आशंका एक प्रकार से किसी अज्ञात भावी युद्ध की मनः स्थिति ही होती है और किसी भी युद्ध को केवल एक ही प्रकार से जीता जा सकता है और वह प्रकार होता है- अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शत्रु पर टूट पड़ा जाय और उसका विध्वंस कर दिया जाये । जब युद्ध की स्थिति निर्धारित हो जाती है, तो प्रेम-संदेशों से काम नहीं चलता वरन मरने या मारने की भावन. एक प्रकार से सिंहत्व धारण कर अपने आखेट पर प्faceère संसार के वीर पुरूषों का इतिहास इसी प्रकार के प्रहारों से ही भरा पड़ा है, जिन्होंने यह भय नहीं ख्या, कि हमारे शत्रु की स्थिति क्या है? उसका बल क्या है? Plus d'informations
सिंह अपना आखेट किसी योजना या वार्तालाप से नहीं करता वरन एक झपट enf côture जो पुरूष जीवन में ऐसा संकल्प करते हैं और क्रियान्वित भी करते हैं, उन्हें भी 'नृसिंह' अर्थात पुरूषों में सिंह .cre केवल सिंह बन कर ही जीवन की विविध समस्याओं और आशंकाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।। विजय.
भगवान विष्णु के 'नृसिंहावतार' का क्या यही अरूथ नवताह? भगवान विष्णु के इस महत्वपूर्ण अवतार का विवेचन गूढ़ार्थों से युक्त है। हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था, कि वह न दिन में मारा जायेगा न रात्रि में में कोई पुरœuvre
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अर्थात जब व्यक्ति स्वयं सिंह वृत्ति धारण कर लेता है, तभी वे सिंहवाहिनी आकर उसे अपना सानिध्य देती है।।।. देवी भगवती के सानिध्य का तात्पœuvrefnétique
साधना के जगत में इस 'सिंहत्व' का अर्थ होता है, कि साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये किसी भी चुनौती को स्वीकार करने को तत्पर हो गया है अर्थात उन दुर्गम पथों पर भी चलने के लिये सन्नद्ध हो गया है, जिन्हें सर्व सामान्य ने व्यर्थ कह कर ठुकरा दिया हो।
पूज्यपाद गुरूदेव ने सिंहत्व की पfacedé उन्होंने बताया- 'जब जंगल में शिकारी सामने आकर खड़ा हो जाता है, तब्य जानवर तो मुंह मोड़कर पीछे लौट जाते हैं हैं किंतु सिंह.
साधनाओं के क्षेत्र में भी जो साधक इसी प्रकार अड़चनों के ऊपर से छलांग लगiner
समस्त उच्चकोटि की साधनाओं का एक पक्ष जहाँ उनकी जटिलता होती है है वहीं दूसरा पक्ष यह भी होता है, कि उनके समाधान पक्ष कोई्यंत सरल उप. , जब वह सिंहत्व धारण कर इस समर भूमि में छलांग लगा देता है, क्योंकि किसी भी देवता का मूल स्वरूप तो करूणामय ही है है। उनका उद्देश्य तो जगत का कल्याण ही है और यही बात भगवती दुर्गा के सम्बन्ध मेंर्वाधिक सत्या के सम्बन्ध मेंर्वाधिक सत्य क्यों नहीं होगी होगी होगी होगी होगी होगी?
माता भगवती का स्वरूप अत्यंत भीषण मानiner
अर्थात 'जिनके अंगों की प्रभा विद्युत-द्युति के समान है है जो सिंह के कंधों पर बैठी हुईर प्रतीत हो सिंह के कंधों पर बैठी भयंकर प्रतीत हो ही है है जिनके. , ढाल, बाण, धनुष, पाशा आदि अस्त्र धारण कर face खेœuvre
माता भगवती का तात्पर्य तो पूर्णतः भौतिक संकटों की समाप्ति ही है।। जिस 'दुर्गम' नाम के दैत्य का वध करने के कारण उनकी संज्ञा दुर्गा प्रसिद्ध हुई, केवल वे ही तो इस जीवन के रोग, दुर्बलता, दारिद्रय, शत्रु जैसे विभिन्न 'दुर्गम दैत्यों' का शमन कर सकती है और जिस प्रकार वे विभिन्न अस्त्रों से सुसज्जित होकर रणभूमि में उपस्थित होती है, उसी प्रकार अपने भक्त या साधक से्षा करती है।
वीर, धीर पुरूष न स्वयं बिना कारण आघात करते है, न आघात सहन करते है। T
जीवन का वास्तविक आनंद तो तभी है है, जब हम में इतनी क्षमता हो, कि एक हुंकार पर विपत्तियों की्वनियां शiner
इस विवेचन का उद्देश्य मात्र इतना है, कि साधक जिस अवसर पर इस श्रेष्ठ दुःख, दारिद्रय, शत्रुहंता साधना में प्रवृत्त हो होœuvre आधे मन से, भावनाओं में डूबते-तैरते, बलात् साधना करने से इसके फल की प्राप्ति संभव नहीं हो प पाती। प. माँ भगवती नृसिंहनाथ धन लक्ष्मी साधना महोत्सव पर्व 08-09 अप्रैल को माता भगवती केरण दिवस दिवस के ूपœuvre ऐसे सिद्ध मुहूर्त पर भगवान नृसिंह की चेतन्य भूमि पर अपने इष्ट रूपी सद्गुरूदेव श्री कैलाश श्रीमाली जी द्वारा भगवती नारायण अष्ट लक्ष्मी दीक्षा ग्रहण करने से साधक की सभी समस्याओं, व्यथाओं, परेशानियों, बाधाओं व असुरमय स्थितियों का विनाश प्रारम्भ हो जाता है। माता भगवती के अवतरण पर्व के विशिष्ट दिवस पर नृसिंहनाथ के चेतन्य भूमि में ऐसी्चकोटि दीक्षा ग्रहण करनiner Plus d'informations
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