देने की भी क्या जरूरत है! दूसरे को तो तब ही सुनाई पड़ता है जब शब्द ध्वनित हो, स्वयं को तो मौन भी सुनाई पड़ता है।
आदमी गुरू पर ही पैदा हुआ है, वहीं है। Plus d'informations, plus d'informations Plus d'informations इसलिये गुरू को पाने के लिए अहंकार के लिये कोई दौड़ नहीं है, गुंजाइश नहीं है, कोई तरह का रस मालूम नहीं पड़ता। Plus d'informations इसे खयाल में ले लें, क्योंकि उसके अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है। संसार की प्यास जगती है दूरी से। Plus d'informations
गुरू में ही हम हैं, इसलिये गुरू में कोई अहंकार के लिये बुलावा नहीं है, कोई निमंत्रण नहीं है, कोई चोट, कोई चुनौती, कोई चैलेंज नहीं है। फिर गुरू की अभीप्सा कैसे पैदा होती ? संसार की अभीप्सा पैदा होती है दूरी से, बुलावे से, चुनौती से, गुरू की अभीप्सा होती है असफलता से।
जब आप सब तरफ दौड़ सकते है और सब तरफ हार जाते है, सब पा लेते हैं और सब व्यर्थ हो जाता है। जिस दिन आपको यह अनुभव होता है कि सब दौड़ व्यर्थ है, उस दिन आप उसी जगह खड़े ह जcre ज. हैं जहाँ गुरू है।।।।।।।।।।।।। जिस दिन आपको पता चलता है कि दौड़ कर कुछ नहीं मिला, कुछ भी नहीं पाया, उस दिन दौड़ते नहीं है .ve
Il est obligatoire d’obtenir Gourou Diksha du révéré Gurudev avant d'effectuer une Sadhana ou de prendre une autre Diksha. S'il vous plaît contactez Kailash Siddhashrashram, Jodhpur à travers Email , whatsApp, Téléphone or Envoyer la demande obtenir du matériel de Sadhana consacré sous tension et sanctifié par un mantra et des conseils supplémentaires,