Plus que jamais ! ताकि सारा जीवन-ऊर्जा, देखने की सारी शक्ति और क्षमता अंतर्मुखी हो जाए। ताकि जो प्रकाश वस्तुओं पर पड़ता था वह स्वयं पर पड़ने लगे। Plus d'informations अभी अपनी मशाल में तुमने दूसरों को देखा है औरों को देखा है, सारा संसार छान डाला है। लेकिन दिया तले अंधेरा। दिये से तुम सब खोजते फिर रहे हो और खुद दिये के तले अंधेरा इकट्ठा करते चले जा रहे है। Plus d'informations
नींद में तुम हो और किसी का निशाना अचूक हो, तब तो बचने का उपाय भी नहीं। ऐसी ही दशा है। माया से तलाक लो। माया से तलाक का नाम ही जीवन की बन्धन मुक्त स्थितियां है और माया से तलाक का अर्थ क्या होता है? Plus d'informations Plus d'informations माया का फैलाव काफी बड़ा है। दूर-दूर तक उसके तीर पहुंच जायेंगे। Plus d'informations तुम जहाँ भी हो जाग जाओ, फिर माया का कोई भी तीर तुम तक नहीं पहुँच सकता। माया ही मर जाती है। इधर तुम जागे कि उधर माया मरी। तुम जब तक सोये हो, माया जीवित है। तुम्हारी निद्रा ही माया है।
संसार की दृष्टि में अंधे बन जाओ। Plus d'informations, plus d'informations Plus d'informations उनकी टेन्शन मत करना, क्योंकि वे बहुत कम लोग ही हैं हैं जो इतनी हिम्मत करते हैं ब्वयंœuvre में अपनी सुगंध है और पहाड़ों की ऊंचाइयों में अपनी ऊंचाई है और सागर की गहराई में अपनी गहराई है। तब सारा अस्तित्व उसे स्वयं का विस्तार मालूम होता है कि वह अहं ब्रह्मास्मि! स्वरूप है। जहां ध्यान नहीं वहां ज्ञान कैसे होगा, ध्यान की ही सुगंध है ज्ञान। ध्यान का ही संगीत है ज्ञान। Plus d'informations
कोई भी नहीं मरता, सिर्फ शरीर और आत्मा का संबंध छूट जाता है और तुम संबंध को हीर अगœuvre Plus d'informations संबंध यानी तादात्मय। तुमने अगर यह मान रखा है कि मैं शरीर हूँ, तो फिर मृत्यु बढे़गी और तुम अगर जान लो कि मैं शरीर नहीं हूं, फिर कैसे मृत्यु! शरीर मरेगा, मरा ही हुआ था और आत्मा मर नहीं सकती, आत्मा अमृत है। अगर हम संसार की वस्तुओं को अपने भीतर अत्यधिक भर लें कि उन में ही जीवन आसक्त हो जाए, तो जीवन में उन वस्तुओंlan इसलिये संसार की वस्तुओं की चिन्ता न करते हुए अपने भीतर एक आनन्द को उत्पन्न करना, अपनेर भीतर पूर्णता को बनाना ही तोायास.
