इस भौतिक संसार में अगर हम स्वयं का अच्छा चाहते है तो हमे स्वयं पहले दूसरो का भला करना होगा। सुख भोगने के लिये हमें पहले किसी के सुख का कारण बनना होगा। अगर हम खुद नकारात्मक है तो हम कैसे कुछ अच्छा सोच यiner
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गुरू कभी नहीं चाहता कि उनका शिष्य, साधक जन्म-जन्मों तक अपने बुरे कर्मों के्रभाव का फ़ल भोगतरहे वर्मों के कुप्रभाव कiner गुरू तो चाहता है, दुःखों की समाप्ति व कुकर्मों का पश्चाताप करना व साम्न्य व्यक्ति्ति न हकरना पूर्ण शिष्य व्यक्ति .asse
सुख- दुःख तो हमेशा आते रहते है, पर गुरू के सानिध्य में दुःख जल्द समाप्त होते है व्टों से लडने की असीम्ति आ जाती हैं कष्टों से लडने असीम. वर्ष के इस अन्तिम माह में आपके कष्टों का हरण हो व आने वाले वर्ष की चुनौतियों से लड़ने का सभी में जोश व्साह अपने अन्दर पैदा सभी में जोश व.. आने वाला वर्ष आप सभी के लिये नई आशा व सर्व सुखो से पूर्ण हो।
le vôtre
Vineet Shrimali
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