Plus d'informations परमात Joh जीवन में संकट से भागना सन्यास नहीं है, क्योंकि भले ही वो सन्यासी बन जाये परन्तु व्यक्ति अपने आप से नहीं भाये परन्तु व्यक्ति अपने आप नहीं भ. जो व्यक्ति जीवन में लड़ने का सामर्थ्य नहीं जुटा पा facedre ? वही तो सन्यासी है। Plus d'informations Plus d'informations अपने जtenir
जिस पtenir सन्यास 'स्व शुद्धि' है, अपने आप को संसार की आग और जलन में तपाकर शुद्ध होना है, परिवर्तित कर देना है, वहीं्यास है।।।. जब सनtenir सन्यासियों का बढ़ता हुआ सैलाब, उनकी बढ़ती हुई बाढ़, हजार-हजार तरह की गालियां मेरे लिए लायेगी।। तुम उनकी चिंता मत लेना। Plus d'informations जैसे कि तुम सरोवर में अगर अंगारे भी फेंको तो सरोवर में गिरते ही बुझ जाते हैं, अंगारे नहीं रह जाते। Plus d'informations जितनी जtenir
सन्यास सर्व विजयश्री का नाम है और विजयश्री के लिए संकल्पवान होना आवश्यक है। जीवन की शिथिलता और निराशा को मिटाने के लिए पहले सन्यास की आवश्यकता है और सन्यास के उन क्षणों में उसे सांसारिक्याससी बन कœuvre जब तक व्यक्ति के जीवन में दुविधा, संघर्ष, बेचैनी, तनाव, निर्णय-अनिर्णय होता है तभी तक वह .ve उस समय उसके भीतर की आत्मा शक्ति को जाग्रत कर उसे विषाद और संताप से मुक्त करना ही traves निराशा तो कोई भी दे सकता है, पूरा संसार देता ही है, यहाँ नास्तिक भाव और दासता का चिंतन मिलने पर कुविचार और संताप की स्थितियां बनती है और इन भावों को तोड़ना और अपने आप को दूसरो से ऊंचा उठाना ही सांसारिक स्वरूप में सन्यस्त भाव की क्रिया है।
गुरू जब अपनी दिव्य शक्ति से उस 'अहं' भाव को समाप्त कर 'स्व' भाव को जाग्रत करते हैं, तो उस्रिया को्त cérédel अपने आत्म ज्ञान को चैतन्य करना और उस आत्म ज्ञान के माध्यम से केवल मनुष्य ही नहीं देव भी सहयोग देने. सन्यास के लिए तो अपनी शारीरिक और मानसिक रूग्णता को संकल्प के साथ मिटाने की्थिति बनानी आवश्यक है।।. ऐसा ऊर्ध्वमुखी जीवन जीने के लिए जिसमें निरन्तर उन्नति हो, तो बीज को मिटना ही पड़ता है, बीजर ही ही अपने में विशाल वृक्ष बन सकत सकतर ही अपने आप में विशाल वृक्ष बन सकत. Plus d'informations सद्गुरू अपनी शक्ति द्वारा इस कठोर आवरण को तोड़ देते देते हैं। सामाजिक जीवन में लीक पर चलना, डर-डnerci इन आवरणों को फोड़कर जो प्रस्फुटित हो जाता है, वह जीवन में सन्यासी बन जाता है, उसके लिए हिमालय में और दिल्ली में अंतर नहीं रह जाता, क्योंकि उसने 'स्व' का विकास करना सीख लिया है और जब स्व विकास की सन्यासी प्रक्रिया प्र्रारम्भ हो जाती है, तो सांसारिक बंधन उसे तुच्छ और बौने अनुभव होते हैं हैं।
अपनी अलग पहचान स्थापित करना ही तो सन्यास है और शिष्य या साधक ही अपनी अलग पहचान विशाल स्वœuvre ° सन्यास दिवस एक नूतन पर्व है, यह तो सड़ी-गली मान्यताओं, जर्जर व्यवस्थाओं कात्यताओं, जर्जर व्यवस्थाओं का त्याग कर अपने .ve संन्यास की शक्ति एक सर्वथा अद्वितीय अनुभव है, उसमें और सांसारिक जीवन मे वैसा ही अंतर है जैसा एक बदबूदार नाली और सुगन्धित उपवन में है। एक बदबूदार नाली और सुगन्धित उपवन में है।। एक. इसलिए इस बात के लिए सहज रहना होगा कि सामाजिक सुरक्षा कवच इतना भी तीव्रतम रूप में नहीं जकड़ ले कि व्यक्ति्ति अपन्रतमlan ूप ही भूल ज. समाज में रहकर बन्धन मुक्त होना ही तो सन्यास पर्व है और यह पर्व दो दिन में समेटा नहीं जा सकता, लेकिनर्व की शुरूआत तो कहीं सेा सकता आवश्यकf्व की शुरूआत तो कहीं सेरनी..
यदि आप जब देवभूमि की ओर कदम ही नहीं बढ़ायेंगे, अपने गुरू का सानिध्य और सहयोग ही नहीं लेंगे तो अपने उन लक्ष्यों को प्राप्त. T रहे हैं। यदि अब भी आप ठिठक कर रह गये तो जीवन में कोई चेतना, कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। देह आपकी है, जीवन आपका है विचार आपको ही करना है कि मैं कह कहां हूं? Plus d'informations
